विजय कुमार जैन राघौगढ़ म.प्र.

 वर्तमान में युवा पीढ़ी संस्कार विहीन हो रही है उनमें तेजी से भटकाव आ रहा है। प्राचीन भारतीय संस्कृति एवम् संस्कारों को भूलकर पाश्चात्य संस्कृति को अपना रहे है। परिवार माता -पिता को भूलकर प्रेम विवाह , अन्तर्जातीय विवाह कर लेते है। युवा पीढ़ी को सत्मार्ग पर लाने सभी धर्मों के धर्मगुरु प्रयास कर रहे हैं।

मेरे अभिन्न मित्र श्री राघवेन्द्र प्रताप सिंह परिहार पिछले 6 वर्ष पूर्व एक माह के प्रवास पर अमेरिका धर्मपत्नी श्रीमती मालती परिहार के साथ गये थे। उनका बेटा पियूष परिहार अमेरिका में नौकरी करता है। श्री परिहार जाति से राजपूत है, इस अवसर पर मैं विशेष रूप से उल्लेख करना चाहूँगा उनका पूरा परिवार शाकाहारी है साथ ही शराब का भी सेवन नही करते है। बेटा भी अमेरिका में शाकाहारी है। श्री परिहार के अमेरिका से वापस आने पर मेरी उनसे विस्तार से चर्चा हुई, उनका कहना है अमेरिका में प्रसूति के बाद नवजात शिशु को माँ के साथ पलंग पर न रखकर पालने में रखा जाता है। बालक जब 5 वर्ष का हो जाता है तो उसे अलग कमरे में रहना होता है। श्री परिहार ने कहा पाश्चात्य संस्कृति हमारे भारत वर्ष में जोर शोर से प्रवेश कर चुकी है।

भारत में भी माँ अपने बेटे बेटी को अपने साथ रात्री विश्राम नही कराते है। बेटे बेटी धीरे धीरे लाड प्यार नही मिलने से अपने माँ-बाप से दूर होते चले जाते हैं। जिनसे प्यार मिलता है चाहे वह प्यार बनावटी ही हो उसे अपना जीवन साथी बना लेते है। हमारे देश में छोटे छोटे नगरों में भी ईसाई मिशनरी स्कूल खुल गये है जो कक्षा नर्सरी से ही बालकों में पाश्चात्य संस्कारों का बीजारोपण कर ईसाई धर्म आराधना का ज्ञान कराते है । इसका दुष्परिणाम यह हो रहा है हम हमारे मूल संस्कारों और संस्कृति से विमुख हो रहे है। आज के अर्थ प्रधान युग में माँ बाप अपने बच्चों को ममता स्नेह तो दे ही नही रहे है। माँ नवजात शिशु को स्तनपान इस डर से नही करा है नवजात शिशु को स्तनपान कराने से उसके शरीरिक आकर्षण एवं सौंदर्य में कमी आयेगी। नवजात शिशु को डिब्बे का दूध पिलाया जा रहा है। बच्चे बड़े होते है तो उन्हे पाश्चात्य संस्कृति का अंधानुकरण कर अलग कमरा दे दिया जाता है। हर बच्चे की अपेक्षा होती है कि उसे अपने माँ बाप का प्यार मिले । पिता अपनी व्यापारिक व्यस्तताओं के कारण बच्चे बच्ची का ध्यान नही रखते है। माता भी नौकरी अथवा सामाजिक संस्थाओं , किटी क्लब आदि में समय देती है मगर अपने बच्चों को भगवान भरोसे छोड़ देती है।

संत शिरोमणी दिगम्बरं जैन आचार्य श्री विद्या सागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनि प्रमाण सागर जी महाराज ने विगत वर्ष जयपुर में विशाल धर्म सभा में मंगल प्रवचन करते हुए कहा वर्तमान युवा पीढ़ी में भटकाव समाज के लिये गंभीर चिन्ता का विषय है, आपका कहना है कि बच्चों को विशेष रूप से लड़कियों को स्नातकोत्तर पढाई कराने से भटकाव ज्यादा आ रहा है। पूज्य मुनिराज ने जैन समाज के बड़े बड़े सम्पन्न बिल्डर्स को आव्हान किया है वे निर्माण का कुछ हिस्सा लड़कियों के छात्रावासों के निर्माण पर व्यय करें। उन छात्रावासों में लौकिक शिक्षा के साथ धार्मिक शिक्षा , संस्कार शिक्षा देने की भी उचित व्यवस्था होना आवश्यक है। पूज्य मुनि प्रमाण सागर जी ने बच्चों के अभिभावकों को आव्हान किया है अपने बच्चों को अध्ययन एवम् नौकरी पर विदेश भेजने से पहले उन्हे सन्तों के समक्ष संकल्प दिलाने अवश्य लाये। साथ ही आपने अभिभावकों को यह भी सुझाव दिया कि अपने बच्चों को उच्च अध्ययन अथवा नौकरी के लिए विदेश भेजते हैं तो वहाँ वे धर्म आचरण से विमुख न हों इसलिये उनके साथ जैन ग्रंथ जिनवाणी अवश्य भेजिये।

