जन्मदिन 25 अगस्त पर विशेष

विजय कुमार जैन राघौगढ़ म.प्र.

भारत के स्वाधीनता आन्दोलन एवं देश की आजादी में अगस्त माह का विशेष महत्व है। 9 अगस्त 1942 को महात्मा गांधी के नेतृत्व में "भारत छोड़ो आन्दोलन" का शुभारंभ हुआ। इस अहिंसक आन्दोलन का सुखद परिणाम यह निकला कि हमारा भारत सदियों की गुलामी से मुक्त होकर 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ।

यह भी सुखद संयोग है अगस्त माह में ऐसी विभूति ने जन्म लिया, जिन्होंने ने देश और दुनिया में अपने विलक्षण कार्यों से नाम रोशन किया। भारत के एवं जैन समाज के गौरव पुरुष वीरचंद राघव गाँधी का जन्म गुजरात में भावनगर के निकट महुआ में 25 अगस्त 1864 को नगर सेठ राघव तेजपाल गाँधी के यहाँ हुआ। वे वचपन से ही वहुत प्रतिभाशाली और तीक्ष्ण बुद्धि बाले थे। हाईस्कूल परीक्षा में उन्होंने ने प्रथम स्थान प्राप्त किया था। उन्हें जसबंत सिंह स्मृति छात्रवृत्ति भी मिली थी।

आपका विवाह सन 1879 में जीवाबेन से हुआ। विवाह के बाद उन्होंने पढ़ाई जारी रखी और पारिवारिक व्यवसाय से अलग हटकर लाँ की पढ़ाई की और बैरिस्टर के रूप में प्रतिष्ठित हुए। गुजराती, हिन्दी, अंग्रेजी,प्राकृत, संस्कृत, फ्रेंच आदि 14 भाषाओं का उन्हें ज्ञान था।

वीरचंद राघव गाँधी, स्वामी विवेकानंद और महात्मा गाँधी के समकालीन एवं अभिन्न मित्रों में थे। आप महात्मा गाँधी द्वारा आयोजित शाकाहारी कार्यक्रमों में उत्साह से भाग लेते थे। वीरचंद राघव गाँधी का राजनीति व सामाजिक कार्यों में विशेष योगदान रहा। 1895 में भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के अधिवेशन में उन्होंने ने बम्बई प्रांत का प्रतिनिधित्व किया था। 18 दिसंबर 1898 में विलियम साइंस बिल्डिंग के बड़े हाल में "भारतीय राजनीति और इण्डस्ट्री" विषय पर उन्होंने ने अपना व्यक्तव्य दिया था जिसकी सर्वत्र सराहना हुई थी।

वीरचंद गाँधी ने 1899 में inter national conference of commerce में एशिया का प्रतिनिधित्व किया था। सन 1893 में शिकागो में आयोजित पहली धर्म संसद में, जिसमें स्वामी विवेकानंद जी विश्व प्रसिद्ध हो गये थे, उसमें वीरचंद राघव गाँधी ने जैन धर्म के प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया था जहाँ पर उनके व्यक्तव्य व प्रस्तुति को इतना पसंद किया गया कि बाद में एक के बाद एक उनके अनेक व्यक्तव्य सुने गये। वे दो वर्ष तक अमेरिका में और एक वर्ष इंग्लैंड में रुके। इसके बाद दो बार और विदेश गये। आपने विदेश प्रवास के दौरान अपने व्यक्तव्यों के माध्यम से जैन धर्म का व्यापक प्रचार प्रसार किया।

आपने विदेशियों को जैन धर्म की ओर आकर्षित किया। उनके द्वारा दिये गये व्यक्तव्यों के लिये उनको बहुत सारे मेडल, पुरस्कार और सम्मान भी दिये गये। स्वामी विवेकानंद और वीरचंद गाँधी समकालीन थे वे दोनों एक दूसरे का सम्मान करते थे। एक पुरानी कहाबत है पूत के लक्षण पालने में दिख जाते है। इस कहाबत को वीरचंद गाँधी ने चरितार्थ किया।उनकी प्रतिभा का पता तो युवावस्था से ही चलने लगा था। सन 1885 में मात्र 18 वर्ष की आयु में वीरचंद गाँधी " जैन एसोसिएशन आँफ इण्डिया"के पहले अवैतनिक मंत्री बने। आपने विश्व प्रसिद्ध जैन तीर्थ शत्रुंजय पालीताना पर यात्रियों से बसूला जाने बाला टेक्स हटवाया। जैन तीर्थ सम्मेद शिखर के पास खुलने बाले कत्लखानों को बंद कराया। भारत माता के महान सपूत देश और दुनिया में भारत का नाम ऊंचा करने बाले वीरचंद राघव गाँधी युवा अवस्था में ही फेफड़ों की बीमारी से पीड़ित हो गये।

मात्र 37 वर्ष की अल्पायु में 7 अगस्त 1901 को बम्बई के निकट महुआ में उनका असामयिक स्वर्गवास हो गया। अपने 37 वर्ष के जीवनकाल में देश-विदेश की सभी धार्मिक जैन अजैन संस्थाओं में उन्होंने वहुत सम्मान पाया। उनके स्वर्गवास के उपरांत स्वतंत्र भारत में 1964 में उनकी स्मृति में महुआ में एक म्यूजियम की स्थापना की गई। सन 1990 में उनकी एक मूर्ति शिकागो में और दूसरी महुआ में स्थापित की गई। उनके जीवन पर आधारित एक नाटक तैयार किया गया जिसका नाम "Gandhi before Gandhi" रखा। इस नाटक का मंचन दुनिया के विभिन्न देशों में अभी तक 200 बार हो चुका है। 8 नवंबर 2002 को भारतीय डाक सेवा ने उनके सम्मान में डाक टिकट जारी किया। हम 25 अगस्त जन्मदिन के अवसर पर विलक्षण प्रतिभा के धनी वीरचंद राघव जी गाँधी का स्मरण कर विनम्र श्रृद्धांजली अर्पित करते है।

 

 

नोट:- लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं भारतीय जैन मिलन के राष्ट्रीय वरिष्ठ उपाध्यक्ष है।


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