विजय कुमार जैन

 

म 8 मार्च को अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाकर मातृशक्ति को देश एवं दुनिया में सशक्त बनाने का शुभ संकल्प लेते हैं। वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई, रानी दुर्गा वती, महारानी अहिल्या देवी, महान स्वतंत्रता संग्राम सैनानी सरोजनी नायडू, पूर्व प्रधानमंत्री श्री मती इंदिरा गाँधी आदि अनेक महान वीरांगनाएं भारत में हुई जिन्होंने देश दुनिया में अपनी वीरता, अदम्य साहस से भारत का गौरव बढ़ाया और दुनिया में उन्हें सम्मान पूर्वक स्मरण किया जाता है। महिला शक्ति को समानता दिलाने भारत में शासकीय स्तर पर प्रयास किये जा रहे हैं। इन सभी प्रयासों से आज महिलाओं को सम्मान जनक स्थान तो मिल रहा है, मगर नकारात्मक पक्ष यह है महिला के नाम पर राजनीति करने की परंपरा सरपंच, नगर पालिका अध्यक्ष, जनपद,जिला पंचायत अध्यक्ष अनेक पदों पर चल रही है। पत्नी के नाम पति राजनीति कर रहे हैं। इस प्रचलन से क्या नारी शक्ति मिले आरक्षण का लाभ एवं वास्तविक सम्मान मिल रहा है यह विचारणीय प्रश्न है। आज हम अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस के पावन अवसर भारत में आम महिला की क्या स्थिति है, उसे जानने का प्रयास कर रहे हैं। भारत वर्ष में सरकार द्वारा "बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ" अभियान चलाया जा रहा है।बालिकाओं के जन्म दर में आ रही कमी के कारण यह अभियान प्रारंभ किया गया है। बेटी को इस दुनिया में आने से पहले ही माँ की कोख में भ्रूण हत्या कर दी जाती है। इस घिनौने अमानवीय कृत्य की सभी ओर से आलोचना हो रही है। देश में प्रायवेट नर्सिंग होम्स एवं अस्पतालों में यह धन्धा जोरशोर से जारी है। गर्भपात कानूनी रूप से अपराध है मगर गैर कानूनी रूप से यह कारोबार जारी है।
बेटियाँ कैसे बच सकती हैं, जब तक उनकी माँ के बचने की गारंटी न हो। हमारा मानना है बेटी बचाओ अभियान से पहले माँ बचाओ अभियान चलाने की तत्काल आवश्यकता है। संयुक्त राष्ट्र संघ रिपोर्ट को हम देखें तो सबसे ज्यादा माताओं की मृत्यु प्रसव के दौरान होती है। विगत वर्षों जारी रिपोर्ट में उल्लेख किया है दुनिया भर में जितनी महिलाओं की प्रसव के दौरान हुई मृत्यु में 17 प्रतिशत भारतीय थी। संयुक्त राष्ट्र संघ की उक्त रिपोर्ट का हम गहन अध्ययन करते हैं तो पाते हैं प्रतिदिन भारत में 137 महिलाओं की मृत्यु होती है। माताओं की असमय मृत्यु के अलग-अलग कारण है। असामयिक मृत्यु का कारण चिकित्सा सुविधाओं का अभाव तो है ही कुपोषण भी मृत्यु का प्रमुख कारण है। रिपोर्ट में यह भी उल्लेख है भारत में 15 से 35 वर्ष की महिलाएं बड़ी संख्या में खून की कमी का शिकार हैं। हमारे देश में शदियों से बाल विवाह कुप्रथा जारी है कम उम्र में ही युवतियां माँ बन जाती हैं। जीवन के सबसे बड़े निर्णय विवाह के बारे में एवं माँ बनने के बारे में उनसे सहमति तक नहीं ली जाती है। इसका कारण समाज में हमेशा महिला को उपेक्षा की दृष्टि से देखा जाता है। समाज में आज भी यह धारणा है कि पत्नी का अर्थ उसके वंश एवं परिवार को बढ़ाना है। महिला के बारे में समाज की इस घटिया सोच बदलने जन अभियान चलाने की आवश्यकता है। समाज में भी महिलाओं का आदर्शपूर्ण स्थान रहा है वह स्थान हमे रखना चाहिए। सन 1994 में संयुक्त राष्ट्र संघ सम्मेलन में इस महत्वपूर्ण तथ्य को स्वीकार किया है