आलोक एम इंदौरिया

मध्य प्रदेश की भाजपा राजनीति को सबसे अधिक समय तक अपनी उंगलियों पर नचाने वाले ,भाजपा के धुरंधर नेता और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह क्या पुनः बेहद ताकतवर हो गए हैं ? क्या टाइगर इस कमिंग बैक ? इस बात को लेकर मध्य प्रदेश की राजनीति में कयासों का दौर जारी है। उनके भूतपूर्व होने के बाद हाल ही में लोकसभा टिकट वितरण में जिस तरह उनकी एक तरफ चली है। उसके बाद से उनके बंगले पर लगी संगठन और सत्ता से जुड़े बड़े चेहरों की कतारें और बेशुमार फूलों के ढेर बिना कहे ही हालात हजरा बयां कर रहे हैं और शिवराज का इस मामले में मुस्कराहट भरा मौन मध्य प्रदेश की भाजपा में लगातार खलबली मचाये हुए हैं।

मध्य प्रदेश की राजनीति में धूमकेतु की भांति चमके शिवराज सिंह चौहान का नाम राजनीति मे प्रदेश ही नहीं देश में खासा जाना पहचाना है । मध्य प्रदेश के चार बार मुख्यमंत्री रहने का खिताब जहां उनके नाम दर्ज है वहीं 2023 में भाजपा को पुनः जबरदस्त तरीके से सत्ता में लाने का बहुत बड़ा श्रेय नरेंद्र मोदी के उन्हीं के खाते में जाता है । मध्य प्रदेश में आज भाजपा का जो मुकाम है उसमें शिवराज का योगदान तो है इसमें कोई इनकार नहीं कर सकता। मध्य प्रदेश में 2023 की भाजपा की ताबड़तोड़ सफलता के बाद यह माना जा रहा था की सत्ता सूत्र शिवराज के ही हाथ में रहेंगे। मगर तत समय घटे राजनीतिक घटनाक्रम में छग, राजस्थान और मध्य प्रदेश समेत तीन राज्यों के सीएम बदल दिए गए और लोगों ने यह मान लिया कि शिवराज राजनीति मे अर्श से फर्श पर आ गये। इसके बाद से यह माना जाने लगा कि शिवराज का राजनीतिक सूर्य अस्त हो गया है या अस्ताचल की ओर तेजी से जा रहा है। बाबजूद इसके शिवराज ने हथियार नहीं डाले बल्कि लगातार प्रदेश का दौरा करके और लाडली बहनों से मुलाकात करके जबरदस्त टेंपो बनाए रखा । आला कमान इससे अनभिज्ञ नहीं थी और वह मामले पर बराबर नजर बनाए रखे थी। भाजपा अलग कमान जानती थी की मध्य प्रदेश में भाजपा के पास मोदी के बाद शिवराज ही ऐसा चेहरा है जो भाजपा के पक्ष में वोटों से एबीएम मशीनों की झोली भर सकता है।

आलाकमान इस बात को बखुबी समझता था की शिवराज के बिना अबकी बार 400 पार का गेम मध्य प्रदेश में सफल नहीं हो सकता। और इसी के चलते जब मप्र लोकसभायी टिकटों की घोषणा हुई तो अधिकतम वे ही चेहरे इन टिकटों में थे जिन्हें शिवराज या तो राजनीति में लाए थे या जिन पर शिवराज ठप्पा लगा था। यानी शिवराज ने यह साबित कर दिया की मध्य प्रदेश की राजनीति में उनकी बखत है जिसे आला कमान भी तबज्जो देती है । जबकि यह माना जा रहा था कि इस बार अधिकतम चेहरे नए होंगे मगर ऐसा नहीं हुआ और शिवराज के मुरीदों को ही आला कमान ने नवाज डाला।

