विजय कुमार जैन पत्रकार पत्रकारिता या मीडिया को प्रजातांत्रिक शासन प्रणाली में चौथा स्तंभ माना गया है। प्रजातंत्र में संवैधानिक व्यवस्था में तीन स्तंभ होते है विधायिका कार्यपालिका और न्याय पालिका। इन तीन स्तंभों से भी बढकर चौथे स्तंभ निष्पक्ष और निर्भीक पत्रकारिता का माना गया है। निष्पक्ष और निर्भीक पत्रकारिता जिसे हम गर्व से प्रजातंत्र का चौथा स्तभं कहकर सम्मान करते है। उस चौथे स्तंभ को आज किस स्थिति से गुजरना पड़ रहा है किन किन गंभीर चुनौतियों से गुजरना पड़ रहा है यह हमारे चिंतन का विषय है। देश 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजों की सदियों की गुलामों की जंजीरों से आजाद हुआ। 26 जनवरी 1950 को संविधान के अनुरूप लोक तांत्रिक शासन प्रणाली को लागू किया गया। उस समय देश के कर्णधारों ने जोर शोर से कहा प्रजातंत्र का चौथा स्तंभ निष्पक्ष पत्रकारिता है जो समय समय पर अपनी कलम से अन्याय और अत्याचार को उजागर करेगा। जब देश आजाद  हुआ पत्रकारिता का एक मात्र माध्यम समाचार पत्र थे। समाचार पत्रों का प्रकाशन देश के नामी औद्योगिक घरानों ने कर सबसे पहले निष्पक्ष और निर्भीक पत्रकारिता का गला घौंटा। समाचार पत्र के मालिक के ही इसारे पर चलना संपादक एवं पत्रकार की मजबूरी है। जो पत्रकार जिस समाचार पत्र के लिये काम करता है वह अखबार मालिक की इच्छा के विरूद्ध अपनी लेखनी नही चला सकता। अगर इच्छा के विरुध्द कभी लिख दिया त़ो उस पत्रकार की उसी दिन छुट्टी कर दी जाती है। आज मीडिया के तीन माध्यम है। सबसे पहले समाचार पत्र ही एक मात्र माध्यम थे। पिछले लगभग 20- 25 वर्ष से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया अर्थात् टी वी चेनलों ने प्रवेश किया  है। इन मीडिया के दो माध्यम के अलावा पिछले लगभग 8 -10 वर्ष से सोशल मीडिया भी जोर शोर से सक्रिय हुआ है आज हम देखते है देश की आजादी के 70वर्ष बाद भी देश में स्वतंत्र एवम् निष्पक्ष पत्रकारिता का गला घोंटा जा रहा है। गत 27 जुलाई को गुना में म. प्र. श्रमजीवी पत्रकार संघ के जिला स्तरीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए म. प्र. श्रमजीवी पत्रकार संघ के अध्यक्ष श्री सलभ भदौरिया ने कहा जिसे हम प्रजातंत्र का चौथा स्तंभ कहते है वह भारतीय मीडिया आज उधोगपतियों एवम् बड़े बड़े अखबार मालिकों के यहाँ गिरबी रखा है। मालिक की इच्छा अनुरूप पत्रकार को अपनी लेखनी चलानी पड़ती है। जब पत्रकार अपनी कलम को स्वतंत्र रूप से नही चला सकता तो यह कहना वेमानी है कि भारतीय मीडिया स्वतंत्र और निष्पक्ष है। अखबार में काम कर रहे पत्रकार को कदम कदम पर यह भय रहता है कि कब मालिक नाराज हो जाये और घर का रास्ता दिखा दे। आपने कहा म. प्र. में मात्र दो या तीन समाचार पत्र है जिन्होंने ने अपने यहाँ काम करने बाले पत्रकारों को वेतनमान से वेतन एवं सुविधाएं देना प्रारंभ किया है। श्री सलभ भदौरिया ने कहा देश के नेता एवं अधिकारी स्वतंत्र एवं निष्पक्ष पत्रकारिता में सबसे बड़ी बाधा है। अपने स्वार्थों की रक्षा के लिये ये पत्रकारों का अपने अनुसार उपयोग कर रहे है। आपने यह भी कहा जिला स्तर पर अधिकारी गण पत्रकारों में फूट डालकर दो गुट करा देते है। आपने राजनेताओं एवं अधिकारियों से आग्रह किया कि अपने हितों के संरक्षण के लिये पत्रकारों को मोहरा न बनाये।जब श्री सलभ भदौरिया जी मंच से भाषण दे रहे थे उस मंच पर गुना के जिलाधीश श्री राजेश जैन एवं पुलिस अधीक्षक श्री पी एस विष्ट विराजमान थे। श्री सलभ भदौरिया ने कथन पर गुना के जिलाधीश ने इंकार किया ऐसा यहाँ नही है। मगर विचारणीय प्रश्न यह है गुना नही है अन्य स्थानों पर अधिकारी पत्रकारों को आपस में लड़ा रहे है          निडर एवं निष्पक्ष रिपोर्टिंग करने बाले पत्रकारों को तरह तरह से प्रताड़ित किया जाता है उन्हे धमकियाँ दी जाती है गुण्डों से पिटवाया जाता है। वकील के माध्यम से मोटी राशि का मानहानि नोटिस भेजा जाता है। पत्रकारों पर ब्लैक मेलिंग के गंभीर आरोप लगाकर उनका चरित्र हनन किया जाता है। हम यह नही कह रहे कि सभी पत्रकार या मीडिया से जुड़े व्यक्ति राजा हरिश्र्चंद के वंशज है। हम मानते है कि इस जाति में भी कुछ पथ भृष्ट तत्व हो सकते है मगर उन पथ भृष्ट गिने चुने लोगों से पूरे समाचार जगत को एक ही चश्मे से देखना अन्याय होगा। यह भी सर्वमान्य सत्य है मीडिया से जुड़े हमारे साथियों को पथ भृष्ट करने में राजनेताओं और अधिकारियों की महत्वपूर्ण भूमिका है। प्रजातंत्र के चौथे स्तंभ मीडिया का स्वतंत्रता आज चुनौतीपूर्ण कठिन कार्य है। निष्पक्ष एवं निर्भीक पत्रकारिता आज जोखिम से भरा कठिन कार्य है। विजय कुमार जैन पत्रकार राघौगढ़ जिला गुना म. प्र. नोट:- लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं विचारक है

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