संघ शताब्दी वर्ष में मिलते रहेंगे संघ और सरकार की निकटता के प्रमाण

इस वर्ष विजयादशमी की पुनीत तिथि का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लिए विशेष महत्व था। 100 वर्ष पूर्व डा केशव बलीराम हेडगेवार ने चंद साथियों के साथ मिलकर विजयादशमी के दिन ही संघ की स्थापना की थी इसलिए इस वर्ष संघ के स्थापना दिवस के अवसर पर संघ के नागपुर स्थित मुख्यालय में सरसंघचालक मोहन भागवत के उद्बोधन की सारा देश उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रहा था। संघ प्रमुख ने अपने शताब्दी संबोधन में राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्व के सभी मुद्दों पर संघ का जो दृष्टिकोण प्रस्तुत किया उसमें असहमति की कोई गुंजाइश नहीं थी। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के मुख्य आतिथ्य में आयोजित संघ के इस यादगार स्थापना दिवस समारोह में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने अपने भाषण में महत्वपूर्ण समसामयिक विषयों पर बेबाकी कै साथ अपने सारगर्भित विचार रखे जिनमें संघ प्रमुख के गहन चिंतन की अनुभूति करना कठिन नहीं था।

संघ प्रमुख ने पहलगाम के आतंकी हमले पर अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रिया , श्रीलंका, बंगला देश और नेपाल में सरकार विरोधी हिंसात्मक प्रदर्शन,अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में बदलते आयाम और राष्ट्र की प्रगति में स्वदेशी और स्वाबलंबन की आवश्यकता को लेकर संघ का जो दृष्टिकोण प्रस्तुत किया उस पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की प्रतिक्रिया गौरतलब है। प्रधानमंत्री ने संघ प्रमुख के उद्बोधन को प्रेरणादायक बताते हुए कहा है कि डा मोहन भागवत ने राष्ट्र निर्माण में संघ के अतुलनीय योगदान पर प्रकाश डाला है। उन्होंने भारत की उस अंतर्निहित क्षमता को रेखांकित किया है जो देश को सशक्त बनाने के साथ साथ संपूर्ण मानवता के लिए कल्याणकारी है। उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री मोदी ने गत माह संघ प्रमुख मोहन भागवत के जन्म दिवस के अवसर पर भी विशेष लेख लिखा था। प्रधानमंत्री मोदी ने उस लेख में भी संघ प्रमुख की भूरि भूरि प्रशंसा करते हुए राष्ट्र निर्माण में संघ के योगदान को महत्वपूर्ण निरूपित किया था अपने उस लंबे लेख की शुरुआत में प्रधानमंत्री ने लिखा था कि आज एक ऐसे व्यक्तित्व का जन्म दिवस है जिन्होंने वसुधैव कुटुम्बकम् के मंत्र से प्रेरित होकर अपना पूरा जीवन सामाजिक परिवर्तन और बंधुत्व की भावना को सशक्त करने में समर्पित कर दिया है। यह हमारा सौभाग्य है कि स्वयं सेवकों के पास भागवत जैसे दूरदर्शी और परिश्रमी सरसंघचालक हैं। उनके नेतृत्व में संघ कार्य का निरंतर विस्तार हो रहा है।

प्रधानमंत्री मोदी ने विजयादशमी के एक दिन पूर्व नई दिल्ली में आयोजित एक भव्य समारोह में संघ की स्थापना के 100 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में एक विशेष डाक टिकट और 100 रु मूल्य का एक आकर्षक सिक्का भी जारी किया। इस सिक्के के एक ओर सिंह के साथ वरद हस्त की मुद्रा में भारत माता की भव्य आकृति बनी हुई है।उनके समक्ष नतमस्तक स्वयंसेवक दिखाई दे रहे हैं जिनके चेहरों पर भक्ति और समर्पण का भाव है। शुद्ध चांदी से निर्मित 100 रुपए मूल्य के इस अनूठे सिक्के में ” राष्ट्रीय स्वाहा , इदं राष्ट्राय ,इदं न मम ” अंकित है। प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में कहा कि स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार भारतीय मुद्रा में भारत माता का चित्र अंकित किया गया है।यह ऐतिहासिक क्षण है। प्रधानमंत्री ने भावुक होते हुए कहा कि “ये हमारी पीढ़ी के स्वयं सेवकों का सौभाग्य है कि हमें संघ के शताब्दी वर्ष जैसा महान अवसर देखने को मिल रहा है। विजयादशमी भारतीय संस्कृति के इस विचार और विश्वास का कालजयी उद्घोष है। ऐसे महान पर्व पर 100 वर्ष पूर्व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना ये कोई संयोग नहीं था। ये हज़ारों वर्षों से चली आ रही उस परंपरा का पुनरुत्थान था जो समय समय पर उस युग की चुनौतियों का सामना करने के लिए नये नये अवतारों में प्रकट होती है। इस युग में संघ उसी अनादि राष्ट्र चेतना का पुण्य अवतार है।”

विजयादशमी की पावन तिथि पर संघ की स्थापना के 100 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्र निर्माण में संघ के उल्लेखनीय योगदान और स्वयं सेवकों की समर्पित सेवा भावना को महत्वपूर्ण बताते हुए एक्स पर अपनी पोस्ट में लिखा – “100 साल पहले जब संघ की नींव रखी गई थी उस दिन विजयादशमी ही थी। समाज सेवा और राष्ट्र निर्माण के उद्देश्य से संघ की स्थापना हुई थी। लंबे कालखंड के दौरान असंख्य स्वयंसेवकों ने इस संकल्प को साकार करने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया।”

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना के 100 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में आयोजित समारोह में प्रधानमंत्री के जो उदगार व्यक्त किए हैं उसमें उनके अंत:करण की आवाज की अनुभूति होती है। इसमें संघ के प्रति कृतज्ञता और समर्पण का जो भाव समाहित है वह उन असंख्य स्वयंसेवकों के लिए भी प्रेरित प्रेरणादायक है जिन्होंने संघ के स्वयं सेवक के रूप में राष्ट्र निर्माण के कार्य में समर्पित भाव से जुटे हुए हैं। प्रधानमंत्री मानते हैं कि संघ प्रमुख मोहन भागवत का आदर्श व्यक्तित्व एवं कृतित्व संघ के स्वयं सेवकों को राष्ट्र निर्माण के अपने कर्तव्य पथ पर समर्पित भाव से अग्रसर होने के लिए प्रेरित करता है। उल्लेखनीय है कि अयोध्या में श्री रामलला मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने भी प्रधानमंत्री मोदी को तपस्वी कहकर संबोधित किया था। अनेक अवसरों पर वे प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व गुणों की प्रशंसा कर चुके हैं। प्रधानमंत्री ने संघ- स्थापना की शताब्दी पर संघ के लिए अपनी भावनाओं को जिस तरह बिना लाग-लपेट के अभिव्यक्त किया है उससे इन चर्चाओं पर भी विराम लग जाना चाहिए कि भाजपा और संघ के बीच सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। संघ के सिद्धांतों में प्रधानमंत्री की आस्था और विश्वास अटूट और अडिग है। संघ के शताब्दी वर्ष के आयोजनों में कदम कदम पर इसके प्रमाण मिलते रहेंगे।

कृष्णमोहन झा (लेखक राजनैतिक विश्लेषक है)

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