आलोक एम इन्दौरिया

मध्य प्रदेश जैसे राज्य में विगत 17 सालों से अधिक समय से सत्ता संभाल रही भाजपा की जन आशीर्वाद यात्रा की सभाओं और लाडली बहना सम्मेलनों में उमड़ी हुई भीड़ क्या सिर्फ भीड़ थी या फिर उनका वोटर ? इसे लेकर खुद बीजेपी और कांग्रेस दोनों में ही इसका मंथन जारी है । चुंकि चुनाव में अब चंद् दिन शेष बचे हैं इस कारण यह मुद्दा बहुत महत्वपूर्ण है की जन आशीर्वाद यात्रा और लाडली बहना सम्मेलनों में उमड़ी हुई भीड़ क्या भाजपा के वोट में परिवर्तित होगी? क्योंकि भाजपा का जीत का गणित इसी पर टिका हुआ है। वहीं कांग्रेस दृरा आयोजित ऐसी ही यात्राओं मे जुटी भीड़ को लेकर अपने कयास लगा रही है की क्या ये भीड उसके वोटर मे तब्दील होंगे य सिर्फ दर्शक थे।

मध्य प्रदेश में 2003 से भाजपा ने सत्ता में अपना चिमटा गाढा और ऐसा धूना रमाया की लगातार तीन बार भाजपा ही मध्य प्रदेश की सत्ता की आसंदी पर विराजमान रही । मगर 2018 में वह इससे चूक गयी और कमलनाथ के नेतृत्व मे कांग्रेस काबिज हो गयी और सरकार गति पकडती लेकिन सिंधिया की नाराजगी कांग्रेस के जहाज को ले डूबी और उनकी मदद से कांग्रेस की बनी हुई सरकार को गिराकर भाजपा सत्ता पर काबिज हो गई। अब नवंबर 2023 में मध्य प्रदेश में आम चुनाव है और जाहिर सी बात है कि हर राजनीतिक दल चुनावी शतरंज पर अपनी अपनी गोटी विछाने, शह और मात के खेल में लग गया है । ऐसा नहीं है की अकेली भाजपा ही इस खेल को खेल रही है बल्कि कांग्रेस समेत अन्य दल भी आओ चुनाव चुनाव खेलें के खेल में पूरी दम के साथ अपनी अपनी गोटी फिट करने में लगे हैं । मगर यह कड़वा सच है कि भाजपा खेल में फिलवक्त कांग्रेस से थोडा आगे निकल चुकी है । जहां प्रधानमंत्री मोदी, भाजपा सुप्रीमो अमित शाह, शिवराज सिंह आम जनता के बीच तेजी से पहुंच रहे हैं वहीं कांग्रेस के कप्तान कमलनाथ भी जिलों का दौरा करके कांग्रेस मे प्राण फूंक रहे हैं वहीं दिग्विजय सिंह जरूर बेहद सक्रियता के साथ तूफान खडा करने की कोशिश में लगे हुए।

कांग्रेस से सत्ता छीनने के बाद से ही भाजपा ने अपनी तैयारियां शुरू कर दी और वह चुनावी मोड में आ गई थी। उनके रणनीतिकारों ने जितनी भी योजनाएं बनाई और चलायीं वे जनता के हिसाब से नहीं थी बल्कि वोटर के हिसाब से बनाई थी। भाजपा की नजर में वोटर की दो ही श्रेणियां थी एक तो वह जो वोटर है और दूसरा वह जो वास्तविक वोटर है। भाजपा के रणनीतिकारों ने अपनी कुशल कारीगरी का नमूना दिखाते हुए जो भी योजनाएं बनाई वह वास्तविक वोटर के मददेनजर रखकर बनाई जिसका सीधा फायदा उसे मिला जो भाजपा का वोटर था । भाजपा ने वोटर की ऐसी कोई कैटेगरी नहीं छोड़ी जो उसे अनुग्रहित नहीं हुई हो । यानी शिवराज और उनकी भाजपा ने योजनाओं का ऐसा मकड़ जाल बुना जिसके भीतर उसका वोटर एक तरह से कैद होकर रह गया । इधर कांग्रेस भी 2023 मे हर हालत में सरकार बनाने के लिए कृतसंकल्पित दिखी और भाजपा के खिलाफ ऐंटी इनकंबैंसी का भरपूर फायदा उठाते हुये इसे कैश करने का थम से प्रयास किया‌। कांग्रेस ने इस ऐंटी इनकंबेसी का ऐसा तिलस्म खडा किया कि भाजपा हलकान हो गयी। इधर भाजपा ने सभी योजनाओं के माध्यम से समाज के अंतिम छोर वाले वोटर तक पहुंचने का प्रयास किया लेकिन शिवराज की लाडली बहना योजना गेम चेंजर साबित हुई और इस योजना का वोटर पर गहरा प्रभाव इसलिए पढ़ा क्योंकि इसका सीधा लाभ उसे मिल रहा है । इसी के चलते ऐसा माना जा रहा है की इससे लाभ लेने वाला रियल वोटर भाजपा की ओर झुक रहा है हालांकि इस बात से बहुत से लोग सहमत नहीं होंगे। कांग्रेस ने भी नेहले पर देहला जमाने का काम करते हुये नारी सम्मान योजना लांच कर भाजपा को घेरने का ठोस प्रयास किया।

