विजय कुमार जैन राघौगढ़ म. प्र.

देश में भारतीय एवं अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों द्वारा खाद्य उत्पादों, बिस्किट, चॉकलेट आदि में मांसाहार मिश्रण कर उपभोक्ताओं को धोखा दिया जा रहा है। लेज में सूअर की चर्बी के बाद बड़ा खुलासा हुआ है। कंपनियों द्वारा सरकार से मिलकर जो खाद्य उत्पाद बाजार में बेच रहे हैं उनमें मांसाहार मिश्रण किया जा रहा है। कंपनियों द्वारा उत्पादन में मांसाहार का वितरण E कोड के नाम पर किया जा रहा है शाकाहारी एवं मांसाहारी खाद्य पदार्थों को हरे एवं लाल रंग में वर्गीकृत करने के खेल में देश में कम्पनियों द्वारा समाज के साथ जबरदस्त धोखा किया जा रहा है, और इसमें सरकार भी शामिल है। मांसाहारी पदार्थों के मिश्रण और प्रोडक्ट सोर्स Eकोड के अंकित करने के खेल से आम नागरिक एवं समाज अनजान है। इस मामले में खोज खबर ली गई तो सारा माजरा सामने आ गया। हर घर में पाए जाने वाले पारले, सनफीस्ट, कैडबरी, नेस्ले, ब्रिटानिया, आईटीसी, प्रिया गोल्ड, रिंगली न्यू टोन, कैंडीमैन जैसी दर्जनों कम्पनियों के उत्पादन में मांसाहार का मिश्रण है। उल्लेखनीय की कुछ दिन पूर्व लेज कुरकुरे जैसे खाद्य पदार्थों में मांसाहार आप मिश्रण होने की खबर प्रमुखता से प्रकाशित हुई थी। इसके बाद भी धार्मिकता की हित संरक्षक समझी जाने बाली भाजपा सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया। पर इस खबर के बाद जागरूक नागरिकों धर्म गुरुओं और स्वास्थ्य के क्षेत्र में कार्य करने वाली संस्थाओं ने जरूर अपने-अपने प्रयास प्रारंभ किए हैं लाल- हरे रंग के चिन्ह के नाम पर धोखा दिया जा रहा है दुनिया में यूरोपियन देशों में खाद्य पदार्थों के लिए बनाए गए कड़े कानून के बावजूद भारत में सन 1993 में इस विषय में प्रयास शुरू हुए और मांसाहार के लिए लाल एवं शाकाहार के लिए हरे चिन्ह अंकित करने का नियम बनाया गया। सरकारी अधिसूचना के अंतर्गत पशु पक्षियों के बाल, नाखून, पंख, चर्बी और अंडे की जर्दी को मांसाहार की श्रेणी से बाहर रखा गया है। जिसके चलते विभिन्न देशी विदेशी कंपनियां अपने मांसाहारी खाद्य उत्पादकों पर हरा चिन्ह लगाकर शाकाहारी पदार्थों के रूप में बेच रहे हैं। जबकि असलियत कुछ और ही है, इन पदार्थों में मांसाहार भी मिश्रित है। भारत सरकार ने इन कंपनियों की धोखा धड़ी को नजर अंदाज कर इन पदार्थों में मिश्रित मांसाहार अवयवों को सीधे लाल चिन्ह न लगाकर E कोड में लिखने के नियम बना दिए। इसके चलते आम उपभोक्ता अनजाने में स्वास्थ्य के लिए हानिकारक तत्व का सेवन कर रहे हैं। विचारणीय विषय यह है कि इस अज्ञानता के चलते हमारे धार्मिक भावनाएं भी आहत हो रही है। हमने यह भी जानने का प्रयास किया है ही नंबर कोड का क्या है, मांसाहारी पदार्थों के मिश्रण को E कोड नंबर में लेकर जाने के नियम क्यों और किसके के लिए बनाए गए हैं। यह ज्यादा सोध का विषय नहीं है। क्योंकि कोई भी अनपढ़ व्यक्ति भी समझ सकता है कि यह सारी प्रक्रिया उत्पादकों को लाभ पहुंचाने के लिए सरकार द्वारा अपनायी है।

