मुंबई : शनिवार, जून 22, 2024/ सिनेमा प्रेमियों और जोशीले लोगों, अपनी सांस थाम कर रखिए! 18वें मुंबई अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (एमआईएफएफ) में अपनी सर्वश्रेष्ठ फिल्मों, फिल्म निर्माताओं और तकनीशियनों के लिए बहुप्रतीक्षित पुरस्कार दिए जा रहे हैं, जिन्होंने अपनी बेहतरीन कृतियों से दर्शकों और निर्णायक मंडल दोनों को मंत्रमुग्ध कर दिया है। 18वें संस्करण के समापन के साथ ही हम आपके लिए विजेताओं की सूची लेकर आए हैं। तो चलिए जश्न की शुरुआत करते हैं!

निष्ठा जैन द्वारा निर्देशित भारतीय फिल्म ‘द गोल्डन थ्रेड’ ने एमआईएफएफ 2024 में सर्वश्रेष्ठ डॉक्यूमेंट्री के लिए प्रतिष्ठित गोल्डन कोंच पुरस्कार जीता। यह फिल्म औद्योगिक क्रांति के अंतिम अवशेषों पर आर्थिक बदलाव की ताकतों के प्रभाव के प्रति श्रद्धांजलि और टिप्पणी दोनों है। दक्षिण एशिया के सबसे पुराने और सबसे बड़े फिल्म महोत्सव में नॉन-फिक्शन के लिए सर्वश्रेष्ठ डॉक्यूमेंट्री के रूप में चुनी गई यह फिल्म न केवल मनुष्य और मशीन के बीच के रिश्ते को दर्शाती है, बल्कि यह भी सवाल उठाती है कि पूंजीवाद मनुष्य को केवल उसके श्रम के बराबर कैसे मानता है।

शीर्ष पुरस्कार की घोषणा करते हुए निर्णायक मंडल ने कहा, "फिल्म में दर्शाई गई शानदार कल्पना और ध्वनि एक सुंदर कहानी गढ़ती है जो हमें याद दिलाती है कि क्यों वृत्तचित्र अभी भी एक आकर्षक कला का रूप है।" पुरस्कार में एक स्वर्ण शंख (गोल्डन कोंच), प्रमाण पत्र और 10 लाख रुपये का नकद पुरस्कार दिया जाता है।

एस्टोनिया की वेरा पिरोगोवा द्वारा निर्देशित लघु फिल्म ‘सॉर मिल्क’ को सर्वश्रेष्ठ अंतर्राष्ट्रीय लघु कथा फिल्म (शॉर्ट फिक्शन फिल्म) का पुरस्कार मिला। इस पुरस्कार में रजत शंख (सिल्वर कोंच) और 5 लाख रुपये का नकद पुरस्कार दिया जाता है।

सॉर मिल्क ने मां और बेटे के बीच के जटिल बंधन को बहुत ही खूबसूरती से दर्शाया है, जो उम्मीद और निराशा से भरपूर एक कहानी है। फिल्म का सूक्ष्म और फिर भी कुशल निर्देशन दर्शकों को पारिवारिक संघर्ष और विकास की एक बेहतरीन कहानी के माध्यम से मार्गदर्शन करता है, जहां अनकही भावनाएं यात्रा को एक आकार देती हैं। यह फिल्म दर्शाती है कि एक मां और बेटे के बीच के असली बंधन भी कभी-कभी दूध की तरह फट सकते हैं।

टोमेक पोपाकुल, कासुमी ओजेकी द्वारा निर्देशित पोलैंड की फिल्म ‘जिमा’ ने सर्वश्रेष्ठ अंतर्राष्ट्रीय एनिमेशन फिल्म का पुरस्कार जीता। इस पुरस्कार में रजत शंख और 5 लाख रुपये का नकद पुरस्कार दिया जाता है।

