तकनीक, समयबद्ध जाँच और न्याय प्रदान करना नए आपराधिक कानूनों के मूल सिद्धांत – केन्द्रीय गृह सचिव गोविंद मोहन

भोपाल : रविवार, नवम्बर 9, 2025, 2025/ गृह मंत्रालय, भारत सरकार और राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी, भोपाल ने तीन नए आपराधिक कानूनों पर 8-9 नवंबर, 2025 को भोपाल में दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया। सम्मेलन में सभी राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के 120 प्रतिभागियों ने भाग लिया, जिसमें आपराधिक न्याय प्रणाली के तीन प्रमुख स्तंभों – न्यायपालिका, अभियोजन और पुलिस – पर चर्चा की गई। सम्मेलन के रिसोर्स पर्सन्स को शैक्षणिक संस्थानों और सेवारत वरिष्ठ अधिवक्ताओं से चुना गया था।

केन्द्रीय गृह सचिव, गोविंद मोहन ने दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत सरकार एक सुरक्षित, पारदर्शी और साक्ष्य-आधारित आपराधिक न्याय प्रणाली का निर्माण कर रही है। केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह के मार्गदर्शन में, देश ने त्वरित न्याय के एक नए युग में प्रवेश किया है। उन्होंने दोहराया कि नए आपराधिक कानूनों का उद्देश्य भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली को उपनिवेशवाद से मुक्त करना और इसे अधिक पीड़ित-केंद्रित और प्रौद्योगिकी-सक्षम बनाना है। गृह सचिव ने राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी, भोपाल द्वारा इन कानूनों के कार्यान्वयन में किए गए महत्वपूर्ण संस्थागत योगदान की सराहना की, जिसने नए ढांचे के तहत पेश किए गए प्रमुख तकनीकी नवाचारों के लिए मॉडल नियमों / मानक संचालन प्रक्रियाओं का मसौदा तैयार किया है। इनमें ई-साक्ष्य, ई-समन, सामुदायिक सेवा और न्याय श्रुति शामिल हैं।

केन्द्रीय गृह सचिव ने कहा कि प्रौद्योगिकी नए आपराधिक कानूनों का आधार है, जिसका उद्देश्य लंबे समय से चली आ रही देरी की समस्या का समाधान कर एक त्वरित और अधिक कुशल न्याय प्रणाली सुनिश्चित करना है। नए कानूनों में जाँच, मुकदमे और अन्य प्रक्रियात्मक चरणों में देरी को कम करने के लिए कई प्रावधान शामिल किए गए हैं। उन्होंने कहा कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय की ई-समिति ने नए कानूनों के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए आवश्यक तकनीकी एकीकरण को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

केन्द्रीय गृह सचिव ने कहा कि अब हमारा ध्यान तीन नए आपराधिक कानूनों के तहत शुरू किए गए सुधारों को निरंतर अपनाने, उनमें लगातार सुधार करने और उन्हें संस्थागत बनाने पर केंद्रित होना चाहिए। राज्य सरकारों को कार्यान्वयन की प्रगति का आंकलन करने, परिचालन संबंधी बाधाओं की पहचान करने और बदलती न्यायिक एवं तकनीकी आवश्यकताओं के अनुरूप नियमों, अधिसूचनाओं और मानक संचालन प्रक्रियाओं (SOP) को समय पर अपडेट करने के लिए डेडिकेटेड निगरानी तंत्र स्थापित करने चाहिए। पुलिस विभागों को जाँच और अभियोजन वर्कफ्लो के पूर्ण डिजिटलीकरण को प्राथमिकता देनी चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ई-साक्ष्य, ई-समन और ICJS जैसी प्रणालियों का उपयोग संचालन के डिफ़ॉल्ट मोड के रूप में किया जाए।

माननीय सर्वोच्च न्यायालय की ई-समिति, राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी और राज्य न्यायिक अकादमियों के मार्गदर्शन में, न्यायपालिका को न्यायिक प्रक्रिया के डिजिटलीकरण में प्रयास जारी रखने चाहिए और पुलिस एवं अभियोजन मंचों के साथ न्यायालय प्रणालियों का पूर्ण एकीकरण सुनिश्चित करना चाहिए। पुलिस, अभियोजन, फोरेंसिक, कारागार और न्यायपालिका जैसे स्तंभों के बीच नियमित फीडबैक लूप को वास्तविक समय में समस्या समाधान और डिजिटल वर्कफ़्लो में सुधार के लिए संस्थागत रूप दिया जाना चाहिए। नए कानूनों के तहत परिकल्पित एक आधुनिक, कुशल और प्रौद्योगिकी-सक्षम आपराधिक न्याय प्रणाली के दृष्टिकोण को पूरी तरह से साकार करने के लिए, सभी हितधारकों को सामूहिक रूप से सहयोग, डेटा-आधारित निर्णय लेने और निरंतर नवाचार की संस्कृति को बढ़ावा देना चाहिए।

राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी के निदेशक, माननीय न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस ने कहा कि यह एक अनूठा अवसर है जहाँ आपराधिक न्याय प्रणाली के तीन स्तंभ – पुलिस, अभियोजन और न्यायपालिका – एक साथ आए। उन्होंने संयुक्त क्षमता निर्माण कार्यक्रम के विचार के लिए गृह मंत्रालय की सराहना की। कार्यान्वयन में जाँचकर्ताओं, अभियोजकों और न्यायपालिका के सामने आने वाली चुनौतियों के बारे में बोलते हुए माननीय न्यायमूर्ति बोस ने नए तकनीकी नवाचारों, ICT एप्लीकेशंस और नए फ्रेमवर्क के तहत शुरू की गई अवधारणाओं के साथ तालमेल बनाए रखने के महत्व पर ज़ोर दिया। उन्होंने दोहराया कि इस तरह के क्षमता निर्माण कार्यक्रम प्रतिभागियों को नए कानूनी और तकनीकी परिदृश्य के बारे में सीखने, सहयोग करने और अपनी समझ को मज़बूत करने का एक महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करते हैं।

 

 

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