कृष्णमोहन झा

देश में लोकसभा चुनावों की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। इसके साथ ही सभी राजनीतिक दलों का चुनाव प्रचार अभियान भी गति पकड़ने लगा है। केंद्र में सत्तारूढ़ राजग की मुखिया भारतीय जनता पार्टी के प्रचार अभियान के सामने उसके विरोधी दलों का प्रचार अभियान अभी भी फीका दिखाई दे रहा है। दरअसल इन लोकसभा चुनावों में विरोधी दलों को कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड रहा है जिनसे पार पाने का कोई रास्ता उन्हें नहीं सूझ रहा है। विरोधी दलों के नेताओं का भाजपा के प्रति बढ़ता आकर्षण सबसे बड़ी चुनौती है। कई विरोधी दलों के बड़े बड़े नेता भाजपा में शामिल हो चुके हैं और यह सिलसिला निकट भविष्य में थमने की कोई संभावना भी नजर नहीं आती। मतलब साफ है कि वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों में भाजपा ही उन्हें उनके सुरक्षित राजनीतिक भविष्य की गारंटी दे सकती है। ऐसा नहीं है कि विगत माहों में भाजपा के किसी नेता ने भाजपा विरोधी दल का दामन नहीं थामा है लेकिन भाजपा में शामिल होने वाले विरोधी नेताओं की संख्या भाजपा छोड़ कर जाने वाले नेताओं की तुलना में बहुत अधिक है। इतना ही नहीं, विरोधी दलों से भाजपा में आने वाले अनेक नेता पुराने दलों में महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां निभा रहे थे। विरोधी दलों के ऐसे वरिष्ठ नेताओं का भाजपा में शामिल होना निःसंदेह उनके लिए चिंता का विषय है और इससे उनके चुनाव अभियान का प्रभावित होना भी स्वाभाविक है।

25 से अधिक भाजपा विरोधी दलों के गठबंधन के पास एक भी ऐसा चेहरा नहीं है जिसके पास प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की करिश्माई लोकप्रियता को टक्कर देने का सामर्थ्य हो। मोदी अपने विशिष्ट अंदाज में जब अपना भाषण शुरू करते हैं तभी से मोदी मोदी के नारे गूंजना शुरू हो जाते हैं। इंडिया गठबंधन में यूं तो 25 से दल शामिल हैं परन्तु उसके किसी भी घटक के पास मोदी के समान प्रभावशाली वक्ता नहीं हैं। मोदी जितनी देर बोलते हैं उतनी देर मोदी मोदी के नारों से आकाश गूंजता रहता है। एक ओर उनकी आवाज़ में दमखम है तो दूसरी वे अपने बात को अकाट्य तर्कों के साथ सही साबित करने की कला में भी प्रवीण हैं। मोदी के आक्रमण के आगे विपक्ष असहाय नजर आता है। वास्तविकता तो यह है कि मोदी ने समूचे विपक्ष को बचाव की मुद्रा में ला दिया है और वह भी अंदर ही अंदर यह महसूस करने लगा है कि प्रधानमंत्री मोदी को लगातार तीसरी बार सत्ता में आने से रोकना उसके बस की बात नहीं है। जनता को बताने के लिए मोदी के पास उनकी सरकार की दस साल की उल्लेखनीय उपलब्धियां हैं , भविष्य के लिए योजनाएं हैं और साथ में हर योजना को निश्चित समय सीमा में अमलीजामा पहनाने की गारंटी भी है। सबसे बड़ी बात यह है कि देश की जनता को मोदी की हर गारंटी पर पूरा भरोसा है। दूसरी ओर कांग्रेस सहित अन्य विरोधी दलों की मुश्किल यह है कि वे सब्जबाग तो दिखा सकते हैं लेकिन उनके पूरे होने की गारंटी देना उनके लिए संभव नहीं है।