फिल्म में एक मछली पकड़ने वालों के गांव को दिखाया गया है, जहां हिंसा और गर्मजोशी दोनों है, क्योंकि मनुष्य और जानवर दोनों ही अपनी तरह के लोगों के साथ सह-अस्तित्व के लिए संघर्ष करते हैं, जो एक जोशीले और साहसी लोगों की एनिमेटेड कहानी है। इसमें एक समान व्यवहार (मोनोक्रोमैटिक ट्रीटमेंट) की सादगी एक जादुई, प्रायः भावपूर्ण गहरे रंग की अंतर्निहित दृश्य कथा है जिसमें रंग का एक मौन के समान होता है, दर्द के साथ-साथ शर्म के होने के संकेत भी दिखते हैं, कुल मिलाकर यह एक निराशाजनक लेकिन रोमांचकारी कहानी है, जैसे कि यह किसी अज्ञात शीत भूमि की लोककथा हो।

जापान के लियाम लोपिंटो द्वारा निर्देशित ‘द ओल्ड यंग क्रो’ ने सबसे नवीन/प्रयोगात्मक फिल्म के लिए “प्रमोद पति पुरस्कार” जीता है। इस पुरस्कार में ट्रॉफी और 1 लाख रुपये का नकद पुरस्कार दिया जाता है।

'द यंग ओल्ड क्रो' कई द्वंद्वों की एक आविष्कारशील, जादुई कहानी है, जिसमें भाषाओं, संस्कृतियों, पीढ़ियों, जीवित और मृत लोगों, यहां तक कि एनीमेशन और लाइव एक्शन फिल्म के माध्यमों द्वारा परिभाषित दो दुनिया नजर आती हैं। यह रचनात्मक बहुरूपदर्शक होने के साथ-साथ जटिल परतों के भीतर पुरानी यादों, परिवार, हानि, अलगाव और मृत्यु को शामिल करते हुए भावनात्मक बनावट की एक उत्कृष्ट कृति को शामिल करने में भी कामयाब होती है।

‘लवली जैक्सन’ टूटे सपनों, क्षमा और एक मां के प्यार की एक दिलचस्प कहानी है, लेकिन अंततः यह दिखाया गया है कि कैसे मानवीय भावना भारी अन्याय के सामने साहस और लचीलापन बनाए रख सकती है, कैसे एक आदमी अपनी असहनीय परिस्थितियों से ऊपर उठ सकता है और न केवल सबसे बुरे हालात का सामना करने की ताकत पा सकता है, बल्कि दूसरों के लिए आशा और मुक्ति की किरण बन सकता है। जूरी न केवल फिल्म की आध्यात्मिकता से बल्कि इस आकर्षक कहानी को बताने के लिए इस्तेमाल की गई असामान्य रूप से रचनात्मक तकनीकों से भी प्रभावित हुई।

निर्मल चंद्र डंडरियाल द्वारा निर्देशित ‘6-ए आकाश गंगा’ ने राष्ट्रीय प्रतियोगिता खंड में सर्वश्रेष्ठ वृत्तचित्र फिल्म (60 मिनट से अधिक) के लिए सिल्वर कोंच पुरस्कार जीता। पुरस्कार में रजत शंख (सिल्वर कोंच) और 5 लाख रुपये का नकद पुरस्कार दिया जाता है।

यह फिल्म एक आकर्षक अंतरंग वृत्तचित्र है जिसमें एक अदृश्य नायक है जो आपको सम्मोहित करके महान संगीतकार अन्नपूर्णा देवी की एकांतप्रिय और संरक्षित दुनिया में ले जाता है। उनकी चमक और प्रतिभा छिपी रह जाती अगर बांसुरी वादक नित्यानंद हल्दीपुर द्वारा इस अंतरंग कहानी को नहीं सुनाया जाता। नित्यानंद हल्दीपुर इस महान संगीतकार के शिष्य और द्वारपाल थे। वह हमें एक प्रसिद्ध प्रतिभाशाली संगीतकार, गुरु, महिला और पत्नी की आकर्षक कहानी बताते हुए कदम दर कदम अपनी दुनिया में ले जाता है, जिसकी कलात्मक और व्यक्तिगत जिंदगी ने बार-बार अप्रत्याशित मोड़ लिए, जिससे कोई भी व्यक्ति विस्मय में पड़ जाता है और खासा प्रभावित होता है।

