कृष्णमोहन झा

पिछले कुछ महीनों में मध्यप्रदेश में कांग्रेस के जिन वरिष्ठ नेताओं ने पार्टी छोड़ कर भाजपा में शामिल होने का फैसला किया है उनमें पूर्व केंद्रीय मंत्री, पार्टी के भूतपूर्व अध्यक्ष और चार बार के राज्य सभा सांसद सुरेश पचौरी की कमी पार्टी को सबसे अधिक खल रही है। सुरेश पचौरी के भाजपा में शामिल होने की खबर के बाद भले ही अचानक आई हो परन्तु हकीकत यह है कि हमेशा ही कांग्रेस के समर्पित नेताओं की कतार में अग्रणी रहे सुरेश पचौरी ने यह फैसला तब लिया जब अत्यंत भरे मन से लिए गए इस फैसले के अलावा उनके सामने कोई अन्य विकल्प कांग्रेस ने नहीं छोड़ा था। कांग्रेस पार्टी में रहकर सुरेश पचौरी ने जो पद और प्रतिष्ठा अर्जित की उसे देखते हुए यह अनुमान लगाना गलत होगा कि वे अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए भाजपा में शामिल हुए हैं। इस उच्च शिक्षित, विनम्र और सहज सरल व्यक्तित्व के धनी इस राजनेता ने पचास वर्षों के राजनीतिक जीवन में इतना यश अर्जित कर लिया था कि कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षा उन्हें भाजपा में शामिल होने के लिए प्रेरित नहीं कर सकती थी।

2014 में केंद्र में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा नीत सजक सरकार के गठन के बाद कई ऐसे मौके आए जब वे राजनीतिक सौदेबाजी करके भाजपा में शामिल हो सकते थे परन्तु शायद पानी गले तक पहुंच जाने के बाद वे यह अप्रत्याशित फैसला लेने के लिए विवश हो गये। कांग्रेस पार्टी सुरेश पचौरी के इस अप्रत्याशित फैसले के लिए आज उनकी आलोचना करते समय यह क्यों भूल जाती है कि उनके राजनीतिक सूझबूझ और अनुभवों से लाभ लेने के बजाय उन्हें एक तरह से हाशिए पर पहुंचा देने में भी संकोच नहीं किया गया। पिछले कुछ सालों में ऐसे अनेक अवसर आए जब पार्टी के विभिन्न फोरमों में लिए जाने वाले महत्वपूर्ण फैसलों में सुरेश पचौरी की राय लेने की आवश्यकता महसूस नहीं की गई। पार्टी में लगातार अपनी उपेक्षा से उपजी उनके मन की पीड़ा का अंदाजा कांग्रेस का वरिष्ठ नेतृत्व नहीं लगा पाया। यह पीड़ा उस समय और घनीभूत हो गई जब कांग्रेस ने विगत दिनों अयोध्या में नवनिर्मित भव्य मंदिर में रामलला के प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम का आमंत्रण ठुकरा दिया। कांग्रेस के इस फैसले से सुरेश पचौरी इतने व्यथित हो गये कि उन्होंने कांग्रेस से अपना पचास वर्षों का नाता तोड़ने का फैसला कर लिया। भाजपा में शामिल होने के बाद सुरेश पचौरी ने रामचरित मानस की एक चौपाई का उदाहरण देते हुए कहा कि कोई कितना भी प्रिय क्यों न हो लेकिन अगर वह राम का विरोध करे तो उसे छोड़ दो। जो लोग भगवान राम का अनादर कर रहे हैं मैं उनके साथ खड़ा नहीं हो सकता। सुरेश पचौरी ने साफ कहा कि मैं बिना किसी शर्त के भाजपा में आया हूं और अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में देश की सेवा करूंगा।

सुरेश पचौरी ने यद्यपि अयोध्या में नवनिर्मित भव्य मंदिर में रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा के कार्यक्रम में शामिल न होने के कांग्रेस पार्टी के फैसले को पार्टी छोड़ने का मुख्य कारण बताया परंतु इसमें दो राय नहीं हो सकती कि पिछले कई महीनों से अनेक मुद्दों पर कांग्रेस पार्टी के साथ उनके मतभेदों में निरंतर इजाफा हो रहा था। सर्जिकल स्ट्राइक पर कांग्रेस पार्टी द्वारा उठाए गए सवालों को अनुचित बताते हुए उन्होंने कहा कि सेना के शौर्य पर सवाल नहीं उठाए जाते परंतु कांग्रेस ने ऐसा किया। जाति जनगणना का समर्थन करके कांग्रेस ने वर्षों पुराने नारे " जात पर न पात पर मोहर लगेगी हाथ पर " को भुला दिया है। कांग्रेस कभी अपने जिन सिद्धांतों और नीतियों के लिए जानी जाती थी उनसे वह विमुख हो गई है।

सुरेश पचौरी ने कांग्रेस छोड़ने के जो कारण गिनाए हैं उन पर निःसंदेह गौर करने की जरूरत है। जिस पार्टी में उन्होंने पचास वर्षों तक सेवाएं दीं उससे रिश्ता तोड़ने में उन्हें कितनी पीड़ा हुई होगी उसका अहसास शायद कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व को नहीं है। दिक्कत यह है कि कांग्रेस नेतृत्व गंभीरता पूर्वक आत्ममंथन करके उन कारणों का पता भी नहीं लगाना चाहती जो जिनकी वजह से समर्पित और निष्ठावान नेताओं को भरे मन से पार्टी छोड़ने के लिए विवश होना पड़ रहा है और अगर ऐसे समर्पित और निष्ठावान नेताओं का भाजपा में पलक पांवड़े बिछाकर स्वागत किया जा रहा है तो कांग्रेस को उन पर विश्वासघात करने का आरोप लगाने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है।


नोट - लेखक राजनैतिक विश्लेषक है।

 


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