कृष्णमोहन झा

भारतीय जनता पार्टी ने 2003 में संपन्न मध्यप्रदेश विधानसभा चुनावों में प्रचंड बहुमत से जीत हासिल कर जो शानदार इतिहास रचा था उसे वह 2008 और 2013 में संपन्न विधानसभा चुनावों में भी दोहराने में सफल रही मगर यह सिलसिला 2018 में टूट गया। जब कांग्रेस ने भाजपा को मामूली अंतर से हराकर सत्ता में वापसी करने में कामयाबी हासिल कर ली।

कमलनाथ के नेतृत्व में गठित तत्कालीन कांग्रेस सरकार के अंतर्विरोधो ने लगभग सवा साल बाद ही उसे विपक्ष में बैठने पर मजबूर कर दिया और एक बार फिर मुख्यमंत्री पद की बागडोर शिवराज सिंह चौहान के हाथों में आ गई,और आज की तारीख में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के चेहरे का आत्मविश्वास इस बात की गवाही दे रहा है कि अगले तीन महीने के अंदर संपन्न होने वाले विधानसभा चुनावों में भाजपा एक बार फिर शानदार जीत का इतिहास रचने में कामयाब होगी।

भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने केंद्रीय मंत्री और भाजपा के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर को चुनाव प्रबंधन समिति का संयोजक नियुक्त कर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के उस आत्मविश्वास को द्विगुणित कर दिया है। राजनीतिक पंडितों का आज भी यह कि मानना है कि मध्यप्रदेश में 2008 और 2013 के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने प्रचंड बहुमत के साथ जो जीत हासिल की थी उसकी पटकथा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने नरेन्द्र सिंह तोमर के साथ मिलकर ही लिखी थी।

गौरतलब है कि 2008 में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष पद की बागडोर पहले से ही नरेन्द्र सिंह तोमर के पास थी। जबकि 2013 के विधानसभा चुनावों के ठीक पहले पार्टी के तत्कालीन प्रदेशाध्यक्ष प्रभात झा के स्थान पर नरेंद्र सिंह तोमर को यह जिम्मेदारी सौंप दी थी। भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने यह फैसला मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के अनुरोध पर ही किया था । गुपचुप तरीके से आनन-फानन में किए गए इस परिवर्तन की तुलना पोखरण विस्फोट से की गई थी। परन्तु चुनाव नतीजे घोषित होने पर भाजपा ने जिस तरह 2008 से भी अधिक सीटों पर जीत हासिल कर सत्ता में शानदार वापसी की उससे यह साबित हो गया कि चुनावों में भाजपा की शानदार जीत सुनिश्चित कराके पार्टी ने जो जिम्मेदारी सौपी थी उसे सच साबित कर दिया। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने नरेन्द्र सिंह तोमर पर जो भरोसा किया था वह पार्टी के समग्र हित में आवश्यक ही नहीं बल्कि अपरिहार्य था।

राज्य विधानसभा चुनावों के लिए केंद्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर को भाजपा ने चुनाव प्रबंधन समिति का संयोजक मनोनीत करने के पार्टी हाईकमान के फैसले से राज्य में भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं में उत्साह की लहर दौड़ गई है और सबका एक ही मत है कि चुनाव प्रबंधन समिति के संयोजक की जिम्मेदारी संभालने के लिए केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर सर्वथा उपयुक्त हैं और उनसे बेहतर कोई विकल्प नहीं हो सकता था। नरेंद्र सिंह तोमर एक अनुभवी राजनेता हैं, चुनावी व्यूह रचना में उनका कोई सानी नहीं है। इसके प्रमाण 2008 और2013 के विधानसभा चुनावों में भाजपा की प्रचंड विजय से मिल चुके हैं।

एक ओर जहां नरेंद्र सिंह तोमर चुनाव प्रबंधन में अद्भुत कौशल के धनी हैं वहीं दूसरी ओर पार्टी में सबको साथ लेकर चलने के उनके स्वभाव ने उन्हें पार्टी में हरदिल अज़ीज़ बना दिया है। यही कारण है कि नरेंद्र सिंह तोमर को विधानसभा चुनाव प्रबंधन समिति का संयोजक मनोनीत किए जाने से विपक्षी कांग्रेस पार्टी भी परेशान हो उठी है। कांग्रेस भली भांति जानती है कि 2008 और 2013 में उसे भाजपा के हाथों जिस शोचनीय पराजय का सामना करना पड़ा उसमें नरेंद्र सिंह तोमर के चुनावी रणनीतिक कौशल की महत्वपूर्ण भूमिका थी।

गौरतलब है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और भाजपा के तत्कालीन प्रदेशाध्यक्ष के रूप में नरेंद्र सिंह तोमर की जोड़ी ने ही 2008 और 2013 के विधानसभा चुनावों में पार्टी के चुनाव अभियान की बागडोर थाम रखी थी। मुझे अच्छी तरह याद है कि 2013 में विधानसभा चुनावों के पूर्व प्रकाशित अपने एक लेख में मैंने दो टूक यह कहा था कि शिव -नरेंद्र की जोड़ी मध्यप्रदेश में भाजपा की प्रचंड विजय की पटकथा लिखने जा रही है। एक दशक बाद ठीक वैसा ही परिदृश्य आज भी दिखाई दे रहा है। भाजपा की चुनाव प्रबंधन समिति के रूप में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ उनकी मजबूत जोड़ी आगामी विधानसभा चुनावों में एक बार फिर पार्टी की करिश्माई विजय सुनिश्चित करने के लिए व्यूह रचना में जुट गई है।

इसमें दो राय नहीं हो सकता कि आगामी विधानसभा चुनावों में भाजपा की शानदार जीत की पटकथा लिखने में नरेंद्र सिंह तोमर की सफलता से केन्द्र सरकार में उनकी अहमियत और बढ़ेगी। गौरतलब है कि नरेंद्र सिंह तोमर की गणना केंद्रीय मंत्रिमंडल के उन वरिष्ठ सदस्यों में प्रमुखता से की जाती है जिनकी कार्य क्षमता और मौलिक सूझबूझ के कायल प्रधानमंत्री मोदी स्वयं हैं। 2019 में जब प्रधानमंत्री मोदी ने अपने मंत्रिमंडल का गठन किया था तब तोमर को शपथग्रहण समारोह में भी पांचवें स्थान की वरीयता प्रदान की गई थी। तोमर की कार्यशैली ही कुछ ऐसी है कि उन्हें विवादों के दायरे में लाना आसान नही है। वे केवल काम की बात करते हैं और पूरी निष्ठा के साथ अपने विभागों की जिम्मेदारी का निर्वहन करते हैं। मंत्री पद और राजनीतिक कद के अहंकार से वे कोसों दूर हैं इसीलिए वे प्रधानमंत्री मोदी का विश्वास अर्जित करने में सफल हुए हैं।


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