नई दिल्ली : मंगलवार, फरवरी 20, 2024/ भारत में महिलाओं में सर्वाइकल कैंसर दूसरा सबसे अधिक होने वाला कैंसर है। सर्वाइकल कैंसर पर नवीनतम लैंसेट अध्ययन के अनुसार, एशिया में इस कैंसर के सबसे अधिक मामले भारत में हैं। हाल ही में केंद्रीय मंत्री निर्मला सीतारमण ने अंतरिम बजट 2024-25 पेश करते हुए 9 से 14 वर्ष की बालिकाओं के लिए सर्वाइकल कैंसर के टीकाकरण को सरकार द्वारा बढ़ावा देने की घोषणा की।

इसी संदर्भ में प्रत्येक सोमवार को ‘पब्लिक स्पीक’ कार्यक्रम में ‘सर्वाइकल कैंसर और टीकाकरण के बारे में जागरूकता’ विषय पर चर्चा की गई। कार्यक्रम में सर्वाइकल कैंसर से जुड़ी जानकारी देने के लिए स्टूडियो में राम मनोहर लोहिया अस्पताल में स्त्री रोग विशेषज्ञ प्रोफेसर जया चावला एवं नीति आयोग के सदस्य डॉ॰ विनोद कुमार पाल उपस्थित थे।

जानें, क्या हैं सर्वाइकल कैंसर से जुड़े मिथक - सर्वाइकल कैंसर को अक्सर लोग गर्दन में होने वाले दर्द से जोड़ते है, जिससे आम जनमानस में भ्रम पैदा हो गया है। जबकि वास्तव में, यह स्त्रियों की बच्चेदानी के मुख का कैंसर है।

सर्वाइकल कैंसर के शुरुआती लक्षण - प्रो. चावला के अनुसार सर्वाइकल कैंसर के शुरुआती लक्षण असामान्य रक्तस्राव से संबंधित होते हैं। उनका कहना है कि माहवारी में रक्तस्राव नियमित रूप से महीने-दर-महीने होता है। लेकिन सर्वाइकल कैंसर के मरीजों में बच्चेदानी के मुख पर जख्म होने की वजह से कभी भी रक्तस्राव होने लगता है। सामान्यतः शुरुआती लक्षण अत्यधिक बदबूदार सफेद पानी का रिसाव, दो माहवारियों के बीच में स्पॉटिंग या अनियमित माहवारियों के रूप में होते हैं। यह लक्षण इशारा कर रहे होते हैं कि हमें चिकित्सा परामर्श की जरूरत है।

सर्वाइकल कैंसर के मुख्य कारण - सर्वाइकल कैंसर ह्यूमन पैपीलोमा वायरस (HPV) के कारण होता है। यह वायरस यौन-संपर्क से फैलता है। प्रो. चावला के अनुसार जल्दी शादी होने से यौन-संपर्क बनाने की प्रक्रिया की कम उम्र में शुरुआत अथवा ज्यादा बच्चे पैदा करने वाली स्त्रियों में इसका खतरा बढ़ जाता है। साथ ही साथ एचआईवी एड्स जैसी यौन-संक्रमित बीमारियों के मरीजों में भी एचपीवी (HPV) वायरस पाया जाता है।

सर्वाइकल कैंसर का परीक्षण - इसके परीक्षण के दो प्रमुख तरीके होते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन सर्वाइकल कैंसर की प्राथमिक जांच के लिए एचपीवी टेस्ट का सुझाव देता है। लेकिन यदि आपके नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र में यह उपलब्ध न हो तो एलबीसी (लिक्विड बेस्ड साइटोलॉजी) टेस्ट (जिसमें बच्चेदानी के मुख की कोशिकाओं का अध्ययन किया जाता है) से भी सर्वाइकल कैंसर की जांच हो सकती है।

प्रो. चावला का मानना है यह दोनों जांच महिलाओं को 30 वर्ष की आयु के बाद हर 5 वर्षों के अंतराल पर कराने चाहिए। यह दोनों ही जांच करवाने में किसी भी तरह का दर्द नहीं होता है। सरकार द्वारा सर्वाइकल कैंसर के खिलाफ टीकाकरण की घोषणा डॉ. विनोद कुमार पाल के अनुसार माननीय वित्त मंत्री द्वारा अंतरिम बजट में सर्वाइकल कैंसर के खिलाफ टीकाकरण की घोषणा से इसकी रोकथाम की दिशा में एक रास्ता खुल गया है। उनका मानना है कि इस कैंसर से बचाव टीके के द्वारा संभव है।

