कृष्णमोहन झा

कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रुडो हाल में ही जी-20 समूह के सदस्य देशों के प्रधानमंत्रियों की बैठक में भाग लेने के लिए भारत आप थे परन्तु बैठक में अपनी मौजूदगी से वे कोई विशेष प्रभाव छोड़ने में सफल नहीं हो सके । बैठक के समापन के पश्चात ट्रुडो को उनके विमान में तकनीकी खराबी के कारण दिल्ली में दो दिन और रुकना पड़ा। बाद में कनाडा से दूसरा विमान आने पर वे स्वदेश रवाना हो सके।

नई दिल्ली में इस अतिरिक्त अवधि का प्रवास निश्चित रूप से उन्हें असहज स्थिति का सामना करने के लिए विवश कर रहा था क्योंकि बैठक में भाग लेने के लिए भारत आए सभी प्रधानमंत्री वापस जा चुके थे। ऐसा प्रतीत होता है कि जस्टिन ट्रुडो जब कनाडा से आए दूसरे विमान से स्वदेश रवाना हुए तब ही शायद वे मन ही मन यह तय कर चुके थे कि अपने देश पहुंचकर उन्हें भारत सरकार के विरुद्ध विषवमन का ऐसा अभियान प्रारंभ करना है जिससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि खराब हो। कनाडा पहुंचने के तत्काल बाद ट्रूडो ने पहला काम तो यह किया कि कनाडा के व्यापार प्रतिनिधि मंडल का अक्टूबर में होने वाला भारत - दौरा रद्द कर दिया। इसके बाद कनाडाई संसद हाउस आफ कामंस में एक बयान के जरिए भारत पर यह आरोप लगाया कि इसी साल 18 जून को कनाडा में हरदीप सिंह निज्जर की हत्या भारतीय खुफिया एजेंसियों ने कराई थी। यही नहीं,जस्टिन ट्रुडो की सरकार ने कनाडा में भारतीय दूतावास में पदस्थ एक राजनयिक को देश छोड़ कर जाने का आदेश दे दिया। इसके जवाब में भारत सरकार ने भी कनाडा के राजनयिक को भारत छोड़कर जाने का आदेश दे दिया जो कि स्वाभाविक था। इसके बाद जब कनाडा के हिंदू परिवारों को देश छोड़ कर जाने की धमकियां दी जाने लगीं तो कनाडा में रह रहे भारतीयों के लिए भारत सरकार ने यह एडवाइजरी भी जारी कि वे अपनी सुरक्षा के प्रति सचेत रहें।

भारत सरकार ने कनाडा पर दबाव बनाने के लिए वहां से भारत आने वाले नागरिकों के लिए अस्थायी रूप से वीजा देने पर भी रोक लगा दी। जाहिर सी बात है कि भारत को ये सख्त कदम उठाने के लिए ट्रूडो के मनगढ़ंत आरोप ने ही विवश किया और अब भारत और कनाडा के बीच संबंधों में इतनी कटुता पैदा हो चुकी है जिससे निकट भविष्य में मिटाना आसान नहीं है। इसके लिए ट्रूडो अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकते। सबसे बड़ी बात यह है कि कनाडा के प्रधानमंत्री ने जो आरोप लगाया है उसे साबित करने के लिए उनके पास पुख्ता सबूत नहीं हैं। लेकिन ट्रुडो शायद भारत के धैर्य की परीक्षा लेना चाहते हैं इसलिए रोजाना ही वे ऐसे कदम उठा रहे हैं जिनसे भारत को उत्तेजित करने में कामयाब हो सकें । ट्रूडो इस अभियान में पश्चिमी देशों का समर्थन प्राप्त करने की कोशिश में भी जुटे हुए हैं।यह अलग बात है कि उन्हें अपनी इन कोशिशों में कोई बड़ी सफलता हाथ नहीं लगी है क्योंकि अमेरिका जैसे देश कनाडा के साथ अपने संबंधों को भले ही तरजीह देते हों परन्तु आज की तारीख में वे भारत के साथ संबंध बिगाड़ने के लिए तैयार नहीं हैं। अपने हित साधने के लिए भारत के साथ संबंधों की अहमियत से वे भली भांति वाकिफ हैं। मजेदार बात तो यह है कि इस मामले में कनाडा के विपक्षी दल भी ट्रुडो का साथ देने के लिए तैयार नहीं हैं।