इन लोकसभा चुनावों में भाजपा सुनियोजित रणनीति के साथ मैदान में उतरी है।भाजपा की चुनावी रैलियों और रोड शो में उमड़ने वाली अपार भीड़ इस बात की परिचायक हैं कि उसे अपनी चुनावी रणनीति में पर्याप्त सफलता मिल रही है और चुनावी रणनीति में मिल रही इस सफलता से कार्यकर्ताओं का मनोबल और उत्साह दुगना होना स्वाभाविक है। दूसरी ओर विरोधी दलों के प्रचार अभियान में अभी भी वह उमंग, उत्साह और जोश दिखाई नहीं दे रहा है जो भाजपा के लिए चिंता का कारण बन जाए। विरोधी दलों के साथ दिक्कत यह है कि वे महंगाई, बेरोजगारी , किसानों की समस्यायों, भ्रष्टाचार को लेकर मोदी सरकार पर हमेशा से हमलावर होने के बावजूद इन चुनावों में इनमें से कोई भी एक मुद्दे को चुनावी मुद्दा बनाने में असफल सिद्ध हो रहे हैं। 25 से अधिक विरोधी दलों ने मिलकर इंडिया गठबंधन तो बना लिया परंतु वे जनता को यह संदेश नहीं दे पाए कि मोदी सरकार के विरुद्ध वे पूरी तरह एकजुट हैं। ईडी द्वारा दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को गिरफ़्तार किए जाने के बाद इंडिया गठबंधन के घटक दलों ने दिल्ली के रामलीला मैदान में रैली का आयोजन कर अपनी एकजुटता प्रदर्शित करने का प्रयास किया परन्तु वह मुद्दा आम जनता से जुड़ा नहीं था इसलिए विपक्ष उसके माध्यम से अपनी एकजुटता का संदेश देने में सफल नहीं हो सका। विपक्षी दलों की यह एक जुटता उनके चुनाव अभियान में नदारद है। इसमें कोई शक नहीं कि अगर हर लोकसभा सीट पर इंडिया गठबंधन ही चुनाव लड रहा होता तो विपक्ष कुछ बेहतर परिणामों की उम्मीद कर सकता था हालांकि तब भी बहुमत की उम्मीद करना तो दिवा स्वप्न से अधिक कुछ भी नहीं होता। अभी तो इंडिया गठबंधन के घटक दलों को अपनी ताकत बढ़ाने की चिंता अधिक है। ऐसा प्रतीत होता है कि विपक्ष भी अंदर ही अंदर यह मान चुका है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कोई काट उसके पास नहीं है। इलेक्टोरल बांड को लेकर भी विपक्ष ने मोदी सरकार पर आक्रामक होने की भरसक की परंतु जल्द ही उसे इस कड़वी हकीकत का अहसास हो गया कि यदि इलेक्टोरल बांड के माध्यम से विरोधी दलों ने भी कंपनियों से चुनावी चंदा हासिल किया है तो उन्हें इस मुद्दे पर सरकार को घेरने का नैतिक अधिकार नहीं है। दरअसल विपक्ष इन लोकसभा चुनावों में एक भी ऐसा मुद्दा नहीं खोज पाया है जिसके माध्यम से वह मोदी सरकार और उसकी मुखिया भाजपा को कड़ी चुनौती पेश कर सके। देश में लोकसभा चुनावों की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। इसके साथ ही सभी राजनीतिक दलों का चुनाव प्रचार अभियान भी गति पकड़ने लगा है ।केंद्र में सत्तारूढ़ राजग की मुखिया भारतीय जनता पार्टी के प्रचार अभियान के सामने उसके विरोधी दलों का प्रचार अभियान अभी भी फीका दिखाई दे रहा है। दरअसल इन लोकसभा चुनावों में विरोधी दलों को कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड रहा है जिनसे पार पाने का कोई रास्ता उन्हें नहीं सूझ रहा है। विरोधी दलों के नेताओं का भाजपा के प्रति बढ़ता आकर्षण सबसे बड़ी चुनौती है। कई विरोधी दलों के बड़े बड़े नेता भाजपा में शामिल हो चुके हैं और यह सिलसिला निकट भविष्य में थमने की कोई संभावना भी नजर नहीं आती। मतलब साफ है कि वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों में भाजपा ही उन्हें उनके सुरक्षित राजनीतिक भविष्य की गारंटी दे सकती है। ऐसा नहीं है कि विगत माहों में भाजपा के किसी नेता ने भाजपा विरोधी दल का दामन नहीं थामा है लेकिन भाजपा में शामिल होने वाले विरोधी नेताओं की संख्या भाजपा छोड़ कर जाने वाले नेताओं की तुलना में बहुत अधिक है। इतना ही नहीं, विरोधी दलों से भाजपा में आने वाले अनेक नेता पुराने दलों में महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां निभा रहे थे। विरोधी दलों के ऐसे वरिष्ठ नेताओं का भाजपा में शामिल होना निःसंदेह उनके लिए चिंता का विषय है और इससे उनके चुनाव अभियान का प्रभावित होना भी स्वाभाविक है।

