विजय कुमार जैन राघौगढ़ म.प्र.

भारतीय संस्कृति में मनुष्य के जीवन में सोलह संस्कारों का उल्लेख ऋषि मुनियों ने किया है। सोलह संस्कार हमारी प्राचीन वैदिक संस्कृति के प्रेरणादायक संस्कार हैं।इन सोलह संस्कारों में एक प्रमुख पाणिग्रहण संस्कार या वैवाहिक संस्कार माना जाता है। युवक युवती के विवाह संस्कार के पूर्व जन्म पत्रिका गोत्र आदि मिलान की व्यवस्था है। इन सबकी अनुकूलता पंडित या ज्योतिषी द्वारा देखकर माता पिता एवं परिजनों को बतायी जाती है, तभी परिजन विवाह सम्पन्न कराने आगे बढ़ते है।
वर्तमान में वैवाहिक संबंध स्थापित करने युवक युवतियों द्वारा परिजनों को नजरअंदाज करके रिश्ते बना लिये जाते है। पढ़ाई के बाद लड़के लड़की एक ही कंपनी में नौकरी करने लगते हैं, वहाँ उनके बीच प्रेम संबंध प्रगाढ़ हो जाते हैं और वे माता पिता परिवार को नजरअंदाज कर विवाह कर लेते हैं। इस व्यवस्था को हम आधुनिकता की अंधी चकाचौंध या पाश्चात्य संस्कृति को दोषी मान सकते है। प्रेम विवाह या मन पसंद विवाह युवक युवती बिना सोच विचार किये कर लेते है। जिनका दुखद परिणाम यह होता है कि वैवाहिक जीवन जब तक चलता है उसमें आत्मीयता एवं सौहार्द समाप्त हो जाता है। वैवाहिक संबंध विच्छेद के लिये न्यायालय की शरण में भी जाना पड़ता है। जब तक वैवाहिक संबंध विच्छेद नहीं हो जाता, दोनों पक्षों में कटुता का वातावरण रहता है। जो युवक युवती विदेश जाकर नौकरी करने जाते है उनके परिजन यहाँ उन्हें उचित रिश्ता तलाशते ही रह जाते हैं वह विदेश में ही विवाह कर लेते है। विदेश में विवाह करते है उनमें अधिकांश में संबंध विच्छेद होते है। विदेशों में वैवाहिक संबंधों को कपड़ों की तरह बदलते रहते है। पति और पत्नी दोनों नौकरी करते है, ऐसी स्थिति में उनके वच्चों का पालन पोषण कौंन करे, दोनों ही नौकरी करते हैं, नौकरी छोड़कर पत्नी वच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी नहीं लेना चाहती है। वच्चों को लेकर ही संबंध विच्छेद हो जाते हैं। वैवाहिक संबंधों में कडवाहट एवं सुखी दाम्पत्य जीवन न होने के लिये युवती के मायके पक्ष को भी प्रमुख रूप से दोषी माना जा रहा है। मायके बालों के निरंतर हस्तक्षेप से सौहार्द पूर्ण जीवन में खटास बढ़ रहीं है। भोपाल की जिला विधिक सेवा प्राधिकरण में पारिवारिक विवादों की काउंसलिंग के दौरान अभी तक हजारों प्रकरणों में यह तथ्य सामने आए है कि विवाह के बाद मायके बाले अपनी लड़की के लगातार संपर्क में रहते है। मोबाइल फोन की भूमिका भी प्रमुख है। लड़की की उसकी माँ से दिन भर में अनेक बार बात होती है। हर छोटी बड़ी बातों में माँ का हस्तक्षेप होने से विवाह के उपरांत ससुराल आई लड़की अपने पति और ससुराल पक्ष के साथ भावनात्मक रिश्ता ही नहीं बना पाती है। मायके बालों के निरन्तर हस्तक्षेप से लड़की पहले दिन से ही ससुराल को अपनत्व की दृष्टि से नहीं देखती है। शादी के अनेक माहों बाद भी वह अपनी माँ एवं मायके बालों से निरंतर जुड़ी रहती है। उनके ही निर्देश पर वह काम करती है। जिसके कारण हजारों परिवार बसने के पहले ही बिखरने लगते है। पति-पत्नी के बीच तलाक की नौबत आ जाती हैं।
मोबाइल पर ज्यादा बात करने के कारण मायके और ससुराल बीच लड़की की जिन्दगी झूल रही है। मोबाइल फोन रिश्तों को बनने के पहले ही बिगाड़ रहा है। शादी के बाद लड़की ससुराल पहुंचती है।सबसे ज्यादा बात वह अपने मायके वालों और माँ से करती है। पति और ससुराल की हर बात को वह मायके से शेयर करती है। मायके वाले उसको ज्यादा से ज्यादा अधिकार सम्पन्न बनाने और हर किसी को अपनी उंगलियों पर नचाने के नुस्खे देते रहते है। जिसके कारण नव दंपति के बीच में भी वह रिश्ता नहीं बन पाता है,जो एक पति पत्नी के लिए जरूरी होता है।इसके साथ ही पत्नी के रूप में शादीशुदा लड़की अपना घर भी नहीं बना और बसा पाती है। जिसके लिए उसने शादी की है। इस तरह के मामलों में काउंसलर की भूमिका भी कोई असर नहीं कर पा रही है। कुटुंब न्यायालय में काउंसलिंग के दौरान तलाक के लिए 50 फीसदी से अधिक मामलों में मायके वालों के लगातार नियमित हस्तक्षेप के कारण रिश्ते टूटने की बात कहीं गई है। हर छोटी-बड़ी बात में मायके के लोग हस्तक्षेप करते हैं। वैवाहिक संबंध टूटने में पहले ससुराल पक्ष की प्रमुख भूमिका रहती थी। विवाह के बाद घर आई नई नबेली बहू को इस आरोप से प्रताड़ित किया जाता रहा है कि तेरे मायके बालों ने दहेज में कार,टी व्ही,कूलर, वाँशिग मशीन,पर्याप्त बर्तन नहीं दिये हैं। ससुराल बाले दहेज न आने के आरोप मायके बालों पर लगाकर बहू को मानसिक रूप से प्रताड़ित करते रहे हैं। सरकार ने दहेज विरोधी कानून बनाया तो इस कानून के प्रावधान इतने कठोर हैं कि इस कानून का दुरुपयोग होने के भी प्रकरण चर्चा में आये हैं। दहेज विरोधी कानून का उपयोग मायके बाले ससुराल पक्ष पर कर रहे हैं। दिगम्बर जैन आचार्य विद्या सागर जी महाराज के पटु शिष्य समाज सुधारक संत मुनि सुधासागर जी महाराज का कहना है युवा पीढ़ी में भटकाव प्राश्चात्य संस्कृति के अंधानुकरण से आ रहा है। आपका कहना है अपने पुत्र या पुत्री के जीवन में आये भटकाव के लिये सबसे ज्यादा दोषी माता-पिता हैं। माता पिता अपने बच्चों को स्वच्छंद कर देते हैं और वे भविष्य की चिंता न कर क्षणिक प्यार के जाल में फसकर अंधे हो जाते हैं। मुनि सुधा सागर जी का स्पष्ट कहना है सहशिक्षा एवं लड़कियों को नौकरी कराने की आम मानसिकता से युवा पीढ़ी पथ भ्रष्ट, संस्कार विहीन हो रही है।

 

 

नोट-लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं भारतीय जैन मिलन के राष्ट्रीय वरिष्ठ उपाध्यक्ष है।


इस खबर को शेयर करें


Comments