रक्षाबंधन पर्व पर विशेष

विजय कुमार जैन राघौगढ़ म.प्र.

भारतीय संस्कृति में पर्वों का प्राचीनकाल से विशेष महत्व रहा है। प्रत्येक त्यौहार के साथ धार्मिक मान्यताओं, सामाजिक एवं ऐतिहासिक घटनाओं का संयोग प्रदर्शित होता है। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भी अपना संदेश आम जनता तक पहुँचाने के लिये त्यौहारों एवं मेलों का मंच के रूप में उपयोग होता था। हम चर्चा कर रहे हैं ऐसे ही पर्व रक्षाबंधन की। रक्षाबंधन भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति का प्रमुख त्यौहार माना जाता है जो श्रावण मास पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस दिन बहन अपनी रक्षा के लिये भाई को राखी बांधती है।

यह पर्व मात्र रक्षा का संदेश नहीं देता, अपितु प्रेम, समर्पण, निष्ठा व संकल्प के द्वारा हृदयों को भी बांधने का वचन देता है। भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है " मयि सर्व मिदंप्रोक्तं सूत्रे मणिगणाइव" अर्थात सूत्र अविच्छन्नता का प्रतीक है क्योंकि सूत्र/धागे बिखरे हुए मोतियों को अपने में पिरोकर एक माला में एकाकार बनाता है। माला के सूत्र की तरह रक्षासूत्र भी लोगों को जोड़ता है। पुराणों में रक्षाबंधन का उल्लेख मिलता है। रक्षा हेतु इन्द्राणी ने इन्द्र सहित देवताओं की कलाई पर रक्षासूत्र बांधा और इन्द्र ने राक्षसों से युद्ध में विजय पायी। एक कथा के अनुसार राजा बलि को दिये वचन अनुसार भगवान विष्णु बैकुंठ छोड़कर बलि के राज्य की रक्षा के लिये चले गये। तब देवी लक्ष्मी ने ब्राह्मणी का रूप धर श्रावण पूर्णिमा के दिन राजा बलि की कलाई पर पवित्र धागा बांधा, उनके कहने पर बलि ने भगवान विष्णु से बैकुंठ लौटने की विनती की।

रावण की बहन शूर्पणखा लक्ष्मण के द्वारा नाक काटने के पश्चात रावण के पास पहुंची और खून से मैली साड़ी का एक छोर रावण की कलाई में बांध दिया और कहा भैया जब-जब आप अपनी कलाई को देखोगे आपकी अपनी बहन का अपमान याद आयेगा और मेरी नाक काटने बालों से तुम बदला ले सकोगे। भगवान श्री कृष्ण के हाथ में चोट लगने पर एक बार द्रौपदी ने अपनी चुनरी का किनारा फाड़ कर घाव पर बांध दिया था।

दुशासन द्वारा द्रौपदी का चीरहरण प्रयास इसी बंधन के प्रभाव से असफल हुआ। श्री कृष्ण ने द्रौपदी की रक्षा की। युधिष्ठिर ने एक बार श्रीकृष्ण से पूछा कि वह महाभारत के युद्ध में कैसे बचेंगे , जवाब में श्रीकृष्ण ने कहा राखी का धागा ही तुम्हारी रक्षा करेगा। सिकन्दर व पौरस के युद्ध के पूर्व रक्षा सूत्र का आदान प्रदान हुआ था। दोनों ने रक्षा सूत्र की मर्यादा का पालन किया था। मुगल काल में मुगल सम्राट हुमायूँ चित्तौड़गढ़ पर आक्रमण करने बढ़ा तो राणा सांगा की विधवा कर्मवती ने हुमायूँ को राखी भेजकर अपनी रक्षा का वचन लिया। हुमायूँ ने इसे स्वीकार करके चित्तौड़ पर आक्रमण का विचार मन से निकाल दिया और आगे राखी का वायदा निभाने के लिये चित्तौड़ की रक्षा हेतु गुजरात के बादशाह से भी युद्ध किया।

