कृष्णमोहन झा

लगभग दो माह पूर्व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने संघ के नागपुर स्थित मुख्यालय में आयोजित परंपरागत विजयादशमी समारोह में अपने वार्षिक उद्बोधन में जब यह जानकारी दी थी कि अगले साल 22 जनवरी को अयोध्या में राम लला अपने भव्य मंदिर में पहुंच जाएंगे तब देश के कोने कोने में रहने वाले आस्थावान रामभक्तों में खुशी की लहर दौड़ गई थी और अब जबकि यह पावन तिथि शनै: शऩै: निकट आती जा रही है तब उन लाखों करोड़ों रामभक्तों की यह अधीरता भी स्वाभाविक है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हाथों मंदिर में रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा संपन्न होने के बाद उन्हें जल्द से जल्द अपने आराध्य के दर्शनों का सौभाग्य मिल सके।

22 जनवरी को राम लला की प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम संपन्न करने के लिए राम मंदिर के प्रथम तल का निर्माण कार्य अपने अंतिम चरण में पहुंच चुका है। अधिकांश अतिथियों को आमंत्रण पत्र भेजे जा चुके हैं इसके अलावा अतिथियों के निवास स्थान पर जाकर भी उन्हें आमंत्रित करने का सिलसिला जारी है। प्राण-प्रतिष्ठा समारोह की तैयारियों में जुटे कार्यकर्ता इस ऐतिहासिक गौरवशाली कार्य क्रम की सफलता के लिए द्विगुणित उत्साह के साथ दिन-रात एक कर रहे हैं और केवल अयोध्या ही देश के कोने कोने में असीम उत्साह, उमंग और अभूतपूर्व हर्ष का माहौल है।

करोड़ों रामभक्तों के इस हर्षोल्लास और उमंग शब्दों में व्यक्त करना संभव नहीं है। इसकी केवल अनुभूति की जा सकती है। ऐसी अनुभूति के क्षण जीवन में बार बार नहीं आते। अयोध्या में भव्य राम मंदिर के निर्माण से करोड़ों रामभक्तों का आनंदित होना तो स्वाभाविक है लेकिन इस आनंद के साथ उन्हें अनिर्वचनीय गर्वानुभूति भी हो रही है । यह गर्व लगभग पांच शताब्दियों के उस त्याग, तपस्या और अथक संघर्ष में मिली विजय की देन है जिसमें अनेकानेक रामभक्त भारतवासियों ने आगे बढ़कर अपना बहुमूल्य योगदान दिया। यह गर्व उस पावन लक्ष्य को अर्जित कर‌ लेने की खुशी का भी परिचायक है जिसे हासिल करना लगभग असम्भव मान लिया गया था। इस महान उपलब्धि के लिए केंद्र की मोदी सरकार भी निश्चित रूप से सराहना की हकदार है जिसकी इच्छाशक्ति ने असंभव को संभव बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने राम मंदिर आंदोलन के सभी नायकों के अथक संघर्ष, आंदोलन में उनके अमूल्य योगदान और उनके अनुकरणीय व्यक्तित्व की पुण्य स्मृतियों को संजोकर रखने के लिए उनको अनूठे दस्तावेज के रूप में प्रकाशित करने का फैसला किया है। ट्रस्ट ने इसके लिए विधिवत तैयारियां भी प्रारंभ कर दी हैं। ट्रस्ट के द्वारा विभिन्न माध्यमों से राममंदिर आंदोलन के सभी नायकों के बारे में विस्तृत जानकारी जुटाई जा रही है जिसे बाद में एक ग्रंथ के रूप में प्रकाशित किया जाएगा। श्रीराम मंदिर तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट का यह कार्य निःसंदेह स्वागतेय है और इसके लिए वह भूरि भूरि प्रशंसा का अधिकारी है।

श्रीराम मंदिर तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के सचिव चंपतराय ने अयोध्या में भव्य राम मंदिर के निर्माण को राष्ट्र के अपमान का परिमार्जन निरूपित किया है। इतिहास भी इस बात का गवाह है कि मुगल शासक बाबर के सेनापति मीर बाकी ने सन् 1528 में अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि पर निर्मित मंदिर को तोड़ कर मस्जिद बनाई थी इसीलिए चंपतराय अयोध्या में बन रहे भव्य राम मंदिर को राष्ट्र के सम्मान का मंदिर कहते हैं। चंपत राय कहते हैं कि राम सबके हैं ,इसे समझने में पांच सौ साल लग गए लेकिन अंतिम जीत हमारी हुई। अयोध्या ही भगवान राम का जन्म स्थान है। इस धरा पर भगवान राम का जन्म स्थान अयोध्या के अलावा अन्यत्र कहीं नहीं हो सकता। अयोध्या में मंदिर का निर्माण किसी एक व्यक्ति अथवा संगठन के परिश्रम का परिणाम नहीं है। इसके निर्माण में करोड़ों भारतवासियों का वर्षों का परिश्रम और आहुतियां शामिल हैं। विख्यात गीतकार डॉ कुमार विश्वास मानते हैं कि अयोध्या आगमन किसी भी मनुष्य के लिए मोक्ष और पुण्य प्राप्त करने जैसा है। रामलला के दर्शन के पश्चात उन्होंने कहा कि अयोध्या में भगवान राम के भव्य मंदिर का निर्माण पांच सौ सालों की तपस्या का का फल है।

कवि कुमार विश्वास ने जो विचार व्यक्त किए हैं वह उन करोड़ों रामभक्तों की भावनाओं को व्यक्त करते हैं जिनके मन में यह अटूट विश्वास था कि श्रीराम की भव्य मंदिर उनकी जन्मभूमि अयोध्या में ही बनेगा। इसमें कोई संदेह नहीं कि पांच सौ सालों के संघर्ष में बाधाएं तो बहुत आईं परंतु भगवान राम में अटूट आस्था और विश्वास रखने वाले करोड़ों रामभक्तों के उत्साह में कभी कमी नहीं आई। अपने लक्ष्य से वे कभी विचलित नहीं हुए। अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण आज उनके शताब्दियों के त्याग, तपस्या और संघर्ष की कहानी कह रहा है। आज करोड़ों भारतवासियों को गर्वानुभूति हो रही है कि उन्हें प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से इस महायज्ञ में आहुति देने का सौभाग्य मिला है। कुमार विश्वास ने ठीक ही कहा है कि हम कहीं के भी हों लेकिन मूल निवासी अयोध्या के ही हैं।

नोट - लेखक राजनैतिक विश्लेषक है।


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