कृष्णमोहन झा

हमारे देश में हर साल ही देश के किसी न किसी हिस्से में भयानक अग्नि दुर्घटना के कारण अनेकों लोगों की दर्दनाक मौत होने की खबरें भले ही सारे देश को झकझोर देती हों, परंतु इस तरह के दुर्भाग्यपूर्ण हादसों से शायद प्रशासन के उस तबके को कोई फर्क नहीं पड़ता जिसकी लापरवाही की वजह से घटित होने वाले ऐसे भयावह हादसों का अंतहीन सिलसिला कभी थमने का नाम ही नहीं लेता। पहले कोई दर्दनाक हादसा, फिर तत्काल पीड़ित परिवारों को मुआवजे की घोषणा और इसके बाद जांच के नाम पर हादसे के कारणों पर लीपापोती कर दोषियों को बचाने के कथित प्रयासों का यह सिलसिला वर्षों से चला आ रहा है। भयावह हादसों से सबक न लेने की जिस मानसिकता ने जिम्मेदार प्रशासन को जकड़ रखा है उसी मानसिकता के चलते कोई भी हादसा अंतिम साबित नहीं होता। साल दर साल घटित होने वाले ऐसे हादसों में अब तक हज़ारों निर्दोष लोग असमय ही काल के गाल में समा चुके हैं परन्तु ऐसे भयावह हादसों की रोकथाम के नाम पर कुछ दिनों तक की जाने वाली सख्ती के बाद सब कुछ इस तरह चलने लगता है मानों किसी नये हादसे का इंतजार किया जा रहा हो। हाल में ही राजकोट स्थित एक माल के गेमिंग जोन और दिल्ली के विवेक विहार इलाके में स्थित एक बेबी केयर अस्पताल में हुए जिस भीषण अग्निकांड ने सारे देश को दहला दिया उसकी प्रारंभिक जांच में भी यही सच उजागर हुआ है कि स्थानीय प्रशासन ने पहले ही अपनी जिम्मेदारियों का ईमानदारी से निर्वहन किया होता तो दोनों स्थानों पर हुए दुर्भाग्यपूर्ण भयावह हादसों को रोका जा सकता था। बताया जाता है कि बेबी केयर अस्पताल के लायसेंस की अवधि इसी साल मार्च में समाप्त हो गई थी उसके बाद भी यह अस्पताल अवैध रूप से संचालित किया जा रहा था। अस्पताल में न तो अग्नि शमन की पर्याप्त व्यवस्था थी,न ही वहां भर्ती शिशुओं के समुचित इलाज के लिए योग्य चिकित्सक उपलब्ध थे। पुलिस ने इस मामले में अस्पताल के मालिक डा नवीन किची और डा आकाश को गिरफ्तार कर लिया है। प्रारंभिक जांच में अस्पताल में बड़े पैमाने पर बरती जा रही अनियमितताओं के बारे में चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं। बताया जाता है कि इस अस्पताल में केवल पांच बच्चों को इलाज के लिए भर्ती करने की अनुमति मिली हुई थी परन्तु जिस वक्त यह दर्दनाक हादसा हुआ उस वक्त वहां 12 बच्चे भर्ती थे। इनमें से सात बच्चों को इस भयावह हादसे ने मौत की नींद सुला दिया। अगर यह मान भी लिया जाए कि यह अग्नि दुर्घटना शार्ट सर्किट की वजह से हुई तो भी यह सवाल तो उठता ही है कि लायसेंस की अवधि समाप्त हो जाने के बाद भी अगर अस्पताल के मालिक अगर अवैध तरीके से अस्पताल का संचालन कर रहे थे तो उसके लिए क्या वह स्थानीय प्रशासन जिम्मेदार नहीं है जिसके ऊपर अस्पतालों की निगरानी की जिम्मेदारी थी। निश्चित रूप से स्थानीय प्रशासन इस मामले में अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकता।

गौरतलब है कि दिल्ली के चाइल्ड केयर अस्पताल में हुए भयावह हादसे के एक दिन पूर्व ही राजकोट के टी आर पी गेमिंग जोन में भी भयावह अग्नि दुर्घटना में तीस से अधिक लोगों की दर्दनाक मौत की खबर ने सारे देश को झकझोर दिया था। गुजरात हाईकोर्ट ने स्वयं ही इस भीषण हादसे का संज्ञान लेते हुए राजकोट महानगर पालिका प्रशासन को कड़ी फटकार लगाई थी। हाईकोर्ट ने हादसे के अगले ही दिन रविवार को इस मामले की सुनवाई की ।इस मामले में राजकोट महानगर पालिका के 6 अधिकारियों और दो पुलिस अधिकारियों को निलंबित कर दिया गया है। चार आरोपियों को भी गिरफ्तार कर 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है। गुजरात हाईकोर्ट 6 जून से इस मामले की नियमित सुनवाई शुरू करेगी। राज्य सरकार ने राजकोट के पुलिस कमिश्नर,नगर निगम कमिश्नर और दो पुलिस अधिकारियों का तबादला कर दिया है। गुजरात हाईकोर्ट ने इस हादसे को मानव निर्मित आपदा बताते हुए कहा कि गेमिंग जोन के जोन के निर्माण और संचालन के नियमित और उचित नियमों का पालन नहीं किया गया।बताया जाता है कि राजकोट के इस टीआरपी गेमिंग जोन में जब वेल्डिंग का काम किया जा रहा था उससे निकली चिंगारी इस हादसे का कारण बनी। वहीं पास में रखे दो हजार लीटर डीजल और पंद्रह सौ लीटर पेट्रोल में इस चिंगारी जो आग भड़की उसने थोड़ी ही देर में पूरे गेमिंग जोन को अपनी लपेट में ले लिया। गौरतलब बात यह है कि गेमिंग जोन के संचालन के लिए अग्नि शमन विभाग से अनापत्ति प्रमाण-पत्र नहीं लिया गया था। इससे यह साफ जाहिर है कि वहां आग पर काबू पाने के लिए पहले से कोई सुरक्षात्मक इंतजाम नहीं किए गए थे।

अचानक आग भड़कने वाले ऐसे भयावह हादसे हर साल होते हैं जो बड़ी संख्या में निर्दोष लोगों की दर्दनाक मौत का कारण बनते हैं। अफसोस की बात तो यह है कि अधिकांश हादसों के कारणों की जांच में यही सच उजागर होता है कि स्थानीय प्रशासन ने अपने कर्तव्य पालन में कोताही बरती। राजकोट और दिल्ली में हुए भयावह हादसों ने भी इस सच को उजागर किया है। राजकोट में हुए हादसे को गंभीरता से लेते हुए गुजरात हाईकोर्ट ने जो कठोर टिप्पणी की है उसे भविष्य में इस तरह के हादसों को रोकने के लिए दिशानिर्देश के रूप में देखा जाना चाहिए।


नोट - लेखक राजनैतिक विश्लेषक और सहारा मीडिया समूह के स्टेट ब्यूरो हेड है।

 


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