विजय कुमार जैन राघौगढ़ (गुना)

 

क्षमा आत्मा का स्वभाव है। सहिष्णुता, समता और सौजन्य क्षमा की पर्यायें हैं। क्षमा की निष्पत्ति संस्कृत के ‘‘क्षमु‘‘ धातु से हुई है। यह सामर्थ्य और क्षमता के अर्थ से प्रयुक्त है। सामथ्र्य और क्षमता सम्पन्न व्यक्ति ही क्षमा धारण कर सकता है। क्षमा का एक अर्थ धरती और वृक्ष भी है। धरती सारी दुनिया के भार को सहती है। सबके पदाघात को सहन करती है। किसी का कोई प्रतिकार नहीं करती है। यह धरती की महानता है। इसी कारण इसे क्षमा कहा जाता है। वृक्ष शीत, गर्मी और वर्षा की बाधाओं को प्रतिकार रहित सहन करते हैं। तब उनके मीठे फल लगते हैं वृक्ष पर पत्थर मारने पर भी वह मीठे फल देता है। यही उसकी महानता है। धरती और वृक्ष की भाॅंति सहिष्णु व्यक्ति ही क्षमा जैसे गुण धारण कर सकते हैं। क्षमा धारण करना विशिष्ट क्षमतावान महान आत्माओं के ही वश की बात है।

आज के युग में क्षमा के लिये एक नया शब्द चल पड़ा है - साॅरी,साॅरी में क्षमा का भाव नहीं है। क्षमा अतंरग का भाव है। क्षमा तीन परिस्थितियों में की जाती है - (1) मजबूरी में (2) स्वार्थ वश (3) वास्तविक। क्रोध को उत्पन्न ही नहीं होने देना वास्तविक क्षमा है।

गलतफहमी इससे बहुत जल्दी मनो मालिन्य हो जाता है। मन में शंका की दरार पड़ जाती है। इस गलतफहमी के कारण ‘‘सूत न कपास जुलाहों से लट्ठम् लट्ठा‘‘ की कहावत चरितार्थ हो जाती है। जिसके प्रति विश्वास हो उसके प्रति मिस अन्डर स्टण्डिंग या गलतफहमी नहीं होती है। यदि किसी के प्रति कोई गलतफहमी हो गई है, तो उसका निराकरण करना चाहिये। गहराई में जाकर सच्चाई का पता लगाना चाहिये। अपना पक्ष बता देने और सामने वाले का पक्ष सुन लेने से गलतफहमी का निराकरण हो जाता है। अन्यथा संशय और फिर कलह उत्पन्न हो जाती है।

शास्त्रों में चार प्रकार के क्रोध बताये हैं। क्रोध से कलह होती है। क्रोध के चार प्रकार यह है (1) पत्थर की लकीर - कभी न मिटने वाली लकीर (2) धरती की लकीर - यह लकीर मौसम बदलने पर मर जाती है (3) धूल की लकीर - यह लकीर भी जल्दी मिट जाती है (4) पानी की लकीर - खींची नहीं कि मिट जाती है। संत पहले स्तर पर तो क्रोध को आने ही नहीं देते हैं। आ भी जाये तो वह जल की लकीर की भांति होता है।

सन्तों ने कलह निवारण के उपाय भी बताये है - (1) सहिष्णुता का विकास (2) समग्रता का चिन्तन (3) विनोद प्रियता (4) मौनधारण - कलह को टालने का सरल उपाय है मौन। नीतिकार कहते हैं ‘‘मौनेन कलहा नास्ति‘‘ मौन धारण करने से कलह नहीं होती। एक अंग्रेजी विचारक ने लिखा है मौन स्वर्ण निर्मित आभूषण है।

क्षमा की आज आराधना की है। क्रोध का अभाव कर, बैर व विरोध की गांठ न बंधने दें। यह भी संकल्प लें कि मैं सभी जीवों को क्षमा करता हूँ। सभी जीव मुझे क्षमा करें, सब जीवों के प्रति मेरे मन में मैत्री हो, किसी के प्रति भी बैर न हो। हमारा यथा संभव प्रयास हो - किसी से कलह न हो। कभी कलह हो जाये तो तत्काल उसका निवारण करना चाहिये। यही गृहस्थ की उत्तम क्षमा है।

 

 

नोट:-लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं राष्ट्रीय वरिष्ठ उपाध्यक्ष है।

 


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