वहीं जहां पर कोड की पहचान की बात है। तो अच्छा खासा पढ़ा लिखा नागरिक भी आसानी से उत्पाद कोड को नहीं समझ सकता। जीव हत्या पर प्रार्थना स्रोत को e471 02 और संभावित जीव हत्या कर प्राप्त मांस स्रोत को E 471, E 322, E102 और संभावित जीव हत्या कर प्राप्त मांस को E 472, E 322, E 481, E 270, E 322, E 222 नंबर दिए गए हैं इसके अलावा बच्चों के लिए हानिकारक स्रोत के लिए E 296, E 110, E 102, E133 नंबर दिए गए हैं पारले कंपनी के उत्पाद क्रेक जैक, पारले-जी, मोनाको, ऑरेंज क्रीम बिस्किट, बटरकप ट्रॉफी, कच्चा मैंगो बाइट, किस्मी बार, बटर कप, सनफीस्ट कंपनी के उत्पाद सनफीस्ट बिस्किट, स्पेशल बिस्किट, स्नेहको झिंगा, ग्लूकोज बिस्किट, कैडबरी के उत्पाद फाइव स्टार, डेरी मिल्क, बॉर्नविटा मिल्क पाउडर, इकलेयर चॉकलेट, मिल्क ट्रीट, जेम्स, लेस्ले की मिल्क चॉकलेट, मैगी, टोमेटो सॉस, नेस्ले बोरबन बिस्किट, ब्रिटानिया कंपनी के उत्पाद ब्रिटानिया 50-50, जिगजाग, गुड्डे और नाइस टाइम बिस्किट, प्रिया गोल्ड क्लासिक क्रीम, स्नीकाई सीएनसी कोकोनट बिस्किट, रिंगली के सेंटर फ्रेश, न्यू ट्रीन महालेक्टो, जेम्स और कैंडीमैन, मिंटो पेरीज बिगो, केपी फूड परपेटी के विभिन्न उत्पादों में कोड डाला है।

भारत में खाद्य उत्पादकों कम्पनियों द्वारा शाकाहारी समाज को मांसाहारी उत्पाद धोखाधड़ी से बेचने के षड़यंत्र में धार्मिक संतों एवं बुद्धि जीवी जनों ने अपने स्तर पर प्रयास किये है। समाधिस्थ जैनाचार्य विद्यासागर महाराज ने जागरूकता के अनेक अभियान चलायें। वर्तमान में उनके शिष्य मुनि राजों एवं आर्यिकाओं द्वारा यह अभियान चलाया जा रहा है। गत दो वर्ष पूर्व राघौगढ़ नगर में आर्यिका निष्काम मती, विरत मती एवं तथा मती का वर्षायोग चातुर्मास हुआ। आर्यिका संघ ने लगातार चार माह तक जागरूकता अभियान चलाकर 5 वर्ष से 20 वर्ष तक के युवकों को आजीवन फास्ट फूड, मैगी, बर्गर, चाउमिन, पिज्जा सहित इन कंपनियों के उत्पाद बिस्किट, चाकलेट आदि के त्याग की प्रतिज्ञा दिलायी। विचारणीय विषय यह है कि एक सौ चालीस करोड़ की जनसंख्या बाले देश में सौ, पांच सौ या एक हजार को प्रतिज्ञा दिलाने से सुधार नहीं नहीं होगा। जब तक केन्द्र सरकार इस धोखाधड़ी को रोकने कठोर कदम नहीं उठायेगी।


नोट:-लेखक वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार एवं भारतीय जैन मिलन के राष्ट्रीय वरिष्ठ पत्रकार हैं।


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