विजय कुमार जैन राघौगढ़ म.प्र.

राजस्थान के सुप्रसिद्ध ऐतिहासिक नगर कोटा को वर्तमान में देश के प्रमुख शिक्षण नगर के रूप में आज जाना जाता है। सारे देश के छात्र-छात्राएं यहां एक वर्ष अथवा दो वर्ष रहकर कोचिंग कक्षाओं में अध्ययन कर प्रतियोगी परीक्षाएं देते हैं। यहां इतने बड़े कोचिंग संस्थान संचालित हैं जिनमें लगभग 1 लाख तक छात्र-छात्राओं को प्रवेश देकर विभिन्न विषयों का कोचिंग दिया जाता है। सन 2015 से आज तक लगभग 9 वर्ष में सैकड़ों छात्र-छात्राओं ने अकेले कोटा में आत्महत्या की है। वर्ष 2023 में ही पिछले 8 माह में कोचिंग संस्थानों में कोटा में पढ़ने वाले उत्तर प्रदेश, बिहार के 23 बच्चों ने पढ़ाई के बोझ से आत्महत्या कर ली। कोटा पुलिस के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2015 में 17 छात्रों ने आत्महत्या की, 2016 में 16, 2017 में 7, 2018 में 20, 2019 में 8 छात्रों ने आत्महत्या की। 2020-21 में कोरोना महामारी के कारण आत्महत्याओं के आंकड़ों में गिरावट आई क्योंकि छात्र अपने घर चले गए थे। वर्ष 2022 में आंकड़ा फिर 15 पहुंच गया।

आत्महत्या की घटनाओं से हमारी वर्तमान शिक्षा व्यवस्था गंभीर प्रश्नों के घेरे में आ गई है। छात्र-छात्राओं द्वारा निराश, उदास होकर आत्महत्या करने का यह क्रम आज तक जारी है। निरंतर जारी आत्महत्या की घटनाओं से हमारी वर्तमान शिक्षा व्यवस्था गंभीर प्रश्नों के घेरे में आ गई है। कोटा ही नहीं देश के अन्य नगरों में भी हमारे बच्चे जीवन में सफल न होने से दुखी होकर आत्महत्या कर रहे हैं। इन आत्महत्याओं का क्या कारण है, इस ओर देश के कर्णधार राजनेता, बुद्धिजीवी, कलाकार कोई आगे नहीं आए हैं। क्या वर्तमान परिवेश में हमारी मानवीय संवेदनाएं शून्य हो गई हैं। इससे अधिक संवेदनशील प्रश्न आज कोई दूसरा नहीं है। जब हमारे ही बच्चे जिन्होंने सपने देखे थे, सपने पूरे नहीं होने पर हताश निराश होकर अपने मां-बाप, समाज दोस्तों के ताने तीक्ष्ण व्यंग्य वाणों को सुनकर तंग आकर अपनी जान दे रहे हैं।

परीक्षा में उत्तीर्ण नहीं होने पर छात्र द्वारा आत्महत्या कर ली है समाचार कभी-कभी आते थे, मगर पिछले वर्षों में तो अती ही हो गई जब अकेले कोटा नगर में छात्र-छात्राओं ने आत्महत्या करने का क्रम जारी रखा है। छात्रों द्वारा की जा रही आत्महत्या की घटनाओं की समीक्षा होना चाहिए। इन घटनाओं के लिये हम एकमात्र छात्रों को दोषी नहीं ठहरा सकते। बालक जब किशोर अवस्था में पहुंचता है उस दौरान ही वह कच्ची मिट्टी के घड़े के समान होता है, उसे घड़े को जब कुम्हार पकाता है तभी वह पक्का कहलाता है। हम भारत की युवा पीढ़ी का यह दुर्भाग्य ही कहेंगे कि देश के कर्णधार नेता विदेश में जाकर सीना तानकर कहते हैं, सारी दुनिया में सबसे ज्यादा युवा पीढ़ी भारत में है। मगर युवा पीढ़ी के सपनों को साकार रूप देने इन राजनेताओं ने आज तक कोई ठोस कदम नहीं उठाए हैं।

जिन छात्रों ने आत्महत्या की है उनमें से कुछ के आत्महत्या के पूर्व लिखे पर्चे मिले हैं एक बेटी ने अपनी मां के लिए लिखा है यदि मम्मी सिलेक्शन नहीं हुआ तो किसी से नजरें नहीं मिला पाऊंगी। मैं चाहती थी आप मुझ पर गर्व करें। इसी प्रकार एक और पर्ची मिली जिसमें लिखा है मैं बहुत प्रेशर में था, पापा के पैसे बर्बाद हुए, मैं उनकी अपेक्षा पर खड़ा नहीं उतर सका। भारत देश प्राचीन संस्कृति को अपने आप में समेटे हुए हैं। मगर आज मानवीय संवेदनाएं समाप्त हो गई प्रतीत हो रही हैं। छात्रों की लगातार आत्महत्या अगर दुनिया का कोई और देश होता तो पूरा समाज शहर सड़कों पर उतर आता। भारत में उच्च कोटि के आई आई टी, औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान है इन संस्थानों में लगभग 10000 सीट हैं, जबकि इन संस्थानों में प्रवेश हर वर्ष लगभग 18 से 20 लाख छात्र-छात्राएं आवेदन देते हैं। 10000 को प्रवेश मिलने के बाद शेष को तो निराशा ही हाथ लगती है। जो छात्र आईआईटी जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में प्रवेश से वंचित रह जाते हैं, उन्हे प्रायवेट कॉलेजों में प्रवेश लेकर पढ़ाई करनी पड़ती है।