डॉ. पॉल बताते हैं कि तकरीबन 1 लाख 23 हजार सर्वाइकल कैंसर के मामलों में से 77 हजार के करीब ही टेस्ट होते हैं। स्कूलों में 9 से 14 साल तक की बच्चियों का पूर्णतः टीकाकरण होने से उस पीढ़ी की महिलाओं में इस समस्या का 90 प्रतिशत तक बचाव हो सकता है।

सर्वाइकल कैंसर से बचाव एवं रोकथाम - प्रो. चावला बताती हैं कि गर्भ निरोधकों के उपयोग से एचपीवी (HPV) के संक्रमण का जोखिम काफी हद तक कम हो जाता है। जिन देशों में यह राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम का हिस्सा बनाया गया, उन जगहों पर किशोर बालिकाओं में सर्वाइकल कैंसर के मामलों में 88 फीसद तक की गिरावट देखने को मिली है। टीके को वयस्क महिलाओं को भी लगाया जा सकता है, पर रोकथाम में टीकाकरण सबसे प्रभावी शारीरिक संबंध बनाने की अवधि से पहले लगाये जाने पर होता है। डॉ॰ पॉल के अनुसार इसी कारणवश टीकाकरण के लिए 9 से 14 वर्ष की उम्र निर्धारित की गई है।

एचपीवी (HPV) टीका : वर्तमान परिदृश्य - बाजार में आजकल तीन प्रकार के टीके उपलब्ध हैं। ‘सर्वेरिक्स’ टीका एचपीवी के दो उच्च जोखिम वाले प्रकारों से बचाता है, ‘गार्डसेल’ एचपीवी के चार जोखिम वाले प्रकारों से बचाता है। वहीं ‘गार्डसेल-9’ एचपीवी के नौ जोखिम वाले प्रकारों से सुरक्षा करता है।

टीकाकरण कार्यक्रम - बजट के दौरान सरकार की घोषणा के बाद से एचपीवी टीका राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम के अंतर्गत लगाया जाएगा। 9 से 14 वर्ष की बच्चियों में इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स के अनुसार इस टीके की दो खुराक छह महीने के अंतराल पर लगती हैं। 14 वर्ष से ऊपर की महिलाओं को तीन खुराक- शून्य, एक और छह महीने के अंतराल पर लगायी जाती हैं।

सरकार द्वारा सर्वाइकल कैंसर से सुरक्षा का त्रिस्तरीय कवच - डॉ. पॉल ने श्रोताओं को बताया कि सरकार द्वारा सर्वाइकल कैंसर की रोकथाम 3 चरणों वाले सुरक्षा कवच- टीका, जाँच और इलाज द्वारा की जाएगी। प्रथम चरण में आने वाली पीढ़ियों में इस कैंसर की रोकथाम के लिए सरकार द्वारा 9 से 14 वर्ष की बच्चियों को एचपीवी का ‘टीका’ राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम के अंतर्गत लगाया जाएगा। कवच का दूसरा चरण जाँच (स्क्रीनिंग) 30-35 वर्ष की उम्र की महिलाओं में इस कैंसर के शीघ्र निदान में मदद करेगा। तीसरा चरण जाँच के पश्चात सर्वाइकल कैंसर की पुष्टि वाले मरीजों के ‘इलाज’ पर केंद्रित होगा।

डॉ. पॉल के अनुसार तीनों चरणों से संबंधित सारी सुविधाएं सरकार आयुष्मान भारत स्वास्थ्य एवं कल्याण केंद्रों पर उपलब्ध करायी जायेंगी।

सर्वाइकल कैंसर और इसके टीके के प्रति जनमानस में जागरूकता - डॉ. पॉल के अनुसार स्कूलों और कॉलेजों में जागरूकता का पहला स्तर ‘जांच (स्क्रीनिंग)’ के बारे में होना चाहिए। जितनी जल्दी इस कैंसर की पहचान होगी, इलाज से ठीक होने की संभावना उतनी ही बढ़ेगी। स्टेज टू(बी) के बाद इसका इलाज रेडियोथेरेपी के द्वारा ही संभव है। इसलिए थोड़ी सी भी शंका होने पर तुरंत जांच करवानी चाहिए।

पारस्परिक संवाद से टीका, जांच और इलाज के त्रिस्तरीय-कवच के बारे में जागरूकता बढ़ेगी, जिससे अधिक से अधिक महिलाएं सर्वाइकल कैंसर से अपनी सुरक्षा करने में सक्षम होंगी।

 


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