राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा है कि अगर हमें विश्वगुरु और विश्वामित्र बनना है तो हमें अपने दृष्टिकोण के आधार पर अपना रास्ता खुद बनाना होगा लेकिन हम आंख मूंद कर आगे नहीं बढ़ सकते। सौभाग्य से हमारा दृष्टिकोण पारंपरिक है। जीवन के प्रति यह दृष्टिकोण सनातन है। यह दृष्टिकोण हमारे पूर्वजों के हजारों वर्षों के अनुभवों से आकार लेता है। विगत कुछ माहों में अमेरिका ने व्यापार शुल्क और आव्रजन संबंधी जो घोषणाएं की हैं उसे देखते हुए संघ प्रमुख के इस बयान को अत्यंत महत्वपूर्ण माना जा रहा है। उल्लेखनीय है कि हाल में ही नई दिल्ली में संघ के त्रिदिवसीय कार्यक्रम में दिए गए अपने उद्बोधन में भी मोहन भागवत ने इस बात पर विशेष जोर दिया था कि अंतर्राष्ट्रीय व्यापार किसी तरह के दबाव में नहीं होना चाहिए। भागवत ने दो टूक लहजे में कहा था कि दुनिया सौदों और अनुबंधों से नहीं बल्कि एकजुटता से चलती है।
संघ प्रमुख ने एक पुस्तक के विमोचन समारोह में मुख्य अतिथि की आसंदी से कहा कि भारत और अन्य देश आज जिन समस्याओं का सामना कर रहे हैं वह उस व्यवस्था का परिणाम है जो विगत दो हजार वर्षों से सुख और विकास के खंडित दृष्टिकोण पर आधारित है। संघ प्रमुख ने कहा कि वर्तमान हालातों से बाहर निकलने के लिए हमें सनातन दृष्टिकोण का पालन करते हुए अपना रास्ता खुद बनाना होगा। संघ प्रमुख ने अपनी इस बात को रेखांकित किया कि जो जरूरी है वो करना ही होगा लेकिन हम आंख मूंद कर आगे नहीं बढ़ सकते। संघ प्रमुख ने कहा कि हम इन हालात से बाहर निकलने का रास्ता खोजने में सक्षम हैं लेकिन भविष्य में हमें फिर इस स्थिति का सामना करना पड़ सकता है क्योंकि इस खंडित दृष्टि में “मैं और बाकी दुनिया” या “हम और वे” की सोच रहती है।
संघ प्रमुख ने अपने भाषण में तीन वर्ष पूर्व एक अमेरिका के एक प्रमुख व्यक्ति के साथ हुई बातचीत का उल्लेख करते हुए बताया कि उन्होंने सुरक्षा, अर्थव्यवस्था, आतंकवाद निरोध सहित अनेक क्षेत्रों में भारत और अमेरिका के बीच सहयोग और सहभागिता की संभावनाओं की बात की लेकिन उनका जोर केवल इस बात पर था कि इससे अमेरिका के हित प्रभावित नहीं होना चाहिए। संघ प्रमुख ने किसी का नाम लिए बिना कहा कि” हर किसी के अलग-अलग हित हैं इसलिए यह टकराव तो चलता रहेगा। सिर्फ राष्ट्रीय हित मायने नहीं रखते। मेरा अपना भी हित है। मैं सब कुछ अपने हाथ में रखना चाहता हूं।”हमें इस स्थिति को ध्यान में रखते हुए ही अपना रास्ता खुद बनाना होगा। संघ प्रमुख ने कहा कि धर्म अर्थ काम और मोक्ष , इन्हीं जीवन मूल्यों के आधार पर समाज का संतुलित विकास संभव है। संघ प्रमुख ने कहा कि भारत को जीवन के चार लक्ष्यों धर्म अर्थ काम और मोक्ष के सदियों पुराने दृष्टि कोण का पालन करना चाहिए जो धर्म से बंधा हो और यह सुनिश्चित करता हो कि कोई पीछे न रहे। भागवत ने अर्थ और काम को जीवन में अनिवार्य बताते हुए कहा कि इनका धर्म से बंधे होना आवश्यक है।
संघ प्रमुख ने जोर देकर कहा कि भारत ही एक मात्र ऐसा देश है जिसने पर्यावरणीय प्रतिबद्धताओं को पूरी तरह निभाया है। उन्होंने कहा कि अगर हमें हर टकराव में लड़ना होता तो हम 1947 से लगातार लड़ते रहते लेकिन हमने यह सब सहन किया । हमने कई बार उन लोगों की भी मदद की जो हमारी नीतियों का विरोध करते थे।
कृष्णमोहन झा (लेखक राजनैतिक विश्लेषक है)