कृष्णमोहन झा

अफगानिस्तान के तालिबान शासकों की क्रूरता से भयभीत होकर जिन अफगान लोगों ने कभी पाकिस्तान में शरण ली थी उन्हें शायद यह अंदाजा कभी नहीं रहा होगा कि एक दिन पाकिस्तान सरकार भी उन्हें और बद्तर हालात में पाकिस्तान छोड़कर चले जाने के लिए मजबूर कर देगी। पाकिस्तान में रहकर पिछले कई सालों से किसी तरह अपनी गुजर-बसर करके नयी जिंदगी की शुरुआत कर चुके इन अफगान शरणार्थियों को जब से पाकिस्तान सरकार ने देश छोड़ने का आदेश दिया है तभी से दया के पात्र इन अफगान शरणार्थियों के सामने इधर कुंआ उधर खाई वाले हालात पैदा हो गये हैं। एक ओर इन बेबस शरणार्थियों को पाकिस्तान सरकार बलपूर्वक निकालने में भी तनिक भी रहम नहीं कर रही है तो दूसरी ओर अफगानिस्तान की तालिबान सरकार उन्हें उनके अपने देश में प्रवेश करने से रोकने के हरसंभव प्रयास कर रही है।

तालिबान सरकार के विदेश मंत्री ने पाकिस्तान सरकार को यह चेतावनी दे डाली है कि उसने अपने देश से अफगान शरणार्थियों को स्वदेश वापस भेजने को जो फैसला किया है उस पर वह पुनर्विचार करे अन्यथा उसे अपने इस फैसले की कीमत चुकानी पड़ेगी । तालिबान सरकार ने पाकिस्तान सरकार के इस आरोप को भी ग़लत बताया कि पाकिस्तान में इस साल जितने भी फिदायीन हमले हुए हैं उनमें से अधिकांश में अफगान शरणार्थियों का हाथ था। पाकिस्तान सरकार पर तालिबान की चेतावनी का कोई असर होता नहीं दिख रहा है। पाकिस्तान सरकार ने तो साफ साफ कह दिया है कि देश में केवल उन्हीं अफगान शरणार्थियों को ठहरने की अनुमति दी जाएगी जिनके पास पाकिस्तान में रहने के लिए वैध दस्तावेज होंगे।

पाकिस्तान सरकार का मानना है कि देश में पिछले कई सालों से रह रहे अफगान शरणार्थियों की संख्या 40 से भी अधिक है जिनमें से ‌17 लाख अफगान शरणार्थियों के पास कोई ऐसे कोई वैध दस्तावेज नहीं हैं जिसके आधार पर वे पाकिस्तान में रहने की पात्रता साबित कर सकते हों। पाकिस्तान सरकार ने इन्हीं 17 लाख अफगान शरणार्थियों को इस साल 1नवंबर तक पाकिस्तान की सीमा से बाहर चले जाने का आदेश दिया था। इतना ही नहीं, पाकिस्तान सरकार ने अफगान शरणार्थियों को यह चेतावनी भी दे दी थी कि इस तारीख के बाद अगर कोई भी अपंजीकृत अफगान शरणार्थी पाकिस्तान में रहता पाया जाएगा तो उसकी संपत्ति जब्त करके उसे देश की सीमा पर छोड़ दिया जाएगा।

अफगान शरणार्थियों का कहना है कि बहुत से पंजीकृत शरणार्थियों को भी पाकिस्तान सरकार जोर जबरदस्ती करके देश छोड़ने के मजबूर कर रही है। बताया जाता है कि पाकिस्तान पुलिस ने अनेकों शरणार्थियों के न केवल घर तोड़ डाले बल्कि उनकी सारी जमा पूंजी भी छीन ली ताकि वे पाकिस्तान छोड़ने के लिए मजबूर हो जाएं। इतना ही नहीं, पाकिस्तान की जेलों में विभिन्न अपराधों में बंद अफगान शरणार्थियों को भी जेल से निकाल कर सीमा पर छोड़ दिया गया। अपंजीकृत अफगान शरणार्थियों को यह चेतावनी भी दी गई कि यदि उन्होंने नियत समय सीमा के अंदर पाकिस्तान नहीं छोड़ा तो उन मुकदमे चलाकर उन्हें जेल में डाल दिया जाएगा। कुछ मिला कर अफगान शरणार्थियों को प्रताड़ित करने के पीछे पाकिस्तान सरकार की एक मात्र मंशा है कि वे दहशत में आकर जल्दी से जल्दी पाकिस्तान छोड़कर अफगानिस्तान लौट जाएं। उल्लेखनीय है कि बहुत से अफगान शरणार्थी पाकिस्तान में तबसे रह रहे हैं जब अफगानिस्तान में तालिबान के पास सत्ता की बागडोर भी नहीं थी। उन्होंने इतने सालों में पाकिस्तान के किसी शहर में अपनी आजीविका तलाश कर नये सिरे से जिंदगी की शुरुआत कर दी थी। जिन अफगान शरणार्थियों के पास पाकिस्तान में रहने की पात्रता हासिल करने योग्य वैध दस्तावेज नहीं हैं उनकी संख्या 17 लाख से भी अधिक है। अभी तक इनमें से मात्र पौने दो लाख शरणार्थी ही पाकिस्तान की सीमा छोड़ने का बंदोबस्त कर पाए हैं।

