विजय कुमार जैन राघौगढ़ म.प्र.

पाश्चात्य संस्कृति का अंधानुकरण कर भारत में भी 14 फरवरी को हर वर्ष अविवाहित युवक-युवती वेलेंटाइन डे जोर शोर से मनाते हैं। इस दिवस को हिन्दी में प्रेम प्रसंग दिवस कहते हैं। प्रेम, प्यार, स्नेह, ममता गले मिले बिना जीवन अधूरा है।प्यार का मतलब वासना समझना और पूर्ति के लिये निःस्वार्थ प्रेम को तिलांजलि देना जीवन को धूल बनाना है। पाश्चात्य संस्कृति और भारतीय संस्कृति में मूल अंतर है। पाश्चात्य संस्कृति जीवन का उद्देश्य मात्र भौतिक सुख को पाना मानती है। जब तक स्त्री सांसारिक सुख दे तब तक साथ रखो फिर बदल दो। जबकि भारतीय संस्कृति मानव जीवन का उद्देश्य चार पुरुषार्थ को पूर्ण करना मानती है। ये चार पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष बताये हैं।
दिगम्बर जैन आचार्य संत शिरोमणि विद्या सागर जी महाराज एवं उनके परम प्रिय शिष्य मुनि पुंगव सुधा सागर जी महाराज के आशीर्वाद से छुल्लक धैर्य सागर जी के संयोजन में "लव केमिस्ट्री" पुस्तक का प्रकाशन हुआ है। पुस्तक में विस्तार से उल्लेख किया है वेलेंटाइन डे या प्रेम प्रसंग दिवस की पाश्चात्य परंपरा कैसे प्रारंभ हुई। आज से लगभग 1600 वर्ष पूर्व रोम में वेलेंटाइन नाम के संत हुए जिन्होंने स्त्रियों के दुखी होकर उन्हें पुरुष की दासता से बचाने, प्यार को वासना की गुलामियों से मुक्ति का अभियान चलाया, उन्होंने भारतीय साहित्य पढ़कर भारतीय संस्कृति के संस्कारों का प्रचार शुरू किया। भारतीय जीवन शैली की महत्ता को स्थापित करते हुए प्यार को अमर बनाने बाली विवाह पद्धति के अनुसार हजारों युवक-युवतियों को जो आपस में प्यार करने के नाम पर शारीरक वासना में लिप्त थे, उन्हें जीवन भर साथ रहने का संकल्प कराया।उनका विवाह करवाया। इस तरह उनके नैतिक आचार विचार से प्यार या लव वासना के दल दल अथवा कीचड़ में गिरकर गंदा होने से बच गया था। और जीवन सच्चे प्यार सुखी दाम्पत्य जीवन की सुगंध से महक उठा। रोम के क्रूर अत्याचारी राजा फ्लोडियस को महान संत वेलेंटाइन का यह समाज सुधारक पवित्र कार्य अच्छा नहीं लगा राजा ने वेलेंटाइन को 14 फरवरी सन 498 को फांसी पर चढ़ा दिया। उन हजारों लोगों, वैवाहिक जोड़ों जिनके जीवन में संत वेलेंटाइन की प्रेरणा और सद्प्रयास से समय से दाम्पत्य जीवन में खुशी आई थी,उन्होंने ने अपने अमर प्रेम की सौगात मानकर 14 फरवरी को प्रतिवर्ष उस महान आत्मा को याद करने लगे और यह दिवस को वेलेंटाइन डे बन गया। आज हम वेलेंटाइन डे मनाने के वर्तमान रीति रिवाजों की समीक्षा करें तो पाते है जिस महान संत वेलेंटाइन ने रोम में भारतीय संस्कृति और संस्कारों का अनुशरण कर वैवाहिक पद्धति अपनाने के लिये लाखों युवक-युवतियों को प्रेरित किया।उसी संत के पावन स्मृति दिवस को उन लोगों ने उस दिन का नाम वेलेंटाइन डे दिया। ताकि हर वर्ष उस संत को उसके महान समाज सुधारक कार्य के लिये याद किया जाये। मगर हम देख रहे हैं वेलेंटाइन डे को दुनिया के युवक -युवतियों ने अपने प्यार को मात्र वासना की पूर्ति के लिये 14 फरवरी को प्रेम प्रसंग दिवस बना दिया है। दुनिया के युवक युवतियों का अनुशरण भारत में भी युवा पीढ़ी ने जोर शोर से किया है। 14 फरवरी तो विशेष दिन है । आये दिन बड़े नगरों में नगर निगम नगर पालिका ने बड़े बड़े उद्यान अथवा पार्क आम नागरिकों के लिये विकसित किये हैं, उन पर प्रेमी युगलों ने कब्जा कर लिया ह। वे अपने प्यार के नाम पर वासना की पूर्ति के लिये स्वच्छंद रूप से इन स्थानों पर जाते हैं। प्रेमी युगलों के प्रेमालाप के कारण आम नागरिक इन स्थानों पर नहीं जाते हैं। अगर कोई सैर सपाटा करने इन पार्को में पहुंच भी जाता है तो प्रेमी अपने प्रेमालाप में दखल मानकर उन्हें अपमानित कर बाहर का रास्ता दिखा देते हैं। एक ओर पाश्चात्य जगत भारतीय संस्कृति अपनाकर सभ्यता और उच्च मानवीय मूल्यों के आदर्शों को स्थापित कर रहा है।और दूसरी ओर भारतीय लोग पाश्चात्य भोग विलास के आकर्षण में फंसकर सामाजिक नैतिक मूल्यों को समाप्त कर जीवन में अशांति और मानसिक तनाव उत्पन्न कर रहे है। भारतीय माता- पिता अपने कुल संस्कारों के अनुसार बेटी का विवाह करते हैं, जिससे बेटी प्यार,सम्मान, सुख,पवित्रता,शांति को प्राप्त सके,किन्तु पश्चिमी देशों ने अपने धार्मिक साम्राज्य स्थापना की चाह में भोगवादी अपसंस्कृति की चकाचौंध देकर भारतीय चिंतन को विकृत कर दिया है। भारतीय जीवन मूल्यों को पतनोन्मुखी बना दिया है। लव बनाम वासना का गुलाम बना दिया है।

 

 

 

नोट:-लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं भारतीय जैन मिलन के राष्ट्रीय वरिष्ठ उपाध्यक्ष है।


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