कृष्णमोहन झा

एक लंबे समय तक सस्पेंस बनाए रखने के बाद कांग्रेस के नंबर दो नेता राहुल गांधी ने आखिरकार रायबरेली लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से अपना नामांकन दाखिल कर दिया । उधर दूसरी ओर अमेठी निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस ने किशोरी लाल शर्मा को अपना उम्मीदवार घोषित किया है। गौरतलब है कि पिछले कई दिनों से यह अटकलें लगाई जा रही थीं कि अमेठी से राहुल गांधी भाजपा उम्मीदवार और केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी की चुनौती स्वीकार करेंगे और प्रियंका गांधी वाड्रा रायबरेली से कांग्रेस प्रत्याशी होंगी लेकिन नामांकन की आखरी तिथि के एक दिन पूर्व कांग्रेस ने यह चौंकाने वाला फैसला लेकर भाजपा को राहुल गांधी पर निशाना साधने का यह मनचाहा अवसर क्यो उपलब्ध करा दिया ,यह समझ के परे है। अब यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या राहुल गांधी ने रायबरेली से चुनाव लडने का फैसला इसलिए किया क्योंकि उन्हें 2019 की भांति इन लोकसभा चुनावों में भी अमेठी में भाजपा उम्मीदवार स्मृति ईरानी के हाथों अपनी हार की आशंका सता रही थीं। इसमें दो राय नहीं हो सकती कि अगर अमेठी में राहुल गांधी को अपनी जीत का पूरा भरोसा होता तो स्मृति ईरानी के हाथों पांच वर्ष पूर्व मिली हार का बदला लेने के लिए इन चुनावों में वे अमेठी से ही किस्मत आजमाने का साहस जुटाते लेकिन उन्होंने रायबरेली से नामांकन दाखिल कर स्वयं ही यह साबित कर दिया है कि उन्हें अपनी मां सोनिया गांधी द्वारा खाली की गई रायबरेली में अपनी जीत की बेहतर संभावनाएं दिखाई दे रही हैं।

गौरतलब है कि रायबरेली से 2004 से 2019 तक के लोकसभा चुनावों में सोनिया गांधी जीतती रही हैं परन्तु अब वे राजस्थान से राज्यसभा में जा चुकी हैं। सोनिया गांधी से पहले भी रायबरेली की सीट पर कांग्रेस का कब्जा रहा है। इस निर्वाचन क्षेत्र में 16 बार कांग्रेस ने जीत हासिल की है। पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी के पति फ़ीरोज़ गांधी ने भी रायबरेली से ही चुनाव जीत कर लोकसभा में प्रवेश किया था। स्वर्गीय इंदिरा गांधी रायबरेली से ही जीत हासिल कर लोकसभा सदस्य बनीं। गांधी परिवार के करीबी रहे शीला कौल और अरुण नेहरू भी रायबरेली से ही लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए। जाहिर सी बात है कि रायबरेली को सुरक्षित क्षेत्र मानकर ही राहुल गांधी ने यहां से चुनाव लडने का फैसला किया। उनके विरुद्ध भाजपा ने दिनेश सिंह को चुनाव मैदान में उतारा है जो 2019 में भी यहां से क़िस्मत आजमा चुके हैं । तब उन्हें सोनिया गांधी के हाथों हार का सामना करना पड़ा था। उधर अमेठी में गांधी परिवार के निकट माने जाने वाले किशोरी लाल शर्मा को उम्मीदवार बनाए जाने से यह भी साफ हो गया है कि कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा इन लोकसभा चुनावों में भी किसी निर्वाचन क्षेत्र से किस्मत आजमाने की इच्छुक नहीं हैं। उन्हें इन चुनावों में भी अपने लिए कांग्रेस की स्टार प्रचारक की भूमिका ही रास आ रही है।

राहुल गांधी ने अमेठी छोड़ कर रायबरेली से चुनाव लडने का जो फैसला किया है उसे अगर भाजपा अमेठी से उनके पलायन के रूप में देख रही है तो इसके लिए भाजपा की आलोचना करना उचित नहीं होगा। दरअसल यह अवसर तो उसे राहुल गांधी ने ही उपलब्ध करा दिया है। अगर राहुल गांधी पहले ही रायबरेली से चुनाव लडने का मन बना चुके थे तो उन्हें अपनी मंशा को गोपनीय रख कर सस्पेंस बनाए रखने की कोई आवश्यकता नहीं थी। ऐसा प्रतीत होता है कि अमेठी से भाजपा द्वारा स्मृति ईरानी की उम्मीदवारी की घोषणा के बाद ही राहुल गांधी ने अपना चुनाव क्षेत्र बदलने का फैसला किया। स्वाभाविक रूप से यह मतलब निकाला गया कि अमेठी में स्मृति ईरानी के हाथों दुबारा हार की आशंका ने राहुल गांधी को अपना चुनाव क्षेत्र बदलने का फैसला लेने के लिए विवश किया। सवाल यह उठता है कि आज की तारीख में कांग्रेस जब यह दावा करती है कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा और न्याय यात्रा ने देश में उनकी लोकप्रियता में अपार वृद्धि की है तो वह अपार लोकप्रियता क्या अमेठी में उनकी जीत की संभावनाओं को बलवती नहीं बना सकती थी। इस सवाल का जवाब केवल कांग्रेस ही दे सकती है। अमेठी छोड़ कर रायबरेली से चुनाव लडने के राहुल गांधी के फैसले से अमेठी के कांग्रेस कार्यकर्ताओं का निराश होना भी स्वाभाविक है। कांग्रेस ने जिस तरह रायबरेली और अमेठी में लंबे समय तक अनिश्चय की स्थिति को बरकरार रखा उसने पार्टी कार्यकर्ताओं के उत्साह को भी प्रभावित किया होगा जिसका प्रभाव रायबरेली से अधिक अमेठी में दिखाई देगा।


नोट - लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।

 


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