इन सारी चीजों को कैश करने के लिए भाजपा ने 2018 की तरह इस बार भी जन आशीर्वाद यात्रा रेलिया निकाली और जो भीड के लिहाज से संतोषजनक रहीं। इसी तर्ज पर कांग्रेस ने भी सारे प्रदेश मे ऐसी ही यात्रा निकाली जिसमें कमलनाथ, दिग्गी राजा की सभाओं मे अच्छी भीड दिखी बाकी जगह यह औसत थी। इसके अतिरिक्त लाडली बहना सम्मेलनों में भी महिलाओं की अपार भीड़ को देखकर खुद संगठन भी हैरान था वही इस भीड़ के सैलाब ने विपक्षी दल को इस कारण हलकान कर डाला क्योंकि वह ऐंटी इनकंबैंसी के जहाज में बैठकर सत्ता पाने की यात्रा करने की जुगत में थी ।

2023 के विधानसभा चुनाव के ठीक पहले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की यात्रा और लाडली बहन सम्मेलन में उपस्थित भीड़ को लेकर फिलहाल भाजपा आगे निकल चुकी है ‌।लेकिन एक तर्क यह भी आ रहा है की ऐसी ही भीड़ 2018 के आम चुनावो को ठीक पहले निकली गई जन आशीर्वाद यात्राओं को समय में भी थी फिर शिवराज सरकार क्यों नहीं बना पाए? इसके पहले 2004 मे भाजपा की रैली और सभाओं मे भारी भीड़ देखी गयी मगर वह केन्द्र मे सरकार बनाने से चूक गयी क्योंकि वह भीड को बोट मे नही बदल पायी।

लेकिन इस बार हालत अलग हें भाजपा इसलिए नहीं चूकेगी क्योंकि इस बार की भीड़ का अधिकांश हिस्सा भीड़ नहीं बल्कि भाजपा का वह वोटर है जो कहीं ना कहीं किसी न किसी रूप में शिव के राज में लाभान्वित हुआ है और मंच से शिवराज और अन्य नेता जहाँ इस भीड को वोट मे तब्दील करने की जी तोड़ कोशिश कर रहे हैं तो वहीं कांग्रेस भी ऐसे किसी भी मौके को हाथ से नही जाने देने के लिये जी तोड मेहनत करनी रही। क्या ये भीड़ शिवराज के वोट मे तब्दील हो पायेगी य फिर 2018 वाला इतिहास पुनः दोहराया जायेगा जिसमें कहीं दिखाई नही देने वाली कांग्रेस अचानक से सतासीन हो गयी जबकि दौनो का वोट प्रतिशत लगभग बराबर पर था। यह ततसमय इसलिए हुआ क्योंकि भाजपा रैलियों मे उमडी भीड को वोट मे बदलने मे असफल रही। अब देखना यह है कि इस बार जिस तरह भाजपा की लाडली बहना और आशीर्वाद यात्रा मे भीड उमडी है क्या भाजपा के वोट में तब्दील होगी ? या फिर 2018 की तरह की कांग्रेस एक बार फिर मुकदर का सिकंदर बनेगी ? अब इस यक्ष प्रश्न का उत्तर भविष्य के , गर्भ में है।

नोट : - लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक है।


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