नई दिल्ली : रविवार, जून 8, 2025/ उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने शनिवार को कहा, “देश में राजनीतिक दलों को राजनीतिक तापमान कम करना होगा। राजनीतिक दलों के बीच संवाद टकराव नहीं हो सकता – संवाद शांति देने वाला होना चाहिए। मित्रों, लोकतंत्र को संवाद और आख्यान से परिभाषित किया जाता है।”
उन्होंने आगे कहा, “भारत एक फलता-फूलता संघीय समाज है, जहां केंद्र और राज्यों के बीच समन्वय होना चाहिए। नेताओं और राजनीतिक दलों के बीच संवाद बहुत जरूरी है – संवाद का अभाव हमारी राष्ट्रीय सोच के लिए अच्छा नहीं होगा।”
बेंगलुरु में उद्योग जगत के अग्रणी व्यक्तियों और उद्यमियों से बातचीत करते हुए उन्होंने कहा, “राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे, हमारे राष्ट्रवाद से जुड़े मुद्दे और हमारे विकास से जुड़े मुद्दों को पक्षपातपूर्ण तरीके से नहीं, बल्कि राष्ट्रीय दृष्टिकोण से देखा जाना चाहिए। मुझे सभी राजनीतिक दलों के लोगों की राजनीतिक सूझबूझ पर संदेह नहीं है – वे सभी राजनीतिक दलों में मौजूद हैं।”
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के वेदान्तिक सिद्धांत का हवाला देते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा, “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और बहस के बिना लोकतांत्रिक मूल्यों की व्याख्या नहीं की जा सकती। यदि कोई आपके अभिव्यक्ति के अधिकार पर हमला करता है, उसे कमजोर करता है या नियंत्रित करता है, तो लोकतंत्र में कमी है।”
औद्योगिक रुझानों के बारे में उन्होंने टिप्पणी की, “राजनीति के विपरीत, उद्योग जगत के लोग बैलेंस शीट से संतुष्ट रहते हैं। लेकिन ग्रीनफील्ड परियोजनाएँ उस गति से सामने नहीं आ रही हैं, जिस गति से आनी चाहिए। कृपया सोचें, समान रोजगार और विकास सुनिश्चित करने के लिए समूहों में एकजुट हों।”
कॉरपोरेट क्षेत्र से कृषि क्षेत्र के साथ अपने लाभ को साझा करने का आह्वान करते हुए, उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा, “अब समय आ गया है कि कॉरपोरेट अपने लाभ को कृषि क्षेत्र के साथ साझा करें। अनुसंधान या कृषि भूमि में आपका निवेश दान नहीं है – यह एक लाभदायक निवेश है।”
कृषि क्षेत्र को उद्योग के साथ एकीकृत करने के बारे में उपराष्ट्रपति ने अपनी खुद की पृष्ठभूमि के आधार पर कहा, “मैं कृषक समुदाय से आता हूँ। कृषि क्षेत्र देश के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। लेकिन वर्तमान में, यह केवल कृषि-उत्पादों का उत्पादन कर रहा है – यह विपणन श्रृंखला का हिस्सा नहीं है।”
उद्योग-कृषि समन्वय का आह्वान करते हुए, उन्होंने कहा, “उद्योग को कृषि क्षेत्र के साथ अधिक तालमेल बिठाने के लिए विचार-विमर्श करना चाहिए। किसानों को समर्थन व मार्गदर्शन देने की जरूरत है; कृषि उद्यमियों को सामने आना चाहिए, लेकिन समर्थन के बिना वे ऐसा नहीं कर सकते।”
भारत के विकास के भविष्य पर, उपराष्ट्रपति धनखड़ ने अनुसंधान और नवाचार की भूमिका को रेखांकित करते हुए कहा, “हमें उच्चतम स्तर के अनुसंधान से जुड़ना चाहिए। हमारी अनुसंधान क्षमता भारत की वैश्विक स्थिति को परिभाषित करेगी। हमारा तकनीकी नवाचार यह परिभाषित करेगा कि हम कितने सुरक्षित हैं।”
रणनीतिक शांति के बारे में उन्होंने विचार व्यक्त किया, “शांति, व्यापार और लोगों के बीच सद्भाव का आधार है। लेकिन शांति कभी भी सौदेबाजी से नहीं मिलती – यह ताकत से आती है। सबसे बड़ी शांति तब मिलती है, जब हम युद्ध के लिए हमेशा तैयार रहते हैं।”
राष्ट्रीय सुरक्षा में उद्योग जगत की भूमिका के विकास पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा, “एक समय था, जब उद्योग केवल शस्त्रागार का निर्माण करता था। अब, इसे प्रौद्योगिकी में अग्रणी होना चाहिए। अनुसंधान दीर्घकालिक विकास की रीढ़ है।”
यह घोषणा करते हुए कि भारत उन्नति के मार्ग पर है और इसे रोका नहीं जा सकता, उपराष्ट्रपति ने कहा, “भारत अब संभावनाओं वाला देश नहीं है – यह एक उभरता हुआ देश है। ‘विकसित भारत’ अब हमारा सपना नहीं है – यह हमारा उद्देश्य है। लेकिन हमें प्रति व्यक्ति आय को कई गुना बढ़ाकर एक बड़ी छलांग लगानी चाहिए।”
व्यावहारिक दृष्टिकोण का आग्रह करते हुए उन्होंने कहा, “हमें अपनी आर्थिक स्थिति को अपने जनसांख्यिकीय आकार – 1.4 बिलियन लोग – के साथ जोड़ना चाहिए। अनुभवजन्य अनुमानों के अनुसार, प्रति व्यक्ति आय में आठ गुनी वृद्धि होनी चाहिए।”
इस अवसर पर कर्नाटक के राज्यपाल थावरचंद गहलोत, कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार, सांसद लहर सिंह, कर्नाटक सरकार के मंत्री डॉ. एम.सी. सुधाकर तथा अन्य गणमान्य व्यक्ति भी उपस्थित थे।




