राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने विगत दिनों एक कार्यक्रम में कहा था कि संघ के कार्यकर्ता बिना किसी पहचान अथवा प्रशंसा की इच्छा के समाज सेवा के कार्य में जुटे रहते हैं। वे सामान्य जीवन जीते हैं और सामाजिक उत्थान के लिए समर्पित भाव से कार्य करते हुए असाधारण ऊंचाई तक पहुंचते हैं। अब संघ प्रमुख ने कानपुर के नवाबगंज क्षेत्र में स्थित दीनदयाल उपाध्याय सनातन धर्म विद्यालय में दिए गए अपने व्याख्यान में संघ के कार्यकर्ता को एक साधक के रूप में परिभाषित किया है । भागवत ने कहा कि संघ का कार्यकर्ता जो भी कार्य करता है उसमें उसकी भूमिका एक साधक की होती है । इसी कार्यक्रम में संघ प्रमुख ने कहा कि अगर आप विद्यार्थी हैं तो ऐसे विद्यार्थी बनें जो दूसरों के लिए प्रेरणास्रोत हो। अगर आप एक व्यवसायी हैं तो ऐसे व्यवसायी बनें जिसकी अपनी एक अलग पहचान हो। संघ प्रमुख के उक्त कथन का आशय समझना कठिन नहीं है। वे कहते हैं कि व्यक्ति का जो भी कार्य क्षेत्र है उसमें उसे समर्पण के साथ कार्य करना चाहिए। मोहन भागवत ने कहा कि संघ व्यक्तित्व विकास का कार्य करता है। उक्त शिक्षा वर्ग में स्वयंसेवकों को प्रशिक्षित करने के लिए संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले भी कानपुर पहुंचे थे।
संघ प्रमुख के अनुसार हमारी यह सोच होना चाहिए कि हम जहां जिस स्थिति में हैं वहां देशहित के लिए क्या कर सकते हैं। हमें यह भी देखना होगा कि देश में निर्मित या स्वदेशी वस्तुओं का अपने जीवन में प्रयोग करने के लिए संकल्प ले सकते हैं। संघ प्रमुख ने ऐसे कार्य करने पर विशेष जोर दिया जिससे देश का पैसा देश में ही रहे । हमारे पैसों से देश का विकास होना चाहिए। उन्होंने इसी तरह का विचार बना कर अपना जीवन संचालित करने का आह्वान किया। मोहन भागवत ने देश की सर्वांगीण उन्नति के लिए राष्ट्रभक्ति की भावना को अपरिहार्य बताया।
संघ प्रमुख ने कार्यकर्ताओं से शाखा क्षेत्र के प्रत्येक परिवार तक पहुंचने और हिंदुओं को एक जुट करने का आह्वान किया। भागवत ने कहा कि हमें एक ऐसे समाज का निर्माण करना है जो जातिवाद जैसी सामाजिक असमानताओं से मुक्त हो और राष्ट्र के प्रति अपनी जिम्मेदारी से अवगत हो।हर घर में सद्भाव और संस्कार होना चाहिए ताकि हर घर में सनातन परंपरा को फिर से क़ायम किया जा सके। मोहन भागवत ने समाज, राष्ट्र और संपूर्ण मानव जाति के प्रति अपनी जिम्मेदारी के अहसास को ही व्यक्तिगत विकास निरूपित किया।
मोहन भागवत ने कहा कि जैसे जैसे संघ का विस्तार हुआ इसने अपना दायरा बढ़ाया। अपने कार्यकर्ताओं के माध्यम से सामाजिक जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में अपने कार्य का विस्तार किया। आज हम संघ के शताब्दी वर्ष में हैं। पंच परिवर्तन के आधार पर पूरे समाज में एक बड़े परिवर्तन की दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास हो रहा है। संघ प्रमुख ने राष्ट्र के प्रति अपने दायित्व से परिचित समाज के निर्माण की आवश्यकता को रेखांकित करते हुए कहा कि हमें पर्यावरण के अनुकूल अपनी जीवन शैली अपनाने वाला समाज चाहिए जो जातिवाद की असमानताओं से मुक्त हो। उन्होंने कहा कि मंदिरों, जलाशयों और श्मशानों पर पूरे समाज का अधिकार होना चाहिए।
उल्लेखनीय है कि संघ प्रमुख मोहन भागवत का दो माह के अंदर यह दूसरा कानपुर प्रवास था। इसके पूर्व वे कानपुर में संघ के नवनिर्मित कार्यालय केशव भवन के लोकार्पण समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में आए थे । बहुमंजिला केशव भवन उत्तर प्रदेश में संघ का सबसे कार्यालय बन गया है । इस अवसर पर अपने उद्बोधन में संघ प्रमुख ने कहा था कि भारत आज दुनिया के प्रतिष्ठित और सुरक्षित राष्ट्र के रूप में अपनी पहचान बना चुका है। आज जो अपने आप को हिन्दू कहता है उसकी जवाबदेही बनती है। उससे यह पूछा जाएगा कि उसने भारत के लिए क्या किया। भारत में हिन्दू समाज को संगठित करने का काम संघ कर रहा है। संघ का काम उसके स्वयंसेवकों के बलबूते पर चलता है। संघ का स्वयं सेवक समाज से कुछ नहीं लेता। वह समाज के काम के लिए समाज से सहयोग लेता है। उक्त अवसर पर संघ प्रमुख ने प्रचारकों के साथ बैठक में कहा था कि संघ का शताब्दी वर्ष चल रहा है। इसमें खेत खलिहान बस्ती और शहर के हर पार्क में संघ की शाखा लगना चाहिए ताकि संघ की विचारधारा जन जन तक पहुंच सके।

कृष्णमोहन झा (लेखक राजनैतिक विश्लेषक है)