हमने यह विचार किया शासकीय एवं निजी कॉलेजो की क्या स्थिति है। भरपूर शुल्क लेने के बाद क्या वह पढ़ाई होती है। इन शिक्षण संस्थानों की दयनीय स्थिति से राज्य सरकारें भी भली भांति परिचय हैं। कोटा में जिन छात्रों ने आत्महत्यायें की हैं, उनमें अधिकांश बिहार उत्तर प्रदेश आदि हिंदी भाषी राज्यों के बताए गए हैं। जिनके बेटे ने हायर सेकेंडरी तक पढ़ाई हिंदी माध्यम से की है उनके मां-बाप कोटा लाकर अंग्रेजी माध्यम की कोचिंग करने के लिए मजबूर कर रहे हैं। और ऊपर से छात्र-छात्रा पर यह दबाव निरंतर रहता है तेरी कोचिंग पर मेरा पैसा खर्च हो रहा है। परीक्षा में अवश्य उत्तीर्ण होना। हिंदी माध्यम से आज तक जिसने शिक्षा प्राप्त की है उसे कोटा जैसे कोचिंग संस्थानों में कोचिंग करने मजबूर कर रहे हैं। हिंदी माध्यम से आज तक जिसमें शिक्षा प्राप्त की है उसे कोटा जैसे कोचिंग संस्थानों में अपने आप को ढ़ालने में अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। जो छात्र कोचिंग कक्षाओं में अपना मन नहीं लगा पाते हैं वे उन पुराने छात्रों के में मित्र बन जाते हैं। जो पहले से ही असफल हो रहे हैं। उन पुराने छात्रों के साथ रहकर व्यसनों में फंसकर जीवन बर्बाद करने लगते हैं।

मां-बाप समझते हैं उनका बेटा इंजीनियर या डॉक्टर बनने की तैयारी कर रहा है। इसके विपरीत उनका बेटा गलत मार्ग पर जा रहा है। जब मां बाप को पता चलता है उनका बेटा कोचिंग न करके गलत लाइन पर जा रहा है। बेटे को लाड प्यार अथवा डांट फटकार से समझाने का प्रयास किया जाता है। निराशा भरे इस वातावरण में उस छात्र को आत्महत्या उचित उपाय दिखता है। और वह बिना आगे पीछे की सोच भावावेश में आत्महत्या कर लेता है।

दिगंबर जैन आचार्य विद्यासागर के परम प्रभावक क्रांतिकारी संत मुनि प्रमाण सागर का कहना है वर्तमान युवा पीढ़ी में संस्कार विहीनता की बढ़ती दुष्प्रवृत्ति का ही यह घातक परिणाम है। इनमें नकारात्मक सोच विकसित हो रहा है और वह जीवन से निराश होकर आत्महत्या जैसे कदम उठा रहे हैं। मुनिराज का कहना है मां-बाप का यह दायित्व भी अपने बच्चों को बचपन से ही संस्कारों की शिक्षा दें। युवा पीढ़ी को नकारात्मक सोच से रोकने सकारात्मक एवं रचनात्मक सोच विकसित करने की आवश्यकता है। हर माता-पिता का यह सोच होता है कि उसकी संतान अच्छे से अच्छी शिक्षा प्राप्त कर उच्च पद पर पहुंचकर उनका वह परिवार का नाम ऊंचा करें। प्रतिस्पर्धा तो होना चाहिए इससे प्रतिभा उभर कर आती है। साथ यह भी विचारणीय प्रश्न है अंग्रेजों ने लार्ड मेकाले की जो शिक्षा नीति का फार्मूला बनाया था, वह भी आज तक चल रहा हैं।

शिक्षा नीति में आमूलचूल परिवर्तन की आवश्यकता है। छात्र-छात्राओं में भी हमें इतना आत्मविश्वास जागृत करना होगा कि जीवन में प्रतियोगी परीक्षा में अनुत्तीर्ण होना यह नहीं मानना होगा कि अब कुछ नहीं बचा सब कुछ नष्ट हो गया। साथ ही माता-पिता, शिक्षक भी बालक को उसकी क्षमता से बड़ी उड़ान के सपने दिखाना बंद करें। मगर बालक परीक्षा में असफल हुआ तो उसे प्रताड़ित करने पर भी रोक लगाना आवश्यक है। युवकों की यह सूत्र बताने की आवश्यकता है कोशिश करने बालों की कभी हार नहीं होती।


नोट - लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं भारतीय जैन मिलन के राष्ट्रीय वरिष्ठ उपाध्यक्ष हैं।


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