लोकेन्‍द्र पाराशर

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कोई सख्त फैसले लेने वाले प्रशासक के रूप में देखता है, तो कोई उन्हें सुशासन के लक्ष्य को हासिल करने के लिए आधुनिक तकनीकी के प्रयोग का प्रबल आग्रही मानता है। कोई उनके विशुद्ध राष्ट्रवाद का कायल है, तो कोई उन्हें लगातार बिना छुट्टी लिए काम करने वाले, परिश्रमी और ईमानदार प्रधानमंत्री के रूप में देखता है। ये सारी बातें सही हैं, लेकिन देश के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सबसे बड़ा योगदान यह है कि भारत के गौरव का नए कलेवर में जो वैश्विक उदय हो रहा है उसके शिल्पकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही हैं।

वैश्विक परिदृश्य में किसी देश का कद उसके आकार या उसकी जनसंख्या के आधार पर तय नहीं होता। अगर ऐसा होता तो, भारत 10 साल पहले भी चीन के बाद दुनिया का दूसरा सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश था। उस समय भी भारत का भौगोलिक क्षेत्रफल उतना ही था, जितना आज है। इसके बावजूद उसकी बात को दुनिया तवज्जो नहीं देती थी। लेकिन बीते 9 सालों में भारत के प्रति यदि दुनिया के नजरिए में 360 डिग्री का बदलाव आया है, तो इसकी वजह मोदी सरकार की वो नीतियां, फैसले और पहल ही हैं, जो बीते 9 सालों में लिए गए हैं।

मोदी सरकार से पहले तक भारत की गिनती तीसरी दुनिया के एक विकासशील और गरीब देश के रूप में होती थी, जिसके लिए उसकी विशाल जनसंख्या अभिशाप बन गई थी। इतनी बड़ी जनसंख्या को ईंधन, दवाएं और अन्य मूलभूत चीजें उपलब्ध कराने के लिए भी देश को विकसित देशों से गुहार लगानी पड़ती थी और एक याचक का सम्मान करना विश्व राजनीति में कहीं दिखाई नहीं देता। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश की विशाल जनसंख्या और उसकी वैश्विक जरूरतों को बड़े ही सुनियोजित तरीके से उसकी ताकत बनाने का काम शुरू किया। उन्होंने दुनिया के सामने भारत को एक स्‍वावलंबी राष्‍ट्र के रूप में प्रस्तुत किया। एक ऐसा राष्‍ट्र जिसकी अर्थव्यवस्था दुनिया पर आश्रित नहीं, बल्कि स्वयं की ताकत से ही संचालित है। ऐसे समय में जबकि यूरोपीय और जापान जैसे अनेक देश काम करने योग्य जनसंख्या की कमी से जूझ रहे थे , मोदी सरकार ने भारत को एक विशाल मानव संसाधन वाले देश के रूप में प्रस्तुत किया। प्रधानमंत्री मोदी की इस पहल का असर सारी दुनिया में दिखाई दिया और भारत में विदेशी निवेश तेजी से बढ़ने लगा।

पं. जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी की सरकारों के समय में भारत की विदेश नीति मूलत: गुटनिरपेक्षता की अवधारणा से संचालित होती थीं। इसके अलावा मुस्लिम देशों के साथ संबंध कांग्रेस पार्टी के देश में मौजूद वोट बैंक का ध्यान रखते हुए तय किए जाते थे। पं. नेहरू और इंदिरा गांधी की सरकारों के दौरान दुनिया दो ध्रुवीय थी। एक तरफ वारसा देशों के साथ सोवियत संघ था, तो दूसरी तरफ नाटो और पश्चिमी देशों का नेता अमेरिका था। उस समय भारत की गुटनिरपेक्षता का मतलब था-इन दोनों ही ध्रुवों से समान दूरी रखना। ये अलग बात है कि 62 में चीन के खिलाफ युद्ध में जहां अमेरिका ने भारत का साथ दिया था, तो 1971 के भारत-पाक युद्ध में सोवियत संघ उस भूमिका में आ गया था। गुट निरपेक्षता की नीति पर चलते हुए भारत और उसके समर्थक देशों ने निर्गुट आंदोलन के रूप में दुनिया में एक तीसरी ताकत खड़ी करने का काम जरूर किया, लेकिन इससे देश को प्रत्यक्षत: कोई फायदा नहीं हुआ। और सारी दुनिया जानती है कि स्वयं को गुटनिरपेक्ष बताने के बावजूद अंतरराष्ट्रीय राजनीति में भारत का रुख हमेशा सोवियत संघ की ओर झुका रहा। मोदी सरकार की शुरुआत के समय सोवियत संघ के उत्तराधिकारी के रूप में रूस उभर चुका था। हालांकि सोवियत संघ के बिखराव के बाद दुनिया में अमेरिका के रूप में एक ही महाशक्ति रह गई थी, लेकिन रूस और चीन उसके प्रभुत्व को चुनौती देने वाले देशों के रूप में उभर रहे थे। प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लेने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने भारत की विदेश नीति को पूरी तरह पलट दिया। उनकी सरकार ने गुटनिरपेक्षता को नया अर्थ दिया, जिसका मतलब था-सभी ध्रुवों से मित्रता। इसी नीति पर चलते हुए भारत आज रूस और अमेरिका दोनों का करीबी मित्र है और ये दोनों ताकतवर देश उस पर विश्वास भी करते हैं।

