कृष्णमोहन झा

भारत के पड़ोसी बंगला देश की प्रधानमंत्री शेख हसीना वाजेद की सरकार ने अगले साल जनवरी में संसदीय चुनाव कराने का फैसला किया है लेकिन वहां के मुख्य विपक्षी दल बंगला देश नेशनलिस्ट पार्टी ( बी एन पी ) की मांग है कि आगामी चुनाव के पहले शेख हसीना वाजेद की सरकार इस्तीफा दे दे और एक कार्यवाहक सरकार की देखरेख में ये चुनाव संपन्न कराए जाएं । विपक्षी दल को यह डर सता रहा है कि चुनावों के दौरान प्रधानमंत्री पद की बागडोर अगर शेख हसीना वाजेद के पास रहेगी तो उनकी पार्टी अवामी लीग फिर से सत्ता में आ जाएगी। जाहिर सी बात है कि हसीना वाजेद इसके लिए तैयार नहीं हैं ।

गौरतलब है कि 2014 और 2018 में संपन्न चुनावों के दौरान भी प्रधानमंत्री पद की बागडोर शेख हसीना वाजेद के पास ही थी। विपक्षी दल बंगला देश नेशनलिस्ट पार्टी की मांग है कि अगले साल जनवरी में होने वाले चुनावों की निष्पक्षता सुनिश्चित करने हेतु शेख हसीना वाजेद प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दें और कार्यवाहक सरकार की देखरेख में चुनाव कराए जाएं । सरकार पर दबाव बनाने के लिए विपक्ष अब आंदोलन का सहारा ले रहा है लेकिन विपक्ष का आंदोलन अब शांतिपूर्ण नहीं रह गया है। ढाका में चार दिन पूर्व विपक्ष ने जो रैली आयोजित की थी उसमें व्यापक पैमाने पर हिंसा हुई जिससे निपटने के लिए सरकार ने सख्ती दिखाने से परहेज़ नहीं किया। नतीजतन सरकार और विपक्ष के बीच टकराव की स्थिति बन चुकी है । यह टकराव निरंतर बढ़ रहा है लेकिन प्रधानमंत्री शेख हसीना वाजेद को पूरा भरोसा है कि सरकार के विरोध में विपक्ष चाहे जितने प्रदर्शन कर ले, लेकिन आगामी चुनाव के बाद लगातार चौथी बार अवामी लीग की ही सरकार बनेगी।

गौरतलब है कि शेख हसीना वाजेद की पार्टी 2009 से लगातार तीन चुनाव जीत चुकी है और 14 वर्षों से प्रधानमंत्री पद की बागडोर उनके पास है और 2009 के पहले भी दो बार प्रधानमंत्री रह चुकी हैं। दूसरी ओर विपक्षी दल बंगला देश नेशनलिस्ट पार्टी की मुखिया खालिदा जिया भ्रष्टाचार के आरोपों में पांच सालों से जेल में बंद है। उनके पुत्र शेख हसीना वाजेद की हत्या का षड्यंत्र रचने के आरोप में सजा मिलने के बाद लंदन में निर्वासित जीवन बिता रहे हैं। उन पर मनी लांड्रिंग में लिप्त होने के आरोप भी लगाए गए थे। यही आरोप खालिदा जिया पर लगाए गए थे। हसीना वाजेद के प्रधानमंत्री बनने के पूर्व वे ही प्रधानमंत्री की कुर्सी पर काबिज थीं। उनकी पार्टी ने 2014 के चुनावों का बहिष्कार कर दिया था। उसके बाद 2018 के चुनावों में खालिदा जिया की पार्टी ने अपने उम्मीदवार खड़े जरूर किए लेकिन उनमें से मात्र 7 उम्मीदवारों को जीत का स्वाद चखने को मिला और इन सातों सांसदो नें भी बाद में प्रधानमंत्री शेख हसीना वाजेद के इस्तीफे की मांग को लेकर अपनी सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था। चूंकि वह जेल में बंद हैं इसलिए पिछले पांच सालों से पार्टी के जनरल सेक्रेटरी फखरुल इस्लाम आलमगीर पार्टी का नेतृत्व कर रहे हैं। बंगला देश नेशनलिस्ट पार्टी ने हसीना वाजेद सरकार पर दबाव बनाने के लिए चार दिन पहले ढाका में जो रैली आयोजित की थी उसमें हिंसा भड़काने के आरोप में फखरुल इस्लाम रहमान आलमगीर को भी गिरफ्तार कर लिया गया है। रैली में भड़की हिंसा में एक पुलिसकर्मी और एक प्रदर्शनकारी की मौत हो गई थी। बीएनपी के प्रदर्शनकारिय़ों‌ ने कई सरकारी इमारतों में तोड़फोड़ की ,एक पुलिस बूथ में आग लगा दी और मुख्य न्यायाधीश के आवास पर पथराव किया। उपद्रवियों को काबू पाने के लिए पुलिस ने अश्रुगैस छोड़ी और रबर की गोलियां चलाईं। पुलिस बल प्रयोग के विरोध में बीएनपी ने तीन दिन की नाकेबंदी का ऐलान किया है।