स्वाधीनता आन्दोलन में भी बहनों ने अपने भाइयों को राखी बांधकर देश को आजाद कराने का वचन लिया। सन 1905 में बंग-भंग आन्दोलन का शुभारंभ एक-दूसरे को रक्षा सूत्र बांधकर हुआ। आजादी के आन्दोलन की एक घटना चन्द्रशेखर आजाद से जुड़ी हुई है। आजाद एक तूफानी रात शरण लेने एक विधवा के घर पहुंचे। पहले तो उसने उन्हें डाकू समझकर शरण देने से मना कर दिया। बाद में यह पता चलने पर कि वह क्रांतिकारी आजाद है तो ससम्मान उन्हें घर के अंदर ले गई। बातचीत के दौरान आजाद को पता चला कि उस विधवा को गरीबी के कारण जबान बेटी की शादी हेतु काफी परेशानी उठानी पड़ रही है। यह जानकर आजाद को वहुत दुख हुआ। उन्होंने विधवा को प्रस्ताव दिया कि मेरी गिरफ्तारी पर पाँच हजार रुपये का इनाम है, तुम मुझे अंग्रेजों को पकड़वा दो और उस इनाम से बेटी की शादी कर देना, यह सुनकर विधवा रो पड़ी व कहा भैया तुम देश की आजादी हेतु अपनी जान हथेली पर रखकर चल रहे हो और न जाने कितनी बहू-बेटियों की इज्ज़त तुम्हारे भरोसे है, मैं हरगिज ऐसा नहीं कर सकती। यह कहते हुए उसने एक रक्षा सूत्र आजाद के हाथ पर बांधकर देश सेवा का वचन लिया। सुबह जब विधवा की आँख खुली तो आजाद जा चुके थे और तकिये के नीचे पाँच हजार रुपये रखे हुए थे, साथ ही उसके साथ एक पर्चा रखा था जिस पर लिखा था कि अपनी प्यारी बहन हेतु एक छोटी सी भेंट -आजाद।

भारत में रक्षाबंधन का त्यौहार अलग अलग तरीकों से अपनी मान्यता अनुसार मनाया जाता है। मुंबई के समुद्री क्षेत्रों में नारियल पूर्णिमा या कोकोनट फुलमून के नाम से मनाया जाता है। उत्तराखंड के चम्पावत जिले के देवीधूरा में राखी पर्व पर बाराहीदेवी को प्रसन्न करने के लिये पाषाणकाल से ही पत्थर युद्ध का आयोजन किया जाता है। इस युद्ध में आज तक कोई भी गंभीर रूप से घायल नहीं हुआ। जैन धर्म में रक्षाबंधन पर्व का विशेष महत्व है।

प्राचीन काल में मुनि अकम्पनाचार्य आदि 700 मुनियों पर असुरों द्वारा हस्तिनापुर में उपसर्ग किया। सभी मुनियों को बंदी बनाकर बलि देने का निर्णय लिया। मुनि विष्णु कुमार को इसका पता चला तो उन्होंने अपनी वैक्रिया ऋद्धि के द्वारा असुर शक्तियों को निर्बल किया तथा 700 मुनियों की मुनि अकम्पनाचार्य सहित रक्षा की। मुनियों की रक्षा की स्मृति में यह रक्षाबंधन पर्व मनाया जाता है।700 जैन मुनियों की रक्षा हुई थी, रक्षाबंधन पर्व का नाम करण जैनाचार्य संत शिरोमणी विद्या सागर जी के परम प्रभावक शिष्य निर्यातक मुनि सुधा सागर "श्रमण संस्कृति रक्षा दिवस" किया है। इस दिन जैन मंदिरों में 700 मुनियों की रक्षा के उपलक्ष्य में श्रमण रक्षा विधान पूजन किये जाते है। सभी 700 जैन मुनियों का स्मरण कर उन्हें अर्घ चढ़ाये जाते हैं। मुनि सुधा सागर जी जिस तीर्थ या नगर में चातुर्मास करते हैं वहाँ श्रमण संस्कृति रक्षा विधान पूजन भक्ति भाव से उनके पावन सानिध्य की जाती है। 30 अगस्त को आगरा महानगर में श्रमण संस्कृति रक्षा विधान मुनि सुधा सागर ससंघ के पावन सानिध्य में भक्ति भाव से आयोजित किया जा रहा है।इस अवसर पर धर्म और संस्कृति की रक्षा के प्रतीक रक्षासूत्र बांधते हैं।

रक्षाबंधन पर्व की एक रोचक घटना हरियाणा के फतेहपुर गाँव की है। फतेहपुर में सन 1857 में एक युवक गिरधरलाल को रक्षाबंधन के दिन अंग्रेजों ने तोप से बांधकर उड़ा दिया। इस घटना के बाद ग्रामीणों ने गिरधरलाल को शहीद का सम्मान देकर रक्षाबंधन पर्व मनाना बंद कर दिया। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के 150 वर्ष पूर्ण होने पर सन 2006 में इस गाँव के लोगों ने रक्षाबंधन पर्व पुनः मनाने का संकल्प लिया।

रक्षाबंधन पर्व का भारतीय संस्कृति में विशेष महत्व है। यह पर्व हमारे सामाजिक परिवेश एवं मानवीय मूल्यों का अभिन्न अंग है। आज आवश्यकता है आडंबर के बजाय इस त्यौहार के पीछे छुपे हुए संस्कारों और नैतिक मूल्यों का सम्मान किये जाने की।तभी व्यक्ति, परिवार, समाज और राष्ट्र का कल्याण संभव होगा।

 

नोट:- लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं भारतीय जैन मिलन के राष्ट्रीय वरिष्ठ उपाध्यक्ष है।


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