पाकिस्तान सरकार अवैध शरणार्थियों के लिए सीमावर्ती इलाकों में टेंट लगाकर उन्हें वहां एकत्र कर रही है ताकि वहां से उन्हें सीधे उनके देश वापस भेज दिया जाए। पाकिस्तान सरकार के दबाव के बावजूद वि‌शेष रूप से वे शरणार्थी परिवार जिनके घरों में हाई स्कूल और कालेज में पढ़ाई करने वाली लड़कियां हैं। उन अभिभावकों को यह चिंता सता रही है कि अफगानिस्तान लौट कर उनकी बेटियां तालिबान सरकार की पाबंदियों के कारण पढ़ाई जारी नहीं रख पाएंगी। इसके अलावा आजीविका के भी उन्हें नये साधन जुटाने होंगे।

सवाल यह उठता है कि अफगानिस्तान के तालिबान के साथ हमेशा सहानुभूति का रवैया अपनाने वाले पाकिस्तान ने अचानक अफगान शरणार्थियों को अपने देश से बाहर निकालने का कठोर फैसला आखिर क्यों लिया। दरअसल अमेरिका से उसने आतंकवाद और तालिबान की कमर तोड़ने के लिए जो 3200 करोड़ डॉलर की जो आर्थिक मदद हासिल की थी उसका अधिकांश भाग उसने तालिबान की मदद करने के लिए किया । पाकिस्तान को यह उम्मीद थी कि वह तालिबान की इतनी भारी भरकम मदद करके एक दिन उसे वह अपना उपनिवेश बनाने में सफल हो जाएगा लेकिन तालिबान ने अफगानिस्तान में सत्ता की बागडोर अपने हाथ में आते ही पाकिस्तान की उम्मीदों पर पानी फेर दिया। इसीलिए पाकिस्तान सरकार ने खफा हो कर अफगान शरणार्थियों को उनके देश लौट जाने का फरमान सुना दिया। ऐसा नहीं है कि अफगानिस्तान के शरणार्थियों को केवल पाकिस्तान सरकार ही बलपूर्वक अपने देश से बाहर निकाल रही है,इसी स्थिति का सामना ईरान में वर्षों से जीवन यापन कर रहे अफगान शरणार्थियों को भी करना पड़ रहा है।

पाकिस्तान के समान ईरान सरकार ने भी अफगान शरणार्थियों को उनके अपने देश लौट जाने का फरमान जारी कर दिया है और उन्हें इसके लिए विवश करने के इरादे से ईरान में उनको प्रताड़ित भी किया जा रहा है। ईरान में अफगानी शरणार्थियों के प्रतिनिधि के अनुसार ईरान सरकार हर साल सर्दी के मौसम की शुरुआत होने से पहले ही अफगान शरणार्थियों को अपने देश से बाहर निकल जाने के लिए मजबूर कर देती है। अफगानी शरणार्थियों के इस प्रतिनिधि ने इस मामले में मुस्लिम देशों की चुप्पी पर भी सवाल खड़े किए हैं। संयुक्त राष्ट्र का शरणार्थी उच्चायोग ईरान और पाकिस्तान से अफगान शरणार्थियों को बलपूर्वक बाहर निकाल देने की दोनों देशों की कार्रवाई को ग़लत तो मानता है परन्तु वह ईरान और पाकिस्तान सरकार पर दबाव बनाने में असमर्थ साबित हो गया है। कुल मिलाकर अफगान शरणार्थियों को अपनी राह खुद बनानी होगी लेकिन आज की तारीख में तो वे इधर कुंआ उधर खाई वाली कहावत का दुखद उदाहरण बन चुके हैं।

 

नोट - लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।


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