विजय कुमार जैन राघौगढ़ म.प्र.

भारत माता के महान सपूत जिन्होंने अंतर्राष्ट्रीय विज्ञान के क्षेत्र में दुनिया में देश का नाम ऊंचा किया ऐसे विक्रम अंबालाल साराभाई जैन का 12 अगस्त 1912 को जन्म हुआ था। जन्म दिवस के अवसर पर हम उन्हें स्मरण कर रहे हैं।

डॉ विक्रम साराभाई के नाम को अंतरिक्ष कार्यक्रम से अलग नहीं किया जा सकता यह बात दुनिया को पता है की वह विक्रम साराभाई ही थे, जिन्होंने अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में भारत को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सम्मान दिलाया। आपका जन्म अहमदाबाद में अंबालाल साराभाई के प्रतिष्ठित जैन परिवार में हुआ था।आपकी माता जी सरला साराभाई थी। आपकी माता सरला साराभाई ने प्रारंभिक शिक्षा मैडम मारिया मांटेसरी की तरह शुरू हुए पारिवारिक स्कूल में दिलाई।गुजरात कॉलेज में इंटरमीडिएट तक विज्ञान की शिक्षा पूरी करने के बाद वे सन 1937 में कैंब्रिज इंग्लैंड चले गए, जहां 1940 में प्रणमाकृतिक विज्ञान में ट्रायपोज डिग्री प्राप्त की। द्वितीय विश्व युद्ध शुरू होने पर वे भारत लौट आए और बेंगलूरू स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान में नौकरी करने लगे।जहां पर वह सी. वी. रमन के निरीक्षण में कॉस्मिक रेंज पर अनुसंधान करने लगे। द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति पर वे कॉस्मिक रेज भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में अपनी डाँक्ट्रेट पूरी करने के लिए कैंब्रिज लौट गए। सन् 1947 में उष्णकटिबंधीय अक्षांश ट्रॉपीकल लैटीट्यूड्स मैं कैंब्रिज विश्वविद्यालय ने उन्हें डॉक्ट्रेट की उपाधि से सम्मानित किया गया।

डाँ विक्रम साराभाई को भारत के महान संस्थान निर्माता माना जाता है। उनके द्वारा स्थापित लोकप्रिय संस्थानों में प्रमुख हैं भौतिकी अनुसंधान प्रयोगशाला पीआरएल अहमदाबाद, भारतीय प्रबंध संस्थान आई आई एम अहमदाबाद, सामुदायिक विज्ञान केंद्र अहमदाबाद,दर्पण अकादमी फॉर परफॉर्मिंग आर्ट्स अहमदाबाद, विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र तिरुअनंतपुरम्, डॉ विक्रम साराभाई सांस्कृतिक गतिविधियों में भी गहरी रूचि रखते थे। वे संगीत, फोटोग्राफी, पुरातत्व, ललित कलाओं और अन्य अनेक क्षेत्रों से जुड़े रहे।

डॉक्टर विक्रम साराभाई के व्यक्तित्व का सर्वाधिक उल्लेखनीय पहलू उनकी रुचि की सीमा और विस्तार तथा ऐसे तरीके थे, जिन्होंने अपने विचारों को संस्था में परिवर्तित किया। सृजनशील वैज्ञानिक, सफल और दूरदर्शी उद्योगपति, उच्च कोटि के प्रवर्तक, महान संस्थाओं के निर्माता, अलग किस्म के शिक्षाविद, कला पारखी, सामाजिक परिवर्तन के ठेकेदार, अग्रणी प्रबंध प्रशिक्षक आदि ऐसी अनेक विशेषताएं उनके व्यक्तित्व में समाहित थी। उनकी सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह थी कि वे एक ऐसे उच्च कोटि के इंसान थे जिसके मन में दूसरों के प्रति असाधारण सहानुभूति थी, जो भी उनके संपर्क में आता उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रहता था। धर्मपत्नी मृणालिनी साराभाई के साथ मिलकर उन्होंने मंच कलाओं की सांस्कृतिक संस्था दर्पण का गठन किया। उनकी बेटी मल्लिका साराभाई बड़ी होकर भरतनाट्यम् और कुचिपुड़ी की प्रसिद्ध नृत्यांगना बनी। डॉक्टर होमी जे भाभा की जनवरी 1966 में मृत्यु के बाद डॉक्टर साराभाई को परमाणु ऊर्जा आयोग का अध्यक्ष बनाया गया।

साराभाई ने सामाजिक और आर्थिक विकास की विभिन्न गतिविधियों के लिए अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी में छुपी हुई व्यापक क्षमताओं को पहचान लिया था। इन गतिविधियों में संचार, मौसम विज्ञान संबंधी भविष्यवाणी और प्राकृतिक संसाधनों के लिए अन्वेषण आदि सम्मिलित हैं।भारत के महान वैज्ञानिक बहुमुखी प्रतिभा के धनी डॉक्टर विक्रम साराभाई का 30 दिसंबर 1971 को कोवलम्, तिरुअनंतपुरम् केरल में आसामयिक स्वर्गवास हो गया।इस महान वैज्ञानिक के सम्मान में तिरुअनंतपुर में स्थापित थुंबा एक्वेटोरियल रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन टी आर एल एस और संबंधी अंतरिक्ष संस्थाओं का नाम बदलकर विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र कर दिया गया। यह केंद्र एक प्रमुख भारतीय अंतरिक्ष केंद्र के रूप में उभरा है।सन 1974 में सिडनी स्थित अंतर्राष्ट्रीय खगोल विज्ञान संघ ने निर्णय लिया कि सीआफ सेरेनिटी पर स्थित बेसल नामक मून क्रेटर अब साराभाई क्रेटर के नाम से जाना जाएगा।

डॉ विक्रम साराभाई को भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम का जनक माना जाता है। अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में उनके अमूल्य योगदान को भारतवासी हमेशा याद रखेंगे।उनका जीवन एवं अनुसंधान कार्य आज की युवा पीढ़ी के लिए निश्चित ही प्रेरणादायक है जन्मदिन पर हम डॉक्टर विक्रम साराभाई को विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।

 


नोट-लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं भारतीय जैन मिलन के राष्ट्रीय वरिष्ठ उपाध्यक्ष है।


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