कि महिला के स्वास्थ्य के बारे में एकमात्र उस समय न सोचा जाये, जब वह गर्भवती हो,बल्कि महिला के स्वास्थ्य पर हमेशा ध्यान देने की आवश्यकता है। महिलाओं के स्वास्थ्य के प्रति केन्द्र एवं राज्य सरकारें भले ही सजगता से स्वास्थ्य योजनाएं बना रही हैं मगर उन योजनाओं का ईमानदारी से क्रियान्वयन नहीं हो रहा है। जननी सुरक्षा योजना में प्रायः सभी दूर भारी भ्रष्टाचार हो रहा है। प्रसूता महिला को जो 1400/- रुपये की सहायता चेक से दी जाती है उस चेक को देने में स्वास्थ्य विभाग द्वारा प्रसूता के परिजनों से सौदेबाजी की जाती है। प्रायः महिला चिकित्सक रात्री में प्रसूति कराने नहीं आती,अगर आ जाती है तो प्रसूति के समय शिशु रोग विशेषज्ञ का होना आवश्यक है। एक दूसरे के नहीं आने से प्रसूति में विलंब होने पर जच्चा-बच्चा दोनों ही मृत्यु की गोद में चले जाते हैं। गर्भावस्था में सोनोग्राफी से अबैध रूप से पता चल जाता है कि गर्भ में बेटे के स्थान पर बेटी है। बालिका भ्रूण हत्या में माँ की सहमति की बात अधिकांश लोग कहते है। वे कहते है माँ अपनी बच्ची को मारना न चाहे तो कोई उसे कैसे मार सकता है। गर्भ में पल रही बच्ची का गर्भपात करने पर महिला पर पति एवं परिवार का इतना दवाब रहता है वह महिला इंकार करने की स्थिति में नहीं रहती है। यह हम भूल जाते है हर समय हर दिन रात अपना सुख चैन भूलकर परिवार में काम और कर्तव्य का सारा बोझा ढ़ोने बाली माँ का स्थान परिवार में सबसे निचले पायदान पर होता है। उसकी आवाज वहुत कम सुनी जाती है। परिवार के दवाब एवं परिवार की पुत्र प्राप्ति की चाहत समाज के हर वर्ग में इतनी है कि एक के बाद एक होती हत्यायें तथाकथित सहिष्णु एवं संवेदनशील समाज को बुरी नहीं लगती है। हर वर्ष गर्भधारण एवं गर्भपात माँ को गंभीर बीमारियों से पीड़ित बना देता है। माँ की हो रही दुर्दशा में समाज द्वारा बनाई रूढ़िवादी प्रथा ही दोषी है। माँ को हम कितने रूप में देखते है एवं माँ का कौंन-कौंन सा रूप आदर्श प्रस्तुत करता है। वह परिवार में सबसे पहले उठती है, सबसे बाद में सोती है। जो सबके खाने के बाद में खाती है। परिवार में चार बच्चे हैं और रोटी चार है तो माँ कह देती है मुझे आज भूख नहीं है तुम चारोँ मिलकर खा लो। कभी बीमार हो तो बीमारी का पता नहीं चलने देती है। चाहे थकी क्यों न हो,वह किसी काम को करने के लिये उफ नहीं करती है। कर्तव्य परायण होती है,यह नहीं सबके स्वास्थ्य दीर्घायु, घर के वैभव, जमीन जायदाद के लिये व्रत-उपवास भी उसी के हिस्से में आते है। राष्ट्र कवि मैथिली शरण गुप्त ने लिखा है "नारी तेरी यही कहानी,आंचल में है दूध और आँखों में पानी।" महिला का स्वास्थ्य ठीक रहे तो देश की आर्थिक स्थिति में भी सुधार हो सकता है। आखिर किसी भी देश की आर्थिक क्षमता सुधारने के लिये मानव संसाधन सबसे बड़ी ताकत है। इसलिये जब हम बेटी बचाओ अभियान को जोर शोर से चलाने की बात करते हैं,तो पहले उनके बारे में ध्यान देने और सही नीतियाँ बनाने की जरूरत है, जो इस दुनियां में बेटियाँ लाती हैं, अर्थात माँ।

महिला दिवस पर शॉर्ट् निबंध स्पीच एवं भाषण | International Women's Day  Speech In Hindi - Mahila Diwas Bhasan

 

नोट:- लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं भारतीय जैन मिलन के राष्ट्रीय वरिष्ठ उपाध्यक्ष है।


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