कृष्णमोहन झा

इजरायल और हमास के बीच चार दिनों के युद्ध विराम का जो समझौता हुआ था उसकी अवधि और दो दिनों के लिए बढाए जाने की खबर से सारी दुनिया ने राहत महसूस की है और अब यह संभावना व्यक्त की जा रही है कि इस युद्ध विराम से निकट भविष्य में इस क्षेत्र में शांति स्थापना का भी कोई रास्ता निकल सकता है लेकिन दूसरी ओर यह भी कहा जा रहा है कि युद्ध विराम की अवधि बढ़ाने के लिए इजरायल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू की रजामंदी को हमास के प्रति उनके ह्रदय परिवर्तन के रूप में देखना बहुत बड़ी भूल साबित हो सकता है।

इजराइल के प्रधानमंत्री कह चुके हैं कि हमास के कब्जे से इजरायली बंधकों की रिहाई युद्ध के उद्देश्यों में से एक है और उनकी सरकार इस युद्ध के सभी उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए प्रतिबद्ध है। उनके इस तरह के बयानों ने ही इन आशंकाओं को जन्म दिया है कि इस युद्ध विराम को लंबे समय तक जारी रखने के लिए नेतन्याहू को तैयार करना बहुत मुश्किल काम है। गौरतलब है कि हमास के विरुद्ध युद्ध की शुरू करते वक्त ही नेतन्याहू ने कहा था कि वे हमास को जड़ से मिटा देने का प्रण लेकर ही यह युद्ध शुरू कर रहे हैं। फिर सवाल यह उठता है कि नेतन्याहू आखिर किस मजबूरी के चलते इस युद्ध विराम के लिए तैयार हो गए। इस बारे में रणनीतिक विशेषज्ञों की राय यह है कि इजरायल के जिन परिवारों के सदस्यों को हमास ने बंधक बना रखा था उन परिवारों के दबाव के कारण नेतन्याहू को युद्ध विराम करने के लिए मजबूर करने के मजबूर होना पड़ा। इसमें कोई संदेह नहीं कि इस युद्ध विराम के लिए नेतन्याहू पर अतंर्राष्ट्रीय दबाव भी कम नहीं था। दरअसल हमास और इजरायल, दोनों पक्षों के लिए यह युद्ध विराम समझौता एक मजबूरी बन गया था क्योंकि दोनों पक्ष जल्द से जल्द अपने बंधकों की सुरक्षित रिहाई चाहते थे।

इजरायल और हमास, दोनों की ओर से अभी जितने बंधक रिहा किए गए हैं, उससे ज्यादा बंधकों को छुड़ाया जाना अभी बाकी है और यह तभी संभव हो सकता है जबकि दो दिनों के लिए बढाया गया युद्ध विराम और कुछ दिनों के लिए बढ़ाने पर दोनों पक्ष राजी हो जाएं। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय भी यही चाहता है। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा है कि इजरायल और हमास के बीच जारी युद्ध विराम की स्थिति को आगे भी बनाए रखना हमारा लक्ष्य है। जो बाइडेन का मानना है कि द्विराष्ट्र के सिद्धांत पर अमल करके ही इजरायल और फिलिस्तीन के नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है।

भारत सहित विश्व के अनेक देशों की राय भी यही है। सवाल यह उठता है कि क्या नेतान्याहू को गाजा पट्टी में युद्ध विराम को अनिश्चितकाल तक जारी रखने के लिए राजी किया जा सकता है जो पहले ही यह कह चुके हैं कि युद्ध विराम की अवधि समाप्त होने के बाद इजरायली सेना हमास को नेस्तनाबूद करने के लिए उस पर पूरी ताकत से टूट पड़ेगी। नेतन्याहू ने युद्ध विराम की अवधि बढ़ाने के लिए यह शर्त रख दी है कि हमास अगर एक दिन में 10 बंधकों की रिहाई करेगा उसके बदले में इजरायल युद्ध विराम की अवधि एक दिन बढ़ाने देगा । इसका मतलब यह हुआ कि अगर नेतन्याहू की इस शर्त को हमास मान लेता है तो युद्धविराम की अवधि 15 दिनों के लिए बढ़ सकती है क्योंकि हमास के कब्जे में अभी लगभग 150 बंधक हैं। उधर हमास भी इजरायल के कब्जे से अपने लोगों को छुड़ाना चाहता है। इसलिए दोनों पक्ष अपने बंधकों की घर वापसी के प्रति गंभीर हैं तो यह युद्धविराम की अवधि बढ़ाए बिना कतई संभव नहीं है। इजरायल और हमास , दोनों ही इस बात से अच्छी तरह वाकिफ हैं कि फिर से लड़ाई शुरू होने के बाद बाकी बचे बंधकों को रिहा कराना बहुत मुश्किल हो जाएगा ।

नेतन्याहू तो दो टूक शब्दों में पहले ही कह चुके हैं‌ कि युद्ध विराम की अवधि समाप्त होते ही इजरायल की सेना हमास को नेस्तनाबूद करने के लिए उस पर पूरी ताकत से हमला बोल देगी। इजरायली प्रधानमंत्री इस तरह के बयान दे रहे हैं तो उनके इरादों को समझना कठिन नहीं है। नेतन्याहू के इस बयान पर गौर करते हुए अमेरिका ने कहा है कि अगर इजरायल गाजा पट्टी में फिर से सैन्य कार्रवाई प्रारंभ करता है तो उसे वहां नागरिकों के' महत्वपूर्ण विस्थापन ' और तबाही से बचना चाहिए। मतलब यह है कि जो बाइडेन भी युद्ध विराम की अवधि समाप्त होने के बाद गाजा में नये सिरे से इजरायल की बड़ी सैन्य कार्रवाई शुरू होने की आशंका से मुक्त नहीं हैं। एक बात और भी गौर करने लायक है कि युद्ध विराम की अवधि बढ़ाने की मांग भले ही हमास ने की है परन्तु इन संभावनाओं से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि इजरायल के समान वह भी अपनी लड़ाई को जारी रखने के लिए गुपचुप अपनी रणनीति तैयार कर रहा हो। कुल मिलाकर अभी यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता कि युद्ध विराम अनिश्चित काल तक जारी रहेगा या फिर इजरायल और हमास के बीच लड़ाई अनिश्चित काल तक चलेगी।

 

नोट - लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।


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