कृष्णमोहन झा

मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने जो शानदार जीत हासिल की है वह कतई अप्रत्याशित नहीं है। इस जीत के संकेत तो 17 नवंबर को ही मिल गए थे जिस दिन मध्यप्रदेश में रिकार्ड तोड़ मतदान संपन्न हुआ परंतु विपक्षी कांग्रेस पार्टी प्रदेश में हुए भारी मतदान को सत्ता परिवर्तन का संकेत मानने की भारी भूल कर बैठी। भाजपा की प्रचंड विजय से अब कांग्रेस पार्टी सदमे की हालत में है। उसे शायद अब इस कड़वी सच्चाई का अहसास हो रहा होगा कि इन चुनावों में उसका अतिआत्मविश्वास ही उसकी शोचनीय पराजय का सबसे बड़ा कारण बन गया।

दरअसल समूची कांग्रेस पार्टी और उसके दिग्गज नेताओं की आत्ममुग्धता ने उसे शोचनीय पराजय की कगार तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।आत्ममुग्धता की शिकार कांग्रेस पार्टी को पार्टी‌ इस बात का तनिक भी अंदाजा नहीं लगा पाई कि पूरे प्रदेश में भाजपा के पक्ष में अंडर करंट बह रहा है। दरअसल इस अंडरकरंट का आभास तो उन राजनीतिक प्रेक्षकों भी नहीं हो पाया जो यह तय मान चुके थे कि इन विधानसभा चुनावों में एंटी इनकम्बैंसी के कारण शिवराज सरकार को सत्ता से हाथ धोना पड़ेगा।

भाजपा के चाणक्य और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की कुशल रणनीति ने मतदाताओं के मन में एंटी इनकम्बैंसी का विचार ही नहीं आने दिया। गत तीन विधानसभा चुनावों के विपरीत इस चुनावो में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने स्वयं पार्टी का लोकप्रिय चेहरा बनने के बजाय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के करिश्माई नेतृत्व और गृहमंत्री अमित शाह की रणनीति पर भरोसा किया जिसका भाजपा को भरपूर लाभ मिला और वह 2008 और 2013 का इतिहास दोहराने में कामयाब हो सकी। राज्य विधानसभा चुनावों में भाजपा की शानदार जीत पर अपनी पहली प्रतिक्रिया में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इसका संपूर्ण श्रेय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह को देते हुए कहा है कि मोदी के मन में एमपी है और एमपी के मन में मोदी हैं।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मार्गदर्शन में चुनाव लड़कर ही भाजपा ने यह शानदार सफलता अर्जित की है।मध्यप्रदेश में प्रधानमंत्री की चुनावी रैलियों और रोड शो में जो अपार भीड़ उमड़ी वह भाजपा के प्रति जनता के मिला वह इस बात का प्रमाण था कि भाजपा में जनता का भरोसा और मजबूत हुआ है। अपनी शोचनीय से सदमे में डूबीं कांग्रेस को यह मलाल हमेशा रहेगा कि उसके पास अपने चुनाव अभियान में आकर्षण पैदा करने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के कद का कोई स्टार प्रचारक नहीं है। मध्यप्रदेश की डबल इंजन सरकार ने जिस तरह केंद्र सरकार की नीतियों और कार्यक्रमों का त्वरित क्रियान्वयन किया उससे यह साबित हो गया है कि अगर किसी भी डबल इंजन की सरकार के पास सत्ता की बागडोर हो तो उस प्रदेश के और रफ्तार के साथ चहुंमुखी विकास संभव हो सकता है।

मध्यप्रदेश विधानसभा के चुनावों में शानदार सफलता अर्जित करने के उद्देश्य से भाजपा ने विशिष्ट रणनीति अपनाई थी। इसी रणनीति के तहत केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने थोड़े थोड़े अंतराल से मध्यप्रदेश के अनेक दौरे किए । विधानसभा चुनावों में भाजपा की शानदार विजय ने यह सिद्ध कर दिया है कि चुनाव प्रचार के दौरान पार्टी में एकजुटता सुनिश्चित करने और पार्टी कार्यकर्ताओं को पूरी उमंग और उत्साह के साथ पार्टी के चुनाव प्रचार में जुटने में अमित शाह की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण थी। उम्मीदवारों के चयन के लिए पार्टी नेतृत्व ने जो मानदंड निर्धारित किया था उसने भी भाजपा की प्रचंड विजय का मार्ग प्रशस्त किया।

मध्यप्रदेश की सारी बेटियों के सह्रदय मामा के रूप में देशभर में विख्यात मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा घोषित लाडली बहना योजना एक ऐसा ट्रंप कार्ड साबित हुई जिसने कांग्रेस के पैरों तले की जमीन खिसका दी । कांग्रेस ने इस योजना को भाजपा का चुनावी एजेंडा बताते हुए महिला मतदाताओं को भाजपा से दूर करने की भरसक कोशिश अवश्य की परंतु वह इस योजना की कोई काट प्रस्तुत नहीं कर सकी। नतीजा यह हुआ कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इन चुनाव में प्रदेश भर की बहिनों का भरपूर आदर , प्यार और समर्थन पाकर जीत की दहलीज के और नजदीक पहुंच गए। इन चुनावों में आदिवासी समुदाय के मतदाताओं को भाजपा के प्रति आकर्षित करने में केंद्र की मोदी सरकार की नीतियों और कार्यक्रमों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके अतिरिक्त जमीनी स्तर पर आर एस एस की सक्रियता ने भाजपा के पक्ष में माहौल निर्मित किया।

मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भाजपा की शानदार जीत सुनिश्चित करने के लिए चुनावों के माइक्रो मैनेजमैंट में संघ की सुनियोजित रणनीति प्रभावशाली सिद्ध हुई। बड़ी संख्या में संघ के कार्यकर्ताओं ने इन चुनावों में दिन-रात कड़ी मेहनत करके जहां एक ओर भाजपा के हर महत्वपूर्ण अभियान में संघ की अपरिहार्य भूमिका को सिद्ध कर दिया वहीं यह संदेश देने में भी संघ सफल रहा कि संघ के सक्रिय सहयोग से बड़े से बड़ा लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है।

चुनाव परिणामों से स्तब्ध कांग्रेस पार्टी के लिए आत्ममंथन का समय है। लगभग चार महीने बाद लोकसभा के चुनाव संपन्न होने जा रहे हैं। उसे न केवल अपनी शोचनीय हार के सदमे से उबरना है बल्कि अपनी सारी कमियों को दूर करके लोकसभा चुनाव के लिए कमर कसकर तैयार भी होना है। इस हार से उसका मनोबल प्रभावित होना भी स्वाभाविक है। अगर वह लोकसभा चुनाव में भाजपा के सामने कड़ी चुनौती पेश करना चाहती है तो उसे निश्चित रूप से भाजपा से यह सबक सीखने की जरूरत है कि अंतर्विरोधों पर नियंत्रण रखते सरकार कैसे चलाई जाती है।

नोट - लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।


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