कृष्णमोहन झा

उत्तर भारत में हिमाचल प्रदेश एक मात्र ऐसा राज्य है जहां सत्ता की बागडोर कांग्रेस के पास है। दो साल पहले हुए राज्य विधानसभा चुनाव में यहां कांग्रेस ने 68 में 40 सीटें जीत कर सुखविंदर सुक्खू के नेतृत्व में सरकार बनाई थी। तब भाजपा को 25 सीटें मिली थीं और तीन निर्दलीय उम्मीदवार जीते थे । निर्वाचित सदन के अंदर कांग्रेस के पास जितना संख्या बल था उसे देखते हुए हिमाचल प्रदेश में राज्यसभा की एक मात्र सीट के लिए हुए चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार और विख्यात कानून विद अभिषेक मनु सिंघवी की जीत सुनिश्चित मानी जा रही थी परन्तु जब राज्य विधानसभा में मतदान हुआ तो भाजपा के पक्ष में कांग्रेस के 6 विधायकों की क्रास वोटिंग के कारण भाजपा उम्मीदवार हर्ष महाजन अगले 6 सालों के लिए राज्य सभा के लिए चुन लिए गए। दरअसल मतदान में कांग्रेस उम्मीदवार अभिषेक मनु सिंघवी और भाजपा उम्मीदवार हर्ष महाजन को 34- 34 वोट मिले थे इसलिए लाटरी के माध्यम से फैसला लिया गया जिसमें हर्ष महाजन भाग्यशाली साबित हुए और हिमाचल प्रदेश की एक मात्र राज्यसभा सीट कांग्रेस के हाथ से निकल गई और बात यहीं तक सीमित नहीं रही, हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू की कुर्सी पर भी खतरा मंडराता नजर आने लगा तो कांग्रेस हाईकमान कमान ने आनन-फानन में डी शिवकुमार और भूपिंदर सिंह हुड्डा को हिमाचल प्रदेश में डैमेज कंट्रोल के लिए वहां भेजा। उन्होंने पार्टी विधायकों से बात करके समस्या का हल निकालने का प्रयास किया। उन्हें अपने प्रयासों में कितनी सफलता मिली यह तो आगे आने वाला समय ही बताएगा लेकिन इतना तो तय है कि हिमाचल प्रदेश में राज्यसभा की एक मात्र सीट के लिए हुए चुनाव में मिली अप्रत्याशित पराजय ने कांग्रेस को हक्का बक्का कर दिया है और भाजपा बेहद उत्साहित दिखाई दे रही है। राज्य सभा चुनाव में मिली जीत के बाद वह राज्य में सत्ता परिवर्तन की संभावनाएं टटोलने में जुट गई है यद्यपि वर्तमान मुख्यमंत्री सुक्खू और कांग्रेस पार्टी यह दावा कर रही है कि राज्य में सत्ता परिवर्तन की भाजपा की कोशिशें सफल नहीं होंगी। इस बीच सुक्खू सरकार ने विधानसभा में अपना बजट भी ध्वनि मतदान से पारित करा लिया है। विधानसभा के स्पीकर द्वारा भाजपा के पंद्रह विधायकों को सदन से निलंबित किए जाने के बाद सदन में ध्वनि मतदान से बजट पारित होते ही स्पीकर ने अनिश्चितकाल के लिए सत्र स्थगित करने की घोषणा कर दी।

गौरतलब है कि सदन में हंगामा करने के आरोप में स्पीकर द्वारा भाजपा के 15 विधायकों को निलंबित किए जाने के विरोध में पार्टी के बाकी 10 विधायकों ने भी सदन से बहिर्गमन कर दिया था। कांग्रेस ने राज्यसभा चुनाव में भाजपा के पक्ष में क्रास वोटिंग करने वाले अपने 6 विधायकों को सदन की सदस्यता से अयोग्य घोषित करने की मांग करते हुए जो याचिका स्पीकर के समक्ष पेश की थी उस पर कांग्रेस और भाजपा पक्ष सुनने के बाद स्पीकर ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। उधर राज्य सभा की एक सीट के लिए हुए चुनाव में अपने उम्मीदवार की विजय से उत्साहित भाजपा मुख्यमंत्री सुक्खू के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव लाने पर विचार कर रही है।

हिमाचल प्रदेश विधानसभा का सत्र अनिश्चितकाल के लिए स्थगित किए जाने से सुक्खू सरकार पर आया संकट यद्यपि अभी टल गया प्रतीत होता है परन्तु पार्टी के अंदर उनकी कार्यशैली और फैसलों से उपजा असंतोष अभी ठंडा नहीं पड़ा है। हिमाचल प्रदेश में 6 बार मुख्यमंत्री रहे स्व. वीर भद्र सिंह के बेटे विक्रमादित्य सिंह राज्य में नेतृत्व परिवर्तन की अपनी मांग मंजूर होने तक चैन से नहीं बैठेंगे । फिलहाल तो कांग्रेस हाईकमान द्वारा दिल्ली से शिमला भेजे गए पर्यवेक्षक द्वय भूपिंदर सिंह हुड्डा और डी शिवकुमार ने उन्हें इस बात के लिए मना लिया है कि वे मंत्री पद से दिए गया इस्तीफा स्वीकार करने के लिए जोर नहीं देंगे। गौरतलब है कि लगभग डेढ़ साल पहले संपन्न राज्य विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को बहुमत मिलने के बाद विक्रमादित्य सिंह यह चाहते थे कि उनकी मां प्रतिभा सिंह को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपी जाए परन्तु कांग्रेस हाईकमान ने सुखविंदर सिंह सुक्खू की ताजपोशी कर दी थी। उनकी सरकार में विक्रमादित्य सिंह मंत्री तो बन गये परन्तु प्रतिभा सिंह को मुख्यमंत्री की कुर्सी न दिए जाने की टीस हमेशा उनके मन में बनी रही जो राज्य सभा की एक मात्र सीट के लिए हुए चुनाव में खुल कर सामने आ गई। राज्य सभा चुनाव में जिन 6 विधायकों ने क्रास वोटिंग कर भाजपा उम्मीदवार हर्ष महाजन की जीत का मार्ग प्रशस्त किया उनका दावा है कि पार्टी के 26 विधायक राज्य में नेतृत्व परिवर्तन चाहते हैं। कांग्रेस हाईकमान चाहता है कि आगामी लोकसभा चुनाव संपन्न होने तक राज्य में नेतृत्व परिवर्तन की नौबत न आए अन्यथा भाजपा को कांग्रेस का विरोध करने करने के लिए एक बड़ा मुद्दा हाथ लग जाएगा। यह तो तय है कि विक्रमादित्य सिंह राज्य में नेतृत्व परिवर्तन की अपनी मांग को आसानी से नहीं छोड़ेंगे।


नोट - लेखक राजनैतिक विश्लेषक है।

 


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