कृष्णमोहन झा

कुछ सप्ताह पूर्व जब पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष कमलनाथ के भाजपा में शामिल होने की अटकलें लगाई जा रही थीं तब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने पत्रकारों से बातचीत में कहा था कि कमलनाथ ने नेहरू गांधी परिवार के साथ अपना राजनीतिक कैरियर शुरू किया था अतः उनके भाजपा में शामिल होने की बात आप सोच भी कैसे सकते हैं। बाद में स्वयं कमलनाथ ने सारी अटकलों को खारिज कर दिया और कांग्रेस पार्टी ने राहत की सांस ली। कांग्रेस नेतृत्व को ऐसा महसूस हुआ कि लोकसभा चुनावों की घोषणा के पहले एक बड़ा संकट पार्टी के सिर से टल गया लेकिन गत दिवस अब अचानक ही पूर्व केंद्रीय मंत्री और चार बार के राज्य सभा सांसद सुरेश पचौरी के कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल होने की खबर सामने आई तो मुझे पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की कमलनाथ के बारे में कही गई यह बात याद आ गई कि कोई ऐसा सोच भी कैसे सकता है। कमलनाथ के भाजपा में शामिल होने की अटकलें तो कई दिनों से लगाई जा रही थीं इसलिए कांग्रेस पार्टी को उन्हें मनाने के लिए पर्याप्त समय मिल गया परंतु जब सुरेश पचौरी भाजपा में शामिल हुए तो कांग्रेस पार्टी को मान मनौव्वल का मौका ही नहीं मिल पाया। आज कांग्रेस नेतृत्व यह सोच सोच कर हैरान है कि आखिर ऐसा कैसे हो सकता है। जब लोकसभा चुनाव बिल्कुल सिर पर आ चुके हों तब निःसंदेह कांग्रेस पार्टी के लिए यह बहुत बड़ा झटका है। गौरतलब बात यह भी है सुरेश पचौरी के साथ ही पूर्व सांसद गजेन्द्र सिंह राजू खेड़ी , पूर्व विधायक संजय शुक्ला, भोपाल नगर निगम के पूर्व अध्यक्ष कैलाश मिश्र सहित अनेक कांग्रेस नेताओं ने भाजपा में शामिल होने का फैसला लिया है।इन सभी नेताओं का भोपाल स्थित भाजपा के प्रदेश कार्यालय में आयोजित एक समारोह में पुष्पहार और अंगवस्त्र पहना कर स्वागत किया गया। इस कार्यक्रम में मुख्यमंत्री मोहन यादव, पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष वी डी शर्मा, पूर्व गृहमंत्री नरोत्तम मिश्र सहित भाजपा के अनेक नेता मौजूद थे।

भाजपा ने सुरेश पचौरी का स्वागत जिस तरह पलक पांवड़े बिछाकर किया है उससे यह संकेत मिलता है कि उन्हें पार्टी में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी। सौंपी जा सकती है। प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष बी डी शर्मा ने कहा कि कांग्रेस के लिए यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि उसके अंदर संत कहे जाने वाले राजनेता ने भाजपा में शामिल होने का फैसला किया। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि " हमारी विचार धारा अलग थी परन्तु मैं हमेशा उनकी शालीनता और शुचिता का कायल रहा। भाजपा में उनके शामिल होने के बाद राजनीति में उनके अनुभव हमारे काम आएंगे।" सुरेश पचौरी ने कहा कि जब कांग्रेस ने अयोध्या में नवनिर्मित मंदिर में भगवान राम के प्राण प्रतिष्ठा समारोह का आमंत्रण ठुकरा कर अनादर किया तो मुझे उसका बहुत आघात पहुंचा और मैंने कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल होने का फैसला कर लिया। मैं भगवान राम का अनादर करने वालों के साथ नहीं चल सकता। सुरेश पचौरी ने अयोध्या में भव्य राम मंदिर के निर्माण का श्रेय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को दिया। पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि जो पार्टी कभी जात पर न पात पर मोहर लगेगी हाथ पर का नारा लगाती थी वही पार्टी आज जातीय जनगणना के पक्ष में खड़ी हो गई है इससे जातीय संघर्ष बढ़ रहा है।