कनाडा के विपक्षी दल इस बात को लेकर भी प्रधानमंत्री ट्रूडो से अच्छे खासे नाराज हैं कि विगत दिनों संसद में उस 98 वर्षीय नाजी सैनिक का सम्मान किया गया जिसने द्वितीय विश्व युद्ध में ‌हिटलर के सैनिक के रूप में अनेक यहूदियों को मार डाला था। बताया जाता है कि इस नाजी सैनिक को संसद में स्पीकर ने आमंत्रित किया था और पक्ष विपक्ष के सभी सदस्यों ने उनके आह्वान पर ही खड़े होकर तालियों की गड़गड़ाहट से उनका सम्मान किया था। स्पीकर ने बाद में संसद में इस बात के लिए माफी मांगी कि उन्होंने उस नाजी सैनिक का अतीत जाने बिना ही उसको संसद में आमंत्रित किया। लेकिन विपक्ष स्पीकर की माफी से संतुष्ट नहीं हुआ और इस मामले में विपक्ष की नाराज़गी को शांत करने के लिए स्पीकर को इस्तीफा देना पड़ा।

विपक्ष अब यह सवाल उठा रहा है कि जब स्पीकर ने संसद में एक नाजी को सम्मानित करने का फैसला किया तो प्रधानमंत्री ट्रूडो के कार्यालय ने उसके बारे में पर्याप्त जानकारी क्यों नहीं जुटाई। कनाडा के लिए यह भी शर्मिन्दगी का विषय बन गया है कि संसद में यूक्रेन के राष्ट्रपति जलेंस्की की मौजूदगी में 98 वर्षीय नाजी सैनिक यारस्लोव हुंका नाजी सैनिक का सम्मान किया गया।

गौरतलब है कि जलेंस्की भी उस यहूदी समुदाय से ही आते हैं जिसके विरुद्ध द्वितीय विश्व युद्ध में ‌हिटलर की सेना ने सबसे ज्यादा अत्याचार किए थे। जस्टिन ट्रुडो ने यद्यपि यह तो स्वीकार किया है कि यारस्लोव हुंका को कनाडा की संसद में सम्मानित किया जाना संसद और देश के लिए शर्मिंदगी का विषय है परन्तु वे अपना बचाव करते हुए कहते हैं कि उनकी सरकार को संदर्भ की जानकारी नहीं थी। ट्रूडो का यह बयान विपक्षी कंजरवेटिव पार्टी द्वारा इस मामले में ट्रूडो को जिम्मेदार ठहराए जाने के बाद आया है। विपक्षी नेता का कहना है कि संसद में आमंत्रित अतिथियों के बारे में जानकारी रखना सरकार की जिम्मेदारी है और पूरे मामले में वे प्रधानमंत्री अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकते। उधर ट्रूडो ने अपने बचाव में यह तर्क दिया है कि सरकार की ओर से अगर पहले से जानकारी जुटाई जाएगी तो यह संसद के अधिकारों का हनन होगा। ट्रूडो अब कुछ भी कहें लेकिन यह तो जाहिर सी बात है कि इस मामले में ट्रूडो की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किरकिरी हुई है।

कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन इस सच्चाई से भी अच्छी तरह अवगत हैं कि भारत से पंगा लेने से न तो उनके देश का कोई हित नहीं होगा ,न ही देश में उनका राजनीतिक कद बढ़ेगा। कनाडा में तो उनकी लोकप्रियता का ग्राफ तेजी से नीचे की ओर जा रहा है। दरअसल जस्टिन ट्रुडो ने अपनी कुर्सी सलामत रखने के लिए भारत के साथ कनाडा के संबंधों को दांव पर लगा दिया है। गौरतलब है कि 2019 में संपन्न कनाडा के संसदीय चुनावों में उनके दल को स्पष्ट बहुमत न मिलने के कारण वे खालिस्तान समर्थक राजनीतिक दल न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी का समर्थन लेकर प्रधानमंत्री बने थे। उन चुनावों में 338 सदस्यीय हाउस आफ कामंस में ट्रूडो की पार्टी 158 सीटों पर ही जीत प्राप्त कर सकी थी जबकि सरकार बनाने का दावा पेश करने के लिए उन्हें 170 सदस्यों के समर्थन की आवश्यकता थी। तब प्रधानमंत्री की कुर्सी के लालच में उन्होंने न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी का समर्थन लेने से भी परहेज़ नहीं किया जिसने संसदीय चुनावों में 24 सीटें जीतीं थीं। इस पार्टी के समर्थन से ट्रूडो प्रधानमंत्री की कुर्सी पर तो काबिज हो गए लेकिन अब अपनी कुर्सी बचाने के लिए सहयोगी दल की सभी शर्तें मानना अब उनकी मजबूरी है ।

