कृष्णमोहन झा

प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने हाल में ही जब अपने 28 सदस्यीय मंत्रिमंडल का गठन किया तो नये मंत्रियों की सूची में मंडला जिले की लोकप्रिय आदिवासी नेता संपतिया उइके का नाम देखकर मुझे सुप्रसिद्ध हिंदी कवि स्व मैथिली शरण गुप्त की निम्नलिखित पंक्तियां बरबस ही याद आ गई- जितने कष्ट कंटकों में है जिनका जीवन सुमन खिला गौरव गंध उन्हें उतना ही यत्र यत्र सर्वत्र मिला। उक्त पंक्तियां मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव के नवगठित मंत्रिमंडल की सदस्य संपतिया उइके की संघर्षपूर्ण जीवन यात्रा पर अक्षरशः चरितार्थ होती हैं।

4 जुलाई 1967 को मंडला जिले के एक छोटे से गांव के बेहद गरीब परिवार में जन्मीं संपतिया उइके को बचपन में बहुत अभावों का सामना करना पड़ा। थोड़ी बड़ी हुईं तो पारिवारिक जिम्मेदारियों के निर्वहन हेतु मजदूरी करने से भी परहेज़ नहीं किया। शिक्षार्जन के पश्चात् आजीविका हेतु कुछ समय के लिए वे शिक्षकीय व्यवसाय में भी संलग्न रहीं‌ लेकिन दूसरी ओर समाज सेवा का और बडा दायरा उनकी प्रतीक्षा कर रहा था। संपतिया उइके के अंदर मौजूद नेतृत्व कौशल और संगठन क्षमता के गुणों ने जब उन्हें समाज सेवा की भावना से मंडला जिले के ग्राम टिकरवारा के सरपंच का चुनाव लडने के लिए प्रेरित किया तो उसमें मिली विजय से उनके राजनीतिक सफर का शुभारंभ हो गया। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। तीन दशक से अधिक के अपने राजनीतिक सफर में संपतिया उइके ने अनेक महत्वपूर्ण मुकाम हासिल किए हैं। संपतिया उइके तीन बार जिला पंचायत के अध्यक्ष पद पर निर्वाचित हुईं। 2017 में मध्यप्रदेश के राज्य सभा सांसद अनिल माधव दवे के आकस्मिक निधन से रिक्त सीट पर भाजपा नेतृत्व ने उन्हें राज्यसभा में भेजने का जो फैसला किया वह आदिवासी नेता के रूप में उनके उल्लेखनीय योगदान का उचित सम्मान था।

गत वर्षांत में संपन्न राज्य विधानसभा के चुनावों में उनकी जीत के बाद से ही यह अनुमान लगाए जा रहे थे कि मध्यप्रदेश की नई सरकार में उन्हें अहम जिम्मेदारी सौंपी जाएगी। ये अनुमान सही साबित हुए और आज मुख्यमंत्री मोहन यादव के मंत्रिमंडलीय सहयोगियों के बीच उनकी गणना प्रमुखता से होने लगी है। एक गरीब परिवार में इस गौरवशाली मुकाम तक के उनके सफर को मैं यथार्थत: शून्य से शिखर की यात्रा मानता हूं। बचपन से लेकर युवावस्था तक उन्हें कदम कदम पर विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ा परन्तु उन्होंने कभी हार नहीं मानी । दुर्गम पथ की कोई भी बाधा उन्हें उन्हें समाज सेवा के पुनीत मार्ग से विचलित नहीं कर सकी। राजनीति में प्रवेश करने के पीछे उनकी कोई व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा कभी नहीं रही। महत्वपूर्ण पद की लालसा और अहंकार से हमेशा कोसों दूर रहने वाली संपतिया उइके की स्वभावगत विनम्रता ही उनकी वास्तविक पहचान है । उनकी इसी विनम्रता ने उन्हें जनता के विशेष स्नेह और आदर का पात्र बनाया है।

मुख्यमंत्री मोहन यादव की नवगठित सरकार में संपतिया उइके को महत्वपूर्ण विभाग का उत्तरदायित्व सौंपे जाने पर आज जब मैं उन्हें इस लेख के माध्यम से अपनी हार्दिक बधाई और अनंत शुभकामनाएं प्रेषित कर रहा हूं तब मेरे मानस पटल पर अतीत की वे स्मृतियां जीवंत हो उठी हैं जब मुझे उनका सहयोगी और सलाहकार बनने का अवसर मिला लेकिन इसे मैं उनकी विशाल हृदयता ही मानूंगा कि महत्वपूर्ण पदों पर आसीन रहते हुए भी उन्होंने हमेशा मुझे अनुजवत् स्नेह प्रदान किया। सम्पत्तिया से मेरी पहली मुलाकात सन 1999 में ग्राम टिकरवारा में हुई थी जब मैं देशबंधु समाचार पत्