नई दिल्ली : गुरूवार, जुलाई 25, 2024/ 26 जुलाई, 2024 को 25वें कारगिल विजय दिवस के अवसर पर, प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी सुबह लगभग 9:20 बजे कारगिल युद्ध स्मारक का दौरा करेंगे। वे करगिल युद्ध के दौरान प्राणों की आहुति देने वाले शहीद वीरों को श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे। प्रधानमंत्री वर्चुअल रूप से शिंकुन ला सुरंग परियोजना का पहला विस्फोट भी करेंगे।

शिंकुन ला सुरंग परियोजना में 4.1 किलोमीटर लंबी ट्विन-ट्यूब सुरंग शामिल है, जिसका निर्माण निमू-पदुम-दारचा रोड पर लगभग 15,800 फीट की ऊंचाई पर किया जाएगा, ताकि लेह को हर मौसम में कनेक्टिविटी प्रदान की जा सके। निर्माण कार्य पूरा होने पर यह विश्व की सर्वाधिक ऊंची सुरंग होगी। शिंकुन ला सुरंग न केवल हमारे सशस्त्र बलों और उपकरणों की तीव्र और कुशल आवाजाही सुनिश्चित करेगी, बल्कि लद्दाख में आर्थिक और सामाजिक विकास को भी बढ़ावा देगी।

‘कारगिल युद्ध’ 1999 की वही लड़ाई थी, जिसमें पाकिस्तानी सेना ने अपना धोखेबाज चरित्र दिखाते हुए द्रास-कारगिल की पहाड़ियों पर भारत के विरुद्ध साजिश व विश्वासघात से कब्जा करने की कोशिश की थी। उस दौरान भारतीय सेना ने अपनी मातृभूमि में घुस आए घुसपैठियों को बाहर खदेड़ने को एक बड़ा अभियान चलाया, जिसमें भारतीय सेना के 527 रणबांकुरों ने अपने बलिदान से मातृभूमि को दुश्मनों के नापाक कदमों से मुक्त किया। कैप्टन विक्रम बतरा को अदम्य साहस और पराक्रम के लिए मरणोपरांत देश के सर्वोच्च वीरता सम्मान ‘परमवीर चक्र’ से सम्मानित किया गया।

सेना के 1363 जांबाजों ने घायल होकर भी न केवल लड़ाई लड़ी बल्कि उसे अंजाम तक पहुंचाने में अपना योगदान दिया। कारगिल की यह लड़ाई दुनिया के इतिहास में सबसे ऊंचे क्षेत्र में लड़ी गई लड़ाई थी। बात 1999 की है, जब पाकिस्तानी सेना घुसपैठिया बन भारतीय क्षेत्र में घुसी व कारगिल की ऊंची-ऊंची चोटियों पर कब्जा जमा लिया। यह अपने आप में पूरे विश्व में अनूठा युद्ध था जब एक ओर घुसपैठिए सैनिक 15 हजार फीट ऊंची पहाड़ियों की चोटी पर कब्जा जमाकर बैठे थे, जिससे वे श्रीनगर-द्रास-कारगिल राष्ट्रीय राजमार्ग पर यातायात व सेना की रसद को आसानी से निशाना बना रहे थे। वहीं दूसरी ओर आनन-फानन में पहुंची भारतीय सेना नीचे सपाट मैदानों में थी या यूं कहें भारतीय सेना पाकिस्तानी घुसपैठियों के लिए बहुत ही आसान टारगेट थी। भारतीय सेना के पास न तो घुसपैठियों की ताकत व संख्या की सही जानकारी थी, न ही ऐसे अभियानों में प्रयुक्त किए जाने वाली विशेष ड्रैस व दूसरे उपकरण थे। साथ ही इस अभियान में अधिकतर हमले माइनस तापमान वाली रातों में किए जाते थे, लेकिन इन विपरीत परिस्थितियों में भी भारतीय सेना ने अपनी शौर्य गाथा लिखी।

इस युद्ध में मातृभूमि की रक्षा में अपना सर्वोच्च बलिदान करने वालों की स्मृति में कारगिल युद्ध स्मारक की स्थापना की गई है। यह द्रास में है। खास बात यह है कि इस स्मारक में पाकिस्तान की सेना के बंकर भी हैं। देश के सबसे ठंडे इलाके में स्थापित इस स्मारक पर जाना किसी के लिए भी शानदार अनुभव हो सकता है। द्रास वह इलाका है, जहां सर्दियों में तापमान-35 डिग्री सेल्सियस हो जाता है और कभी-कभी तो इससे भी कम।

 

 


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