कनाडा में अगले संसदीय 2025 में होना हैं तब तक प्रधानमंत्री बने रहने के लिए उन्हें न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी के मुखिया जगमीत सिंह के इशारों पर‌ चलना होगा। गौरतलब है कि जगमीत सिंह को खालिस्तान समर्थक माना जाता है। उसकी शर्तें मानकर ट्रूडो अब अपने ही देश में बचाव की मुद्रा में आ चुके हैं। खालिस्तानी आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारत का हाथ होने का जो आरोप ट्रूडो ने लगाया है वह उनकी राजनीतिक मजबूरी का ही परिचायक है। सबसे हास्यास्पद बात तो है कि ट्रूडो ने बाकायदा यह दावा भी कर डाला कि कनाडा के पास इसके पुख्ता सबूत मौजूद हैं परन्तु बाद में उन्होंने बयान बदलते हुए कहा कि उन्होंने यह आरोप अमेरिका से मिली जानकारी के आधार पर लगाया था।

ट्रूडो कहते हैं कि हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारत की खुफिया एजेंसियों का हाथ होने की जो सूचनाएं सरकार को मिली थीं वे उन्होंने फाइव आईज के सदस्य देशों के साथ भी साझा की थी। भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा है कि भारत फाइव आईज ग्रुप का सदस्य नहीं है इसलिए हमारे साथ यह जानकारी साझा करने का तो सवाल ही नहीं उठता। जयशंकर ने अपने अमेरिका प्रवास में एक कार्यक्रम के मंच से ट्रूडो के आरोपों का सिलसिलेवार जवाब देते हुए स्पष्ट कहा है कि भारत सरकार की नीति किसी दूसरे देश के मामलों में हस्तक्षेप करने की कभी नहीं रही। निज्जर हत्याकांड में भारत का हाथ होने के आरोप से स्पष्ट इंकार करते हुए एस जयशंकर ने कहा है कि अपने आरोप की पुष्टि के लिए अगर कनाडा के पास कोई विशिष्ट और प्रासंगिक सूचना है तो वह भारत को उपलब्ध कराए। उन्होंने कनाडा सरकार के इस बयान को ग़लत बताया कि निज्जर की हत्या की जांच रिपोर्ट से भारत सरकार को पहले ही अवगत कराया। सरकार उस पर विचार करने के लिए तैयार है।

भारत के विदेश मंत्री ने दो टूक शब्दों में कहा कि कनाडा में राजनीतिक कारणों से पिछले कुछ सालों में अलगाववादी ताकतों , कट्टर पंथ से जुड़े संगठित अपराधों को बढ़ावा मिल रहा है। भारतीय राजनयिकों को धमकियां दी जा रही हैं। भारतीय दूतावास पर आए दिन हमले हो रहे हैं। भारत सरकार ने समय समय पर कनाडा सरकार को इस बारे में चेताया भी है। इसी महीने भारत में आयोजित जी-20 समूह के प्रधानमंत्रियों की बैठक में भाग लेने के लिए नई दिल्ली पहुंचे कनाडाई प्रधानमंत्री से संक्षिप्त बातचीत में भी प्रधानमंत्री मोदी ने यह मुद्दा उठाया था। इसके पहले भी भारत ने कनाडा को सौंपे डोजियर में खालिस्तान समर्थक आतंकवादियों को कनाडा में पनाह मिलने के सबूत दिए थे परन्तु कनाडा ने उन्हें नजर अंदाज किया। जिस खालिस्तान समर्थक हरदीप सिंह निज्जर को ट्रूडो कनाडाई नागरिक बता रहे हैं उसके बारे में कनाडा का मीडिया यह कह रहा है कि वह कोई संत नहीं था। अब ट्रूडो इस सच्चाई से वाकिफ हो चुके हैं कि एक खालिस्तानी आतंकवादी की हत्या के लिए भारत पर आरोप लगाकर उन्होंने कनाडा ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी किरकिरी करा ली है। अगर ट्रूडो भारत के साथ कनाडा के संबंधों को महत्वपूर्ण मानते हैं तो उन्हें यह स्वीकार करना होगा कि निज्जर की हत्या में भारत का होने का जो निराधार और मनगढ़ंत आरोप लगाया है उसके लिए उनके पास कोई पुख्ता सबूत नहीं हैं। ट्रूडो को इस ग़लती के लिए खुले दिल से न केवल खेद व्यक्त करना होगा अपितु अपने देश में अलगाववादी ताकतों और संगठित अपराधों की बढ़ती घटनाओं पर रोक लगाने के लिए सख्त कदम उठाना होगा। उन्हें इस हकीकत का अहसास होना चाहिए कि भारत के साथ जानबूझकर संबंध बिगाड़ने से कनाडा का कोई हित नहीं होगा, न ही कनाडा में उनकी लोकप्रियता में कोई इजाफा होगा।


नोट - लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

 


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