लोकसभा चुनावों की घोषणा के कुछ ही दिन पहले मध्यप्रदेश में कांग्रेस के कद्दावर नेताओं में प्रमुख सुरेश पचौरी का भाजपा में शामिल होने का फैसला कांग्रेस पार्टी के लिए कितना बड़ा झटका है इसे पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की प्रतिक्रिया से समझा जा सकता है जो सुरेश पचौरी के इस फैसले से अत्यंत भावुक हो उठे हैं। दिग्विजय सिंह कहते हैं -" 50 साल का रिश्ता भी कोई यूं तोड़ता है क्या। राम मंदिर में आस्था उचित है लेकिन राम की मर्यादा को न भूलें। सच का साथ देने के लिए संघर्ष के पथ पर निस्वार्थ भाव से चलना ही राम के प्रति सच्ची आस्था है।" दिग्विजय सिंह पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी को यह याद दिलाने से भी नहीं चूके कि उन्हें जिस गांधी की बदौलत उन्होंने समाज में इतना मान - सम्मान कमाया उसका साथ संघर्ष के दिनों में उन्होंने छोड़ दिया। गौरतलब है कि सुरेश पचौरी अतीत में मध्यप्रदेश युवक कांग्रेस के सचिव और अध्यक्ष,‍ मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष पद के अलावा दो बार केंद्रीय मंत्रिमंडल के सदस्य और चार बार राज्य सभा सांसद भी रहे चुके हैं।

सवाल यह उठता है कि कांग्रेस के अंदर उन नेताओं की संख्या में लगातार इजाफा क्यों हो रहा है जो आज की तारीख में यह मानने लगे हैं कि पार्टी में उनका राजनीतिक भविष्य अब सुरक्षित नहीं रह गया है। दरअसल कड़वी हकीकत यह है कि उन्हें समूची कांग्रेस पार्टी का ही भविष्य अंधकारमय नजर आने लगा है। 2014 में केंद्र में मोदी सरकार के गठन के बाद से अब तक कांग्रेस के 15 भूतपूर्व मुख्यमंत्रियों सहित अनेक वरिष्ठ नेता पार्टी छोड़ चुके हैं। अभी हाल में ही महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण भाजपा में शामिल हुए थे। कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल होने वाले नेताओं की फेहरिस्त दिनों दिन बढ़ती जा रही है। यह निश्चित रूप से पार्टी के लिए चिंता का विषय है परन्तु अपने नेताओं में भाजपा के प्रति बढ़ते आकर्षण के लिए वह भाजपा को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकती । भाजपा के प्रति पार्टी के कुछ नेताओं के बढ़ते आकर्षण से न केवल कांग्रेस की चुनावी तैयारियां प्रभावित हो रही हैं। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा और न्याय यात्रा से पार्टी ने जो उम्मीदें लगा रखी हैं उन उम्मीदों पर भी पानी फिरता नजर आने लगा है। ऐसा न होता तो पार्टी से पलायन का सिलसिला अब तक थम गया होता। छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और राजस्थान विधानसभाओं के चुनावों में कांग्रेस की शोचनीय पराजय ने पार्टी कार्यकर्ताओं ही नहीं वल्कि नेताओं का मनोबल तोड़ कर रख दिया है। सबसे आश्चर्यजनक बात तो यह है कि कांग्रेस के कर्णधार इस कड़वी हकीकत को स्वीकार करने के लिए तैयार ही नहीं हैं कि पार्टी के पास ऐसा कोई नेता नहीं है जिसके अंदर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की करिश्माई लोकप्रिय को चुनौती देने का सामर्थ्य हो। प्रधानमंत्री मोदी के विराट व्यक्तित्व में समाया चुम्बकीय आकर्षण कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी मुसीबत साबित हो रहा है और कांग्रेस का दुर्भाग्य यह है कि उस चुंबकीय आकर्षण को निष्प्रभावी करने की ताकत कांग्रेस के किसी नेता में नहीं है। यही कारण है कि आगामी लोकसभा चुनावों में भाजपा को चुनौती देने की मंशा से विपक्षी दलों ने जो इंडिया गठबंधन बनाया था उसके घटक दलों को राहुल गांधी का नेतृत्व स्वीकार करने के लिए राजी करने में पार्टी असफल रही। दूसरी ओर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व को भाजपा समर्थक हर राजनीतिक दल अपने सुनहरे भविष्य की गारंटी मान रहा है । मतदाताओं को भी मोदी की गारंटी पर पूरा भरोसा है। मोदी की गारंटी ही भाजपा के लिए लोकसभा चुनावों में जीत की हैट्रिक बनाने का मार्ग प्रशस्त करेगी।


नोट - लेखक राजनैतिक विश्लेषक है।

 


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