विजय कुमार जैन पत्रकार 

 

सारी दुनिया में मानव तस्करी गंभीर समस्या है, इस समस्या को जड़ से समाप्त करना संभव ही नही है।
हम यह कह सकते है मानव तस्करी रोकने जो प्रयास हो रहे है उनसे यह अपराध कुछ कम हुआ है। हाल ही में एक अमेरिकी एजेंसी ने मानव तस्करी पर जो रिपोर्ट जारी की है उस रिपोर्ट में उल्लेख किया है मानव तस्करी रोकने के उपायों के आधार पर भारत द्वितीय श्रेणी में है।
अमेरिका का विदेश मंत्रालय हर वर्ष एंट्री ट्रेफिकिंग रिपोर्ट जारी करता है। उक्त जारी ट्रेफिकिंग इन पर्सन्स रिपोर्ट जो विगत वर्ष जारी की गई उसमें भारत में मानव तस्करी रोकने के आधार पर द्वितीय श्रेणी के देश के रूप माना है। भारत सरकार ने अमेरिका के ट्रैफिकिंग विक्टिम्स प्रोटेक्शन एक्ट के न्यूनतम मानदंडों को प्रभावी तरीके से लागू नही कर सकी है। रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया है मानकों के अनुपालन का भारत में प्रयास किया जा रहा है।हम भारत में मानव तस्करी के मामलों की बात करें तो टी आर पी रिपोर्ट के अनुसार भारत में मानव तस्करी के अधिकांश मामले आंतरिक होना पाया गया है। इन मामलों में अधिकांश प्रकरण निचली पिछड़ी जातियों व धार्मिक अल्प संख्यकों से जुड़े होते है। सबसे ज्यादा खतरा इन जातियों पर ही रहता है। रिपोर्ट के अनुसार भारत में भवन या सड़क निर्माण, स्टील कपड़ा उधोग, अंडरग्राउंड केबल निर्माण, बिस्कुट एवं नमकीन कारखाने , फूलों की खेती और मछली पालन जैसे उधोगों में डरा धमकाकर जबरन मजदूरी कराने की मानसिकता ने मानव तस्करी में तीव्र गति से विस्तार किया है। बेगार, बधुआ मजदूरी सहित वेश्यावृत्ति के लिये देश में अवैध रूप से वेरोजगार अथवा जरूरतमंद लोगों को उचित नौकरी या रोजगार के अवसर दिलाने का झांसा देकर वयस्कों बच्चों युवतियों व महिलाओं को अपने जाल में फसाते है। ग्लोबल मार्च अगेंस्ट चाइल्ड लेबर एंड ट्रेफिकिंग व्यवसायिक यौन शोषण से छुड़ाये गये 60 प्रतिशत पीड़ितों ने यह स्वीकार किया है कि उन्हे उचित रोजगार दिलाने के नाम पर मजबूर किया गया। जारी रिपोर्ट में उल्लेख किया है भारत में मानव तस्करी रोकने शोषण से मुक्ति दिलाने अनेक संस्थायें काम कर रही हैं, विडंबना यह है जिनको तस्करी से मुक्त कराया जाता है उन पीड़ितों को संरक्षण पुनर्वास देखरेख करने की शासकीय सेवाएँ पूरी तरह से सक्रिय नही है अथवा विफल है। भारत में कानून प्रवर्तन में प्रगति की सही जानकारी नही मिल पाती क्योंकि अधिकारी तस्करी रोकने के समुचित व गैर एकीकृत आंकड़े नही देते। रिपोर्ट के अनुसार राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों में निरीक्षण, अभियोजन या दोष साबित होने बाले मामले शामिल नही किए जाते और आंकड़ों में पीड़ितों की सजा के मामले होते है,जबकि वेश्या वृति के लिये ग्राहक तलाशने व सेक्स तस्करी पीड़ितों को छिपाने में संलिप्तता को आपराधिक कृत्य घोषित करने वाले अनैतिक व्यापार अधिनियम को पूरी क्षमता से लागू नही किया जाता है। भारत में महिलाओं की तस्करी के मुख्य केन्द्र दिल्ली,मुंबई, कोलकाता, गुजरात सहित
भारत नेपाल सीमा क्षेत्र है। भारतीय दण्ड संहिता की धारा 370 में सेक्स ट्रेफिकिंग के विभिन्न तरीकों का निषेध और सात वर्ष से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान किया गया है। साथ ही यह भी प्रावधान है मानव तस्करी में सरकारी अधिकारियों की संलिप्तता पायी जाना प्रमाणित होता है तो उसको आपराधिक कृत्य मानते हुए अधिकतम आजीवन कारावास की सजा दी जायेगी। मानव तस्करी रोकने इस कानूनी
प्रावधान के अलावा बंधुआ श्रम प्रणाली अधिनियम, बाल श्रम अधिनियम, किशोर न्याय अधिनियम और भारतीय दण्ड संहिता के अन्य प्रावधानों के अन्तर्गत बेगार के विभिन्न तरीकों का निषेध किया गया है। अमेरिका अपने टीवीपीए कानून के न्यूनतम मानकों पर कार्यान्वयन के आधार पर विभिन्न देशों का वर्गीकरण करता है। प्रथम श्रेणी में वे देश आते है जहाँ पर टीवीपीए के न्यूनतम मानकों को पूरी तरह से लागू करते है, जबकि दूसरे स्थान पर वे देश आते है, जो न्यूनतम मानकों को पूरी तरह लागू नही कर पाते, लेकिन प्रयासरत होते है। टीवीपीए न्यूनतम मानकों की व्यापकता के चलते भारत अब तक सफल नही हो पाया है। सारी दुनिया में चल रहे अनेक प्रयासों के वावजूद यह विचारणीय प्रश्न है कैसे रुकेगी मानव तस्करी ?


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