25 से अधिक भाजपा विरोधी दलों के गठबंधन के पास एक भी ऐसा चेहरा नहीं है जिसके पास प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की करिश्माई लोकप्रियता को टक्कर देने का सामर्थ्य हो। मोदी अपने विशिष्ट अंदाज में जब अपना भाषण शुरू करते हैं तभी से मोदी मोदी के नारे गूंजना शुरू हो जाते हैं। इंडिया गठबंधन में यूं तो 25 से दल शामिल हैं परन्तु उसके किसी भी घटक के पास मोदी के समान प्रभावशाली वक्ता नहीं हैं। मोदी जितनी देर बोलते हैं उतनी देर मोदी मोदी के नारों से आकाश गूंजता रहता है। एक ओर उनकी आवाज़ में दमखम है तो दूसरी वे अपने बात को अकाट्य तर्कों के साथ सही साबित करने की कला में भी प्रवीण हैं। मोदी के आक्रमण के आगे विपक्ष असहाय नजर आता है। वास्तविकता तो यह है कि मोदी ने समूचे विपक्ष को बचाव की मुद्रा में ला दिया है और वह भी अंदर ही अंदर यह महसूस करने लगा है कि प्रधानमंत्री मोदी को लगातार तीसरी बार सत्ता में आने से रोकना उसके बस की बात नहीं है। जनता को बताने के लिए मोदी के पास उनकी सरकार की दस साल की उल्लेखनीय उपलब्धियां हैं , भविष्य के लिए योजनाएं हैं और साथ में हर योजना को निश्चित समय सीमा में अमलीजामा पहनाने की गारंटी भी है। सबसे बड़ी बात यह है कि देश की जनता को मोदी की हर गारंटी पर पूरा भरोसा है। दूसरी ओर कांग्रेस सहित अन्य विरोधी दलों की मुश्किल यह है कि वे सब्जबाग तो दिखा सकते हैं लेकिन उनके पूरे होने की गारंटी देना उनके लिए संभव नहीं है।

इन लोकसभा चुनावों में भाजपा सुनियोजित रणनीति के साथ मैदान में उतरी है।भाजपा की चुनावी रैलियों और रोड शो में उमड़ने वाली अपार भीड़ इस बात की परिचायक हैं कि उसे अपनी चुनावी रणनीति में पर्याप्त सफलता मिल रही है और चुनावी रणनीति में मिल रही इस सफलता से कार्यकर्ताओं का मनोबल और उत्साह दुगना होना स्वाभाविक है। दूसरी ओर विरोधी दलों के प्रचार अभियान में अभी भी वह उमंग, उत्साह और जोश दिखाई नहीं दे रहा है जो भाजपा के लिए चिंता का कारण बन जाए। विरोधी दलों के साथ दिक्कत यह है कि वे महंगाई, बेरोजगारी , किसानों की समस्यायों, भ्रष्टाचार को लेकर मोदी सरकार पर हमेशा से हमलावर होने के बावजूद इन चुनावों में इनमें से कोई भी एक मुद्दे को चुनावी मुद्दा बनाने में असफल सिद्ध हो रहे हैं। 25 से अधिक विरोधी दलों ने मिलकर इंडिया गठबंधन तो बना लिया परंतु वे जनता को यह संदेश नहीं दे पाए कि मोदी सरकार के विरुद्ध वे पूरी तरह एकजुट हैं। ईडी द्वारा दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को गिरफ़्तार किए जाने के बाद इंडिया गठबंधन के घटक दलों ने दिल्ली के रामलीला मैदान में रैली का आयोजन कर अपनी एकजुटता प्रदर्शित करने का प्रयास किया परन्तु वह मुद्दा आम जनता से जुड़ा नहीं था इसलिए विपक्ष उसके माध्यम से अपनी एकजुटता का संदेश देने में सफल नहीं हो सका। विपक्षी दलों की यह एक जुटता उनके चुनाव अभियान में नदारद है। इसमें कोई शक नहीं कि अगर हर लोकसभा सीट पर इंडिया गठबंधन ही चुनाव लड रहा होता तो विपक्ष कुछ बेहतर परिणामों की उम्मीद कर सकता था हालांकि तब भी बहुमत की उम्मीद करना तो दिवा स्वप्न से अधिक कुछ भी नहीं होता। अभी तो इंडिया गठबंधन के घटक दलों को अपनी ताकत बढ़ाने की चिंता अधिक है। ऐसा प्रतीत होता है कि विपक्ष भी अंदर ही अंदर यह मान चुका है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कोई काट उसके पास नहीं है। इलेक्टोरल बांड को लेकर भी विपक्ष ने मोदी सरकार पर आक्रामक होने की भरसक की परंतु जल्द ही उसे इस कड़वी हकीकत का अहसास हो गया कि यदि इलेक्टोरल बांड के माध्यम से विरोधी दलों ने भी कंपनियों से चुनावी चंदा हासिल किया है तो उन्हें इस मुद्दे पर सरकार को घेरने का नैतिक अधिकार नहीं है। दरअसल विपक्ष इन लोकसभा चुनावों में एक भी ऐसा मुद्दा नहीं खोज पाया है जिसके माध्यम से वह मोदी सरकार और उसकी मुखिया भाजपा को कड़ी चुनौती पेश कर सके।


नोट - लेखक राजनैतिक विश्लेषक है।


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