कृष्णमोहन झा

यह सर्वविदित है कि अयोध्या में भव्य राम मंदिर के निर्माण हेतु अनेक दशकों तक जो आंदोलन चलाया गया उसमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका रही है यही कारण है कि राममंदिर के भूमि पूजन और प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में संघ प्रमुख मोहन भागवत को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ सहभागिता एवं अपने सारगर्भित विचार व्यक्त करने के लिए विशेष रूप से आमंत्रित किया गया। मोहन भागवत ने प्राण प्रतिष्ठा समारोह के मंच से अपने उद्बोधन में जो उद्गार व्यक्त किए उसका आशय यह था कि अपूर्व हर्षोल्लास के वातावरण में मंदिर में रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा अनुष्ठान संपन्न हो जाने के बाद भी हमारा काम पूरा नहीं हुआ है। हमें इसके आगे अभी लंबा रास्ता तय करना है जिसमें हर देशवासी की अपनी महत्वपूर्ण भूमिका होगी।

महाराष्ट्र के पुणे जिले के आलंदी में गीता परिवार द्वारा आध्यात्मिक संत गोविंद गिरि महाराज की 75वीं जयंती के अवसर पर आयोजित गीता भक्ति अमृत महोत्सव के मंच से संघ प्रमुख ने अयोध्या में नवनिर्मित भव्य मंदिर में राम लला की प्राण-प्रतिष्ठा को एक साहसिक कार्य निरूपित करते हुए कहा कि नवनिर्मित भव्य मंदिर में रामलला को विराजमान होते देखना नयी पीढ़ी के लिए सौभाग्य की बात है। पांच सौ वर्षों के संघर्ष के बाद यह सब भगवान की इच्छा और आशीर्वाद से संभव हो सका ।

संघ प्रमुख ने आगाह किया कि अब हमें संपूर्ण विश्व की मानवता के प्रति हमारी जो जिम्मेदारी है उसकी ओर ध्यान देने की आवश्यकता है। सारी दुनिया आज भारत की ओर देख रही है। दुनिया को विनाश से बचाने के लिए भारत को आगे आना होगा क्योंकि दुनिया को नयी दिशा देने की सामर्थ्य केवल भारत के पास है। अब भारत को अपना यह कर्तव्य पूरा करने के लिए उठना है। गौरतलब है कि अयोध्या में विगत माह आयोजित प्राण-प्रतिष्ठा समारोह के मंच से समसामयिक अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों में भारत की भूमिका को महत्वपूर्ण बताते दृढ़ विश्वास व्यक्त किया था कि अब संपूर्ण विश्व को त्रासदी से राहत दिलाने वाले भारत का उदय होगा और मंदिर का निर्माण कार्य पूरा होते होते विश्वगुरु भारत का निर्माण भी पूर्ण हो जाएगा। उल्लेखनीय है कि संघ प्रमुख ने अक्सर ही महत्वपूर्ण मंचों से यही उद्गार व्यक्त किए हैं कि आज सारी दुनिया आशा भरी निगाहों से भारत की ओर देख रही हैं। दुनिया को जिस तीसरे रास्ते की तलाश है वह भारत ही दिखा सकता है क्योंकि भारत ज्ञान के प्रकाश में रत है। हमारे पास चतुर्वेद, पुराण, सर्वोपनिषद, महाभारत और गीता जैसे ग्रंथ हैं। दुनिया भर के बुद्धिजीवी भी यह मानते हैं कि दुनिया को सही रास्ता दिखाने के लिए भारत को उठना होगा नहीं तो बड़ा नुक़सान हो जाएगा। वे इसे कह भी रहे हैं और लिख भी रहे हैं।

संघ प्रमुख ने गीता भक्ति अमृत महोत्सव में जो संदेश दिया वह यथार्थ पर आधारित है। उसमें ऐसी सच्चाई है जिसे नजरंदाज नहीं किया जा सकता क्योंकि इससे मानवता का हित जुड़ा हुआ है। मोहन भागवत ने इस बात पर विशेष जोर दिया कि समय भले ही बदल गया हो परंतु ज्ञान और विज्ञान का मूल वही है। भारत शाश्वत है क्योंकि इसका मूल शाश्वत है। भारत को अविश्वास और उग्रवाद की दीवार को तोड़ कर एक समान भारत और एक समान मानवता का निर्माण करने के कार्य में जुटना होगा। यह भारत का कर्तव्य है और इसे हमें पूरा करना ह। भारत इस कर्तव्य पालन में पूरी तरह समर्थ है।

 

नोट - लेखक राजनैतिक विश्लेषक है।


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