बरखा प्रशांत नाइक द्वारा निर्देशित ‘साल्ट’ को राष्ट्रीय प्रतियोगिता खंड में सर्वश्रेष्ठ भारतीय लघु कथा फिल्म (30 मिनट तक) के लिए सिल्वर कोंच पुरस्कार मिला। इस पुरस्कार में रजत शंख और 3 लाख रुपये का नकद पुरस्कार दिया जाता है।

एक मार्मिक और खूबसूरती से गढ़ी गई पिता-पुत्र की कहानी जो मां से वंचित एक परिवार में तनाव और खामोश दुःख की तस्वीर खींचती है और कुछ मूल और बड़ी मुश्किलें आने की स्थिति में एक-दूसरे के दुःख को स्वीकार करना सीखने की प्रक्रिया को दर्शाती है। सिर्फ़ 11 मिनट में, बरखा एक असामान्य और नए तरीके से कामुकता की कोमल अंतर-पीढ़ीगत समझ को तलाशने में कामयाब हो जाती है क्योंकि यह जोड़ी जीवन में आगे बढ़ना सीखती है।

गौरव पति द्वारा निर्देशित ‘निर्जरा’ ने राष्ट्रीय प्रतियोगिता खंड में सर्वश्रेष्ठ भारतीय एनिमेशन फिल्म के लिए सिल्वर कोंच पुरस्कार जीता। इस पुरस्कार में एक रजत शंख और 3 लाख रुपये का नकद पुरस्कार दिया जाता है।

निर्जरा एक सुंदर ढंग से लिखी गई, संक्षिप्त और काव्यात्मक कहानी है कि कैसे दो भाई गंगा के घाटों पर अनुष्ठान करते हुए और अपनी मां की मृत्यु के दुख को भावनात्मक रूप से संभालते हुए फिर से एक हो जाते हैं। यह वास्तव में असाधारण है कि कैसे यह अच्छी तरह से लिखी गई और केवल 7 मिनट में पूरी की गई नाटकीयता हमें एक छोटे और उसके बड़े भाई के बीच के सूक्ष्म संबंधों पर विचार करने की अनुमति देती है। यह एक ऐसी भावनात्मक प्रतिध्वनि है, जिसकी खोज शायद ही भारतीय एनिमेशन में हुई हो।

इस स्पेशल मेंशन के साथ जूरी ने इस बात पर प्रकाश डाला कि कैसे यह आश्चर्यजनक रूप से सुंदर एनीमेशन शॉर्ट फिल्म पलायन और जलवायु परिवर्तन के गंभीर और जरूरी विषय पर बात करती है। पीले और काले रंग के रंगीन स्केप और ब्लीडिंग फ्रेम एक संपूर्ण कथा को उकेरते हैं जो जरूरी और मौलिक है; कहानी कहने के लिहाज से यह एक उल्लेखनीय उपलब्धि है।

एमआईएफएफ में बेस्ट डेब्यू डायरेक्टर के लिए दादा साहब फाल्के चित्रनगरी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इस पुरस्कार में एक ट्रॉफी और 1 लाख रुपये की पुरस्कार राशि दी जाती है।

श्रीमोई हमें नारीवादी कविता और ईरान की समृद्ध फिल्म संस्कृति के प्रति अपने जुनून से प्रेरित ईरान की अपनी अनूठी यात्रा पर ले जाती हैं, जिससे सेंसरशिप के सामने असहमति जताने वालों के सामने आने वाली चुनौतियों के बारे में हमारी आंखें खुलती हैं। जूरी इस फिल्म की भावनात्मक गहराई और सामाजिक प्रासंगिकता से बहुत प्रभावित हुई, खासकर इसलिए क्योंकि यह पहली फिल्म है।

एमआईएफएफ 2024 में सर्वश्रेष्ठ छात्र फिल्म के लिए आईडीपीए पुरस्कार ‘चांचिसोआ (एक्सेपेक्टेशन)’ को दिया गया है, जो एलवाचिसा च संगमा और दीपांकर दास द्वारा निर्देशित फिल्म है। पुरस्कार में एक ट्रॉफी और 1 लाख रुपये की पुरस्कार राशि दी जाती है।