इसी क्रम में इंदौर, उज्जैन समेत पांच टिकट रोक गए थे और ऐसा समझा जा रहा था कि उज्जैन में मुख्यमंत्री का गृह जिला होने के कारण उनकी बात मानी जाएगी तो इंदौर में मालवा के सुल्तान माने जाने वाले कैलाश विजयवर्गीय की। इंदौर में तो हलचल ऐसी मची थी कि नए-नए नाम सामने बड़ी दमदारी से आ रहे थे और भले ही मजाक में सही कैलाश विजयवर्गीय ने महिला प्रत्याशी आने की बात कह कर नया शिगूफा छोड़ दिया था। मगर जब आला कमान ने इंदौर उज्जैन समेत बाकी पांच सीटों के टिकटों की घोषणा की तो नेताओं के तोते उड़ गए। इस सूची में इंदौर में शंकर लालवानी और उज्जैन में अनिल फिरोजिया को रिपीट करके आला कमान ने हैरत में डाल दिया । कहा जाता है कि जहां शंकर लालवानी को कैलाश के उतने नजदीक नहीं थे वहीं उज्जैन का मामला भी ऐसा ही बताया जाता है। इस पूरे मसले में गजब यह है कि शंकर लालवानी और अनिल फिरोजिया दोनों ही शिवराज के सबसे खास माने जाते हैं क्योंकि पिछले चुनाव में इन्हें टिकट शिवराज ने ही दिया था। दरअसल इन दोनों को ही टिकट इस बार नहीं मिल रहा था और इन दोनों ही जिलों के खलीफा नेता अपने-अपने लोगों की लाबिग में लगे थे जो राजनीति में जायज भी है। मगर शिवराज ने एक ही झटके में बिना शोर शराबे के दोनों का टिकट झटक कर सारे प्रदेश और प्रदेश के सभी बड़े खलीफाओं को स्तब्ध कर दिया । आलम यह हुआ कि इंदौर में टिकट की घोषणा के बाद सन्नाटा अच्छा गया और एक राजनीतिक खामोशी महसूस हो रही थी जो भाजपा के कार्यालय तक छाई थी यह सब इसलिए कि सारा का सारा मामला अप्रत्याशित जो था।

बरहाल मध्य प्रदेश में पहले विधानसभा चुनावों के टिकट और उसके बाद लोकसभा चुनाव के टिकट में शिवराज के पसंदीदा नामो की लंबी फहरिश्त ने यह साबित कर दिया कि वह भले ही मुख्यमंत्री नहीं है लेकिन मध्य प्रदेश की राजनीति में वे न केवल बेहद प्रासंगिक हैं बल्कि आल्हा कमान उन पर अभी भी भरोसा करती है। यदि 29 सीटों पर भाजपा के चेहरों को टटोलें तो पाएंगे कि इनमें से अधिकतर लोग या तो शिवराज की पसंद के हैं या वे वह चेहरे हैं जिन्हें शिवराज की सहमति से ही आला कमान ने सांसद के रूप में एंट्री दी थी। आलाकमान बखूबी जानता है की तमाम बातों के बावजूद नरेंद्र मोदी के बाद मध्य प्रदेश में शिवराज ही वह एकमात्र चेहरा है जिसकी दम पर मतदाता को रिझाया जा सकता है और इस बात को शिवराज विधानसभा चुनाव में सिद्ध कर चुके हैं जब सारा मिडिया कांग्रेस की सरकार बनाने का दावा कर रहा था मगर बाजी उलट गयी। शायद इसी के चलते तमाम नामो कै दरकिनार करते हुए आलाकमान ने शिवराज की पसंद को तर्जी दी और इसी के चलते टिकट वितरण में उनकी एक तरफ चली। यह सारी बातें इस और जरूर इशारा कर रही हैं कि शिवराज न केवल पुनः बेहद ताकतवर हो गए हैं बल्कि मध्य प्रदेश की राजनीति में उनका दबदबा कम नहीं हुआ। बेशक सांसद बनने के बाद वे दिल्ली में डेरा डाल ले, मगर मध्य प्रदेश की राजनीति में अप्रत्यक्ष रूप से उनकी धमक बरकरार रहेगी इतना तो तय है।

 

नोट - लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।


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