गौरतलब है कि एक साल पूर्व भी बंगला देश नेशनलिस्ट पार्टी ने अपने सहयोगी दल जमाते इस्लामी के साथ मिलकर हसीना वाजेद सरकार के खिलाफ ढाका में एक रैली का आयोजन किया था। यहां यह विशेष उल्लेखनीय है कि जमाते इस्लामी पर बंगला देश मुक्ति संग्राम में अत्याचारी पाकिस्तानी सेना का साथ देने का आरोप लगाया गया था ‌इसलिए उसे देश की जनता ने कभी पसंद नहीं किया। बंगला देश नेशनलिस्ट पार्टी ने शेख हसीना वाजेद के हाथ से सत्ता छीनने के लिए जमाते इस्लामी का समर्थन लेकर वास्तव में जनता की नजरों में अपनी छवि को धूमिल ही किया है।

जहां तक संसदीय चुनाव के पहले देश की संसद को भंग कर कार्यवाहक सरकार के गठन की मांग का सवाल है तो यह मांग तो 2014 और 2018 में भी बंगला देश नेशनलिस्ट पार्टी ने की थी और अगर उसकी यह मांग पूर्व के दो चुनावों में नहीं मानी गई तो इस बार भी प्रधानमंत्री शेख हसीना वाजेद उसकी यह मांग मंजूर नहीं करेंगी । इस हकीकत से बंगला देश नेशनलिस्ट पार्टी अच्छी तरह वाकिफ है इसके बावजूद प्रदर्शन और रैलियों का आयोजन कर रही है तो उसके पीछे उसकी मंशा दरअसल बंगला देश में हसीना वाजेद सरकार के खिलाफ माहौल बना कर आगामी चुनावों में उसका राजनीतिक लाभ लेने की है लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि शेख हसीना वाजेद अभी तक विपक्ष के प्रदर्शनों से कोई विशेष चिंतित नहीं हैं यद्यपि ढाका में पिछले दिनों आयोजित विपक्षी रैली में जिस तरह भारी भीड़ उमड़ी उससे वे थोड़ी परेशान जरूर हुई होंगी। वहीं विपक्षी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी को भी यह सोचना होगा कि अपनी रैली में जुटी भारी भीड़ को देखकर क्या इतना खुश होना चाहिए जैसे अगले चुनावों में उसने बहुमत हासिल कर लिया हो। आखिर विपक्षी पार्टी यह कैसे भूल गई कि एक साल पहले भी उसने हसीना वाजेद सरकार पर दबाव बनाने के इरादे से ऐसी ही एक रैली आयोजित की थी और उसमें भी भारी भीड़ उमड़ी थी परन्तु उसका कोई राजनीतिक लाभ बंगला देश नेशनलिस्ट पार्टी नहीं ले पाई । अब देखना यह है कि इस बार की रैली से वह क्या हासिल कर पाती है परन्तु इतना तो तय है कि प्रधानमंत्री शेख हसीना वाजेद को अगले चुनावों के बाद अपने हाथ से सत्ता जाने की कोई आशंका अभी नहीं सता रही है।

बंगला देश नेशनलिस्ट पार्टी भले ही यह आरोप लगाए कि 2009 में प्रधानमंत्री की कुर्सी पर शेख हसीना वाजेद के आसीन होने के बाद देश में महंगाई और बेरोज़गारी लगातार बढ़ रही है है एवं मानवाधिकारों का बड़े पैमाने पर हनन किया जा रहा है परन्तु इसमें दो राय नहीं हो सकती कि 2009 में शेख हसीना वाजेद के प्रधानमंत्री बनने के बाद बंगला देश तेजी से बढ़ती हुई अर्थ व्यवस्था के रूप में उभरा है। भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने में भी उन्हें सफलता मिली है जो कि पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया के कार्य काल में चरम पर पहुंच गया था। उनकी अध्यक्षता वाली बंगला देश नेशनलिस्ट पार्टी के क ई बड़े नेताओं पर मनी लांड्रिंग के मामलों में कानूनी कार्रवाई भी की गई। बंगला देश नेशनलिस्ट पार्टी ने शेख हसीना वाजेद पर अधिनायकवादी कार्यशैली अपनाएं का जो आरोप लगाया है उसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि वे प्रधानमंत्री के रूप में बहुत सख्त रहीं हैं। शायद यही कारण है कि उन्हें दो बार विश्व की 100 सबसे ताकतवर हस्तियों में शामिल किया गया है।

शेख हसीना वाजेद अनेक बार यह आरोप लगा चुकी हैं कि पश्चिमी देशों के उनकी सरकार को अस्थिर करने की कोशिशें की जा रही हैं। उनका मानना है कि उनकी सरकार के खिलाफ विपक्ष के आंदोलन के पीछे भी पश्चिमी देशों का हाथ है। अमेरिका ने बंगला देश के नागरिकों के लिए जो नई वीजा नीति घोषित की है उसे भी हसीना वाजेद सरकार ने दबावकारी कदम मानती है। भारत के साथ शेख हसीना वाजेद के संबंध हमेशा मैत्रीपूर्ण रहे हैं और बंगला देश में अगले साल होने वाले चुनावों के बाद भारत वहां शेख हसीना वाजेद को ही प्रधानमंत्री की कुर्सी पर आसीन देखना चाहेगा।

गौरतलब है कि शेख हसीना वाजेद की बेटी सायमा वाजेद को विश्व स्वास्थ्य संगठन के दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय निदेशक पद के चुनाव में जो सफलता मिली है उसमें भारत ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भारत की पहल के कारण ही सायमा वाजेद को दस में से आठ सदस्य देशों ने समर्थन प्रदान किया। उन्हें बंगला देश की राजनीति में शेख हसीना वाजेद की उत्तराधिकारी के रूप में देखा जा रहा है।

नोट - लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।


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