यह खूबसूरत लघु कथा गारो हिल्स के मातृसत्तात्मक समाज में प्रकृति और परिवार के बीच पहचान, प्रेम और मानवीय संबंध की खोज करती है। फिल्म की शानदार सिनेमैटोग्राफी, जटिल कहानी और अभिनेताओं का अभिनय इस परिवार में बड़े पैमाने पर अंतर्निहित तनावों को सूक्ष्म तरीकों से व्यक्त करने के लिए सहज रूप से काम करता है; यह एक स्टूडेंट फिल्म के रूप में एक उल्लेखनीय उपलब्धि है।

श्रीमोई सिंह को उनकी फिल्म ‘एंड, टुवर्ड्स हैप्पी एलीज’ के लिए “एफआईपीआरईएससीआई इंटरनेशनल क्रिटिक जूरी अवार्ड” मिला।

“भारत में अमृत काल” पर सर्वश्रेष्ठ लघु फिल्म (15 मिनट तक)” का पुरस्कार एडमंड रैनसन द्वारा निर्देशित लाइफ इन लूम को दिया गया। पुरस्कार में एक ट्रॉफी, प्रमाण पत्र और 1 लाख रुपये की पुरस्कार राशि शामिल है।

एडमंड हमें भारत के सात अलग-अलग राज्यों के मास्टर बुनकरों और समुदायों के करीब ले जाते हैं। सदियों से ये कारीगर संरक्षक के रूप में काम करते रहे हैं और एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक कौशल को आगे बढ़ाते रहे हैं। जैसे-जैसे भारत अमृत काल में प्रवेश करता है, यह फिल्म इन समुदायों के सामने आने वाली सामाजिक-आर्थिक और जलवायु की चुनौतियों पर ध्यान केंद्रित करती है। इन समुदायों को सहायता प्रदान करने की आवश्यकता है ताकि शिल्प और इन समुदायों का भविष्य सुरक्षित हो सके।

‘बाबिन दुलाल’ और सूरज ठाकुर ने क्रमशः फिल्म ‘धोरपाटन: नो विंटर हॉलीडेज’ और फिल्म ‘इंटैंगल्ड’ के लिए संयुक्त रूप से सर्वश्रेष्ठ सिनेमैटोग्राफर का पुरस्कार जीता।

"धोरपाटन" नेपाली हिमालय की दुर्गम सुंदरता को कैद करने के लिए शानदार सिनेमैटोग्राफी का उपयोग करती है, जो एक कड़ी सर्दियों के दौरान एक परित्यक्त गांव में सह-अस्तित्व के लिए मजबूर आजीवन प्रतिद्वंद्वियों की इस अंतरंग कहानी को सामने लाती है। सावधानीपूर्वक फ्रेमिंग और विचारोत्तेजक रचना के माध्यम से, इस फिल्म में कैमरा कठोर जलवायु और बदलते परिदृश्यों की कठोर पृष्ठभूमि को केंद्रीय पात्रों के विस्तृत चित्रों के साथ जोड़ता है ताकि उम्र बढ़ने, अकेलेपन और नारीत्व के लचीलेपन के विषयों पर जोर दिया जा सके।

‘इंटैंगल्ड’ में कैमरा अन्ना की मृत्यु के दृश्य को फिल्माता है। शॉट्स बेहतरीन तरीके से बनाए गए हैं और कैमरा अच्छी तरह से जानता है कि कब आगे बढ़ना है और कब स्थिर रहना है, क्या दिखाना है और क्या छोड़ना है। तस्वीरें हमें अन्ना और उसके हताश परिवार के साथ अंतिम पड़ाव की ओर ले जाती हैं। फिल्म की दृश्य कविता और भावनात्मक गहराई वास्तव में असाधारण है। पुरस्कार में एक ट्रॉफी, प्रमाण पत्र और 3 लाख रुपये का नकद पुरस्कार शामिल है।

विग्नेश कुमुलाई और इरेन धर मलिक ने क्रमशः फिल्म ‘करपारा’ और ‘फ्रॉम द शैडोज’ के लिए संयुक्त रूप से सर्वश्रेष्ठ संपादक का पुरस्कार जीता।