भारत में युवा पीढ़ी में भटकाव एवं प्राचीन भारतीय संस्कृति एवं संस्कारों से विमुख होने में अंग्रेजों का महत्वपूर्ण हाथ है सुप्रसिद्ध अंग्रेज दार्शनिक लॉर्ड मेकाले ने 2 फरवरी 1835 को हाउस ऑफ कॉमंस ब्रिटिश संसद में भाषण देते हुए कहा था मेरी दृष्टि में आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक भारतीय विरासत जो कि इस देश का मेरुदंड है, रीड की हड्डी है इस को खंडित किए बिना हम इस देश पर विजय प्राप्त नहीं कर सकते मैं प्रस्ताव करता हूं कि इस देश की प्राचीन शिक्षण पद्धति उनकी संस्कृति को इस प्रकार परिवर्तित कर दें कि परिणाम स्वरूप भारतीय सोचने लगे कि जो कुछ भी विदेशी एवं आंग्ल हैं वही श्रेष्ठ हैं और महान हैं। इस तरह वे अपना आत्मसम्मान आत्म गौरव तथा अपनी मूल संस्कृति को खो देंगे और वे वही बन जाएंगे जो कि हम चाहते हैं। पूर्ण रूप से हमारे नेतृत्व के अधीन एक देश। सन 1885 में ब्रिटेन के शिक्षा मंत्री ने कहा था भारत में 7 लाख 32 हजार गुरुकुल थे। तब ब्रिटेन में 240 स्कूल थे। इससे स्पष्ट होता है कि उन दिनों भी हमारे देश में शिक्षा के क्षेत्र में कितनी बड़ी प्रगति थी।

यहाँ यह भी उल्लेखनीय है लड़के एवं लड़कियों के अलग अलग गुरुकुल थे। सहशिक्षा का प्रावधान नहीं था। अंग्रेजों ने भारत में सहशिक्षा को बढ़ावा दिया। धीरे-धीरे गुरुकुल जिनमें लड़के एवं लड़कियों को अलग-अलग शिक्षा दी जाती थी, उनको समाप्त किया और और अंग्रेजी पद्धति के कॉन्वेंट स्कूलों का जाल बिछाया, जिनमें सह शिक्षा प्रारंभ की गई। सहशिक्षा ही युवा पीढ़ी में भटकाव का मुख्य कारण है। परम पूज्य गणाचार्य विराग सागर जी महाराज के प्रिय शिष्य राष्ट्रसंत मुनि विहर्ष सागर जी मंगल प्रवचन करते हुए युवा पीढ़ी की दिशा हीनता एवम् भटकाव पर गंभीर चिन्ता व्यक्त करते हुए कहा वर्तमान में माँ बाप को अपने बच्चों से स्नेह एवम् प्यार से बात करने का समय नही है। अपने अभिभावकों से प्यार दुलार नही मिलने से युवा पीढ़ी पथ भृष्ट हो रही है। माँ अपनी बेटी को अपने पास रात्री में नही सुलाती है, बेटी रात्री में 11 बजे से 1 बजे के बीच मोबाइल पर अपने मित्र बना रही है। जो उसे प्यार दुलार दे रहे है। जीवन भर साथ देने का वायदा कर रहे है। मुनिराज ने आव्हान किया माँ अपने बच्चों को अपेक्षित ममत्व दे तथा पिता अपने बच्चों को स्नेह आशीर्वाद दें तो युवा पीढ़ी में भटकाव रुक सकता है।

मुनि विहर्ष सागर जी महाराज ने कहा हर माँ का दायित्व है जब बेटी की आयु 12 वर्ष हो जाये उसे अपने साथ रात्री में रखना चाहिये। इस कार्य के एक साथ दो लाभ होंगे, बेटी की मोबाइल चेटिंग रुकेगी तथा बेटी को भी अहसास होगा माँ के मन में ममत्व जागृत हो गया है। महाराज जी ने माँ के दायित्व को महत्वपूर्ण तथा सजगतापूर्ण बताया है।

संत शिरोमणी आचार्य विद्या सागर जी महाराज के प्रिय शिष्य तीर्थ उद्धारक मुनि पुंगव सुधा सागर जी महाराज युवा पीढ़ी को सत्मार्ग पर लाने संस्कार और संस्कृति से जोड़ने निरन्तर प्रयासरत है। आपकी पावन प्रेरणा से सांगानेर जयपुर में 01 सितम्बर 1996 को श्री दिगम्बर जैन श्रमण संस्कृति संस्थान प्रारंभ किया गया है। इस संस्थान की शाखा खनियाधाना जिला शिवपुरी म. प्र. में भी प्रारंभ की गयी है।

मुनि पुगंव सुधा सागर जी महाराज की ही प्रेरणा से दादावाडी कोटा राजस्थान में दिगम्बर जैन समाज ने वहुमंजिला भवन अल्प समयावधि में बनाकर जैन बालिका छात्रावास गत जुलाई 15 से प्रारंभ हो गया है। जैन संत आचार्य विद्यासागर जी महाराज की पावन प्रेरणा से जैन समाज द्वारा जबलपुर, रामटेक महाराष्ट्र, डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़, इंदौर मध्य प्रदेश, ललितपुर उत्तर प्रदेश में प्रतिभास्थली बालिका आवासीय विद्यालय एवं छात्रावास खोले गए हैं आवासीय विद्यालयों की स्थापना का मुख्य उद्देश्य बालिकाओं को उचित शिक्षा और संस्कारित बनाना है। संत एवम् मुनिराज समाज की युवा पीढ़ी को भटकने , पथभ्रष्ट होने से रोकने निरंतर समाज को सजग कर रहे है। समाज के हर व्यक्ति का दायित्व है युवा पीढ़ी को गलत रास्ते पर जाने से रोकें।

 

 

 

नोट- लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं भारतीय जैन मिलन के राष्ट्रीय वरिष्ठ उपाध्यक्ष है।


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