प्रधानमंत्री मोदी की सरकार ने सत्ता में आते ही भ्रष्टाचार के घुन की समाप्ति और देश की अर्थव्यवस्था में जान फूंकने के प्रयास शुरू कर दिए थे, जिनके परिणाम भी कुछ ही सालों में दिखाई भी देने लगे थे। मोदी सरकार ने अपना फोरेक्स रिजर्व बढ़ाना शुरू किया, जिसे दुनिया में किसी देश की आर्थिक ताकत के रूप में देखा जाता है। सरकार के इन्हीं प्रयासों के फलस्वरूप आज देश का फोरेक्स रिजर्व 600 अरब डॉलर के आसपास पहुंच गया है। कोरोना महामारी और लद्दाख में चीन से तनाव के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने आत्मनिर्भर भारत का नारा दिया और उसे प्रोत्साहित करने के लिए कदम भी उठाए। इसका सुखद परिणाम यह हुआ कि विदेशों से किए जाने वाले आयात में लगातार कमी आ रही है और देश की जीडीपी बढ़ रही है। आत्मनिर्भर भारत अभियान का सबसे बड़ा फायदा रक्षा के क्षेत्र में हुआ है और रक्षा उत्पादन में एक क्रांति आ गई है। रक्षा उपकरणों के निर्माण में सरकारी कंपनियों का हाथ बंटाने अनेक निजी कंपनियां आगे आई हैं और आज भारत न सिर्फ लड़ाकू युद्धपोत, विमान वाहक पोत और पन्डुब्बियां बना रहा है, बल्कि वायुसेना के लिए लड़ाकू विमान, हेलीकॉप्टर, राडार, मिसाइलों, ड्रोन आदि का निर्माण भी देश में ही हो रहा है। इससे रक्षा आयात पर खर्च होने वाली बड़ी राशि की बचत हुई है साथ ही भारत की छवि एक सक्षम देश के रूप में भी बन रही है।

मोदी सरकार की विदेश नीति में वसुधैव कुटुम्बकम यानी ‘सारी दुनिया एक परिवार है’ की भावना का बहुत अहम योगदान रहा है। मोदी सरकार के लिए यह मंत्र कोई कोरा सिद्धांत नहीं रहा, बल्कि अनेक मौकों पर इसे साकार भी किया है। कोरोना संकट में जब दुनिया के सारे देश दूसरों के लिए दरवाजे बंद कर रहे थे, मोदी सरकार ने उन्हें जरूरी दवाएं भेजी। भारत को जब अपनी वेक्सीन बनाने में सफलता मिली तो उसने मुक्त हस्त से दुनिया के देशों की सहायता की। विशेषकर गरीब देशों को प्राथमिकता के आधार पर वेक्सीन भेजी। अफगानिस्तान में सत्ता पर काबिज तालिबान को भारत एक आतंकी समूह मानता रहा है और अभी तक भारत ने अफगानिस्तान की नई सरकार को मान्यता नहीं दी है। लेकिन जब अफगानिस्तान की जनता पर भुखमरी का संकट मंडराया, तो भारत ने मानवीय सहायता के तौर पर हजारों टन गेंहूं और दवाएं अफगानिस्तान को दिये। वैश्विक राजनीति में तुर्की पाकिस्तान का समर्थक यानी भारत का विरोधी देश रहा है, लेकिन वहां जब विनाशकारी भूकंप आया, तो भारत वह पहला देश था, जिसने मानवीय सहायता के तौर पर सेना के डॉक्टर, राहत एवं बचाव दल, दवाएं आदि तुर्की भेजे। इन उदाहरणों से भारत ने दुनिया में यह साबित कर दिया कि उसकी नीतियां दिखावटी नहीं है, बल्कि वो जैसा सोचता है, वैसा करता भी है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनते ही सारी दुनिया के दौरे शुरू कर दिए थे। हालांकि विपक्ष इसकी आलोचना करता रहा, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने दुनिया से संपर्क बढ़ाने के अपने अभियान को जारी रखा। इस दौरान प्रधानमंत्री मोदी उन देशों में भी गए, जहां अब तक भारत का कोई प्रधानमंत्री नहीं गया था। उन्होंने पूर्वी देशों से संबंध सुधारने के लिए जहां लुक ईस्ट की नीति बनाई, वहीं, दुनिया के गरीब और पिछड़े देशों को एकजुट करने की मंशा से ग्लोबल साउथ की अवधारणा पर काम शुरू किया। तमाम अंतर्विरोधों के बावजूद मोदी सरकार ने संकट के समय अपने पड़ोसी देशों श्रीलंका, बांग्लादेश और मालदीव की सहायता करने में कोई झिझक नहीं दिखाई। मोदी सरकार की इसी कवायद का परिणाम है कि दुनिया में भारत की कूटनीतिक ताकत कई गुना बढ़ गई है। पाकिस्तान आज सारी दुनिया में अलग-थलग पड़ गया है। भारत चाहे रूस से एस-400 खरीदे या कच्चा तेल, उस पर कोई प्रतिबंध लागू नहीं होते। सारी दुनिया से दोस्ती बढ़ाने के इन्हीं प्रयासों का परिणाम है कि आज संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव स्वयं भारत को सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनाने की वकालत करते हैं और सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य न होने के बावजूद भारत विश्व राजनीति में उसके जैसा ही प्रभाव रखता है।

हाल ही में सम्‍पन्‍न जी-20 शिखर सम्‍मेलन में भारतीय प्रधानमंत्री ने एक मुखिया के आचरण को जिस प्रकार से परिभाषित किया है, यही वसुधैव कुटुम्‍बकम की मूल अवधारणा है। इस शिखर सम्‍मेलन को स्‍वामी विवेकानंद की उस दृष्टि से भी देखा जा सकता है जिसमें उन्‍होंने कहा था कि- मैं देख रहा हूं भारत माता विश्‍व गुरु के सिंहासन पर विराजित हो रही है।

 


नोट:- लेखक भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश मंत्री हैं।


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