"करपारा" में चिंतनशील संपादन शैली का उपयोग किया गया है जो समय और स्थान के गुजरने पर जोर देती है, ग्रामीण जीवन की शांत ध्यानपूर्ण लय के साथ प्रमुख पात्रों के काव्यात्मक दृश्यों को कुशलता से बुनती है। विशेष रूप से फिल्म में स्थिरता के क्षण हैं जो अक्सर सांसारिक चीजों को गंभीर बना देते हैं। यह एक अलग तरह का संपादन का दृष्टिकोण है जो दर्शकों को पात्रों और उनके वातावरण के साथ भावनात्मक रूप से जुड़ने के लिए आमंत्रित करता है। 'फ्रॉम द शैडोज' इस बात पर प्रकाश डालती है कि कैसे लड़कियां गायब हो जाती हैं - उनमें से कई, दिन-प्रतिदिन - पैसे के लिए तस्करी की जाती हैं। यह वृत्तचित्र पता लगाता है कि क्या चल रहा है, हमें कार्यकर्ताओं और पीड़ितों की ओर इशारा करते हुए बताता है कि कैसे उन्हें बिना किसी ताक-झांक वाली नजर के सामने लाना चाहिए। कलात्मक संपादन हमें आसानी से एक मामले से दूसरे मामले में, कार्यकर्ता से कलाकार तक, एक यात्रा से दूसरी यात्रा तक भटकने देता है, वृत्तचित्र फुटेज में मार्मिक पलों को खोजने के लिए एक उत्कृष्ट नाटकीयता गढ़ता है।

नीरज गेरा और अभिजीत सरकार ने संयुक्त रूप से फिल्म ‘द गोल्डन थ्रेड’ और ‘धरा का टेम (मिल्किंग का समय)’ के लिए बेस्ट साउंड डिजाइनर का पुरस्कार जीता।

गोल्डन थ्रेड, इस बात को पुरस्कृत की जाती है कि कैसे एक समर्पित साउंड क्रू द्वारा ध्वनि परिदृश्य पर ध्यान देकर कथा को आगे बढ़ाया जा सकता है, जो सबसे चुनौतीपूर्ण वातावरण – मशीनी शोर और खड़खड़ाहट से भरी एक रहस्यमय फैक्ट्री को पार करने के लिए दृढ़ संकल्पित है। ध्वनि डिजाइन प्रभावशाली ढंग से सख्त मशीनरी और मानव श्रम शक्ति की परस्पर गतिशील क्रिया के बारे में बताती है, जिससे एक आश्चर्यजनक लयबद्ध रोमांच का निर्माण होता है, इसमें कभी-कभी श्रमिकों की ताल के साथ तालमेल में और कभी-कभी अप्रत्याशित रूप से मौन सामने आता है जहां कोलाहल की उम्मीद होती है, एक आश्चर्यजनक सिम्फोनिक (स्वर की समानता) कथा यात्रा में परिणत होता है।

‘धरा का टेम’ में आप सुन सकते हैं कि दूध दुहने का समय कब है! ये आवाजें इस ग्रामीण परिवार की दिनचर्या को प्रभावित करती हैं और हमें पंजाब की यात्रा करने और उनके जीवन में भाग लेने का मौका देती हैं -जो बस सुनकर ही होता है! यह असाधारण श्रवण पृष्ठभूमि दृश्यों की पूरक है, जो फिल्म के समग्र प्रभाव और गहराई को बढ़ाती है। पुरस्कार में ट्रॉफी, प्रमाण पत्र और 3 लाख रुपये का नकद पुरस्कार शामिल है। अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता खंड के लिए कुल 25 फिल्मों का चयन किया गया, जिसमें वृत्तचित्र, लघु कथा और एनिमेशन फिल्मों के लिए अलग-अलग श्रेणियां शामिल हैं। इसी तरह, राष्ट्रीय प्रतियोगिता श्रेणी में 77 फिल्मों के बीच प्रतिस्पर्धा हुई।


इस खबर को शेयर करें


Comments