विजय कुमार जैन राघौगढ़ म.प्र.

विश्व खाद्य दिवस का शुभारंभ 16 अक्टूबर1945 को हुआ। 22 अक्टूबर 2022 को इस दिवस की 77 वीं वर्षगांठ है। प्रति वर्ष 7 जून को विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस मनाया जाता है। विश्व खाद्य दिवस दुनिया के लगभग 150 देशों में भुखमरी एवं निर्धनता हेतु जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य मनाया जाता है। इसका उद्देश्य लोगों को यह समझाना भी है कि भोजन एक बुनियादी और मौलिक मानव अधिकार है। दुनिया भर के 23% भूखे लोग भारत में रहते हैं। विश्व खाद्य दिवस की 2022 की थीम "किसी को पीछे ना छोड़े" है। दुनिया में प्रतिदिन भोजन की बर्वादी और भुखमरी की विकराल समस्या को ध्यान में रखकर हर वर्ष विश्व खाद्य दिवस मनाया जाता है। मगर यह समस्या कम नहीं हुई है। दुनिया में 80 करोड़ से अधिक लोग भुखमरी के बोझ को अभिशाप मान रहे हैं। अनगिनत भूख से पैदा हुई गंभीर बीमारियों के शिकार हो रहे है। वही अगर अरबों टन भोजन बर्वाद होता है तो सोचना होगा हम कैसी सभ्यता का सृजन कर रहे हैं। दुनिया भर में करोड़ों लोग ऐसे हैं जिनके घरों में शाम को चूल्हा नही जलता बच्चों के मूँह में निवाला नहीं जाता और दूसरी ओर मानव सभ्यता का सिर शर्म से झुका देने बाला तथ्य यह है कि हर वर्ष 750 अरब अर्थात 47 लाख करोड़ का भोजन बर्वाद होता है।
हर वर्ष भोजन उत्पाद का 50 प्रतिशत भाग सड़ता, गलता, फैंका और बहाया जाता है। दुनिया भर में जो भोजन बर्वाद होता है उसके उत्पादन में कृषि योग्य 28 प्रतिशत जमीन का उपयोग होता है। और एक वर्ष में रूस की वोल्गा नदी में जितना पानी बहता है उतना सिचाई में लग जाता है। भारत में अनाज, दालें, फल, सब्जियों के कुल उत्पादन का 40 प्रतिशत बर्वाद होता है, जिसका बाजार मूल्य 50 हजार करोड़ रुपये है। इसमें मीट की बर्वादी मात्र 4 प्रतिशत है लेकिन इससे आर्थिक नुकसान 20 प्रतिशत होता है। विश्व भोजन बर्वादी में 3-3 अरब टन ग्रीन हाउस गैसें निकलती हैं, जिसमें मिथेन गैस सर्वाधिक निकलती है।
संयुक्त राष्ट्र संघ की अबाँइडिंग फ्यूचर फेमाइन्स की ओर से जारी एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में लगभग एक तिहाई भोज्य उत्पाद मनुष्य के मूँह तक नहीं पहुँच पाते। वह या तो रास्ते में रखरखाव ठीक से नहीं होने के कारण बर्वाद हो जाते है या उपभोक्ता उन्हें स्वयं ही नष्ट कर देते हैं। संयुक्त पर्यावरण कार्यक्रम की रिपोर्ट फूड वेस्टेज फुटप्रिंट, इम्पेक्ट आँन रिसोर्सेज ने यह जानकारी दी है कि हर वर्ष विश्व भर में लगभग 1.3 अरब टन भोजन की बर्वादी होती है। विगत वर्षों संयुक्त राष्ट्र संघ ने यह आंकड़ा विश्व पर्यावरण दिवस पर जारी किया जिसकी थीम सोचो खाओ और बचाओ थी। उत्तरी अमेरिका और यूरोप के उपभोक्ता हर वर्ष लगभग 20-20 करोड़ टन भोजन कूड़ेदान के हवाले कर देते हैं। जबकि अफ्रीका सहारा उपक्षेत्र का कुल उत्पादन ही 20.30 करोड़ टन है। यह आंकड़े स्वीडिस फूड एंड वायोटेक्नोलाजी और फूड एंड एग्रीकल्चर आर्गेनाइजेशन के अध्ययन पर आधारित है। अध्ययन में यह कहा गया है कि भोजन की यह बर्वादी खेतों से खाने की थाली में पहुंचने की प्रक्रिया में होने बाली गड़बड़ का परिणाम है।
विकसित और विकासशील देशों में भोजन बर्वादी के अलग-अलग स्वरूप है भारत जैसे विकासशील देशों में खराब प्रबंधन, पुरानी तकनीकी और अपर्याप्त असुरक्षित संरक्षण के कारण अनाज खेत से गोदाम के बीच सड़ता है।विकसित देशों में विकसित देशों में यह बर्वादी खाना बनाने के बाद होती है। पड़ौसी देश पाकिस्तान में भी रखरखाव की कमी के कारण कुल उत्पादन का 16 प्रतिशत यानि 30 टन से अधिक अनाज लोगों तक नहीं पहुंच पाता जबकि वहाँ की जनसंख्या का 36 प्रतिशत गरीबी की रेखा के नीचे है। 40 प्रतिशत बच्चे कुपोषण से ग्रस्त है।
एशिया लेटिंग और यूरोप एशिया के औद्योगिक क्षेत्र यूरोप दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया में सब्जियों और मांस उत्पादों की 68 प्रतिशत बर्वादी धनान्य देशों में होती है। अमेरिकी 25 प्रतिशत भोजन फेंकते हैं और यूरोपियन एक तिहाई फेंकते इसलिये है कि खाने से ज्यादा खरीद लेते हैं। इसी स्थिति में विचाराधीन प्रश्न यह है कि भोजन बर्वाद होता है और लोग भूखे रहते हैं। भोजन फेंकने से पर्यावरणीय समस्याएं बढ़ती हैं। पानी खाद का अपव्यय होता है। मानव श्रम का अपमान होता है।
स्वयं सेवी संगठन द हंगर प्रोजेक्ट के अनुसार दुनिया के लगभग 80.7 करोड़ लोग भुखमरी के शिकार है 98 प्रतिशत पीड़ित भारत जैसे विकासशील के नागरिक है। हर वर्ष भारत में उतना गेहूं बर्वाद होता है जितनी आस्ट्रेलिया की वार्षिक पैदावार है। इससे वार्षिक कृषि लाभ में 50 हजार करोड़ का नुक्सान होता है और इससे 30 करोड़ लोगों के भोजन की पूर्ति हो सकती है। 2.1 करोड़ टन अनाज हर वर्ष इस कारण सड़ गल जाता है कि उसे सुरक्षित रखने के लिये कोल्ड स्टोरेज और सुव्यवस्थित कार्य योजना नहीं है। उत्पादन से उपभोक्ता तक पहुंचने सब्जियों और फलों का 40 प्रतिशत रेफ्रिजरेटर वाहनों की कमी, खराब सड़क, गड़बड़ मौसम और भृष्टाचार की वजह से कचरे के ढ़ेर में चला जाता है। एक वर्ष में भारत का प्रति व्यक्ति 6-11 किलो भोजन बर्वाद करता है। जबकि अमेरिका में यह आँकड़ा 95-111 किलो है। कृषकों की एक और समस्या है उनकी फसलें एवं सब्जियां अधिक वर्षा, ओलावृष्टि एवं अधिक ठंड में पाला पड़ने से नष्ट हो जाती हैं।
विश्व खाद्य दिवस के अवसर पर हम गंभीरता से विचार करें बर्वाद हो रहे भोजन को बचाया जाये जो बड़ी विश्व जनसंख्या का पेट भरने के लिये पर्याप्त है इससे हम अनाज के अतिरिक्त उत्पादन के भार से बचेंगे, भूमि, जल, पर्यावरण और श्रम को नष्ट होने से बचायेंगे। दुनिया में रही भोजन की बर्वादी रोकने गंभीरता से प्रयास आवश्यक है। उत्पादन से उपभोक्ता तक पहुंचने की प्रक्रिया ठीक हो, सरकार रेफ्रिजरेटर वाहनों की पर्याप्त व्यवस्था करे और पैदावार को सुरक्षित रखने की संरचना को विकसित करे। विकाशील देशों में भोजन की बर्वादी का दूसरा बड़ा कारण होटल और सामुहिक भोज आयोजन है। इसका सरल उपाय है अन्य व्यवस्थाओं के साथ ऐसे व्यक्तियों, संस्थाओं से भी संपर्क किया जाये जो जरूरतमंदों को भोजन वितरण के कार्य में जुटे हैं। गरीबी, भूख और भोजन की गहरी गुत्थी है जिसको हल किया जाना तत्काल आवश्यक है।

 

 

नोट:- लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं भारतीय जैन मिलन के राष्ट्रीय वरिष्ठ उपाध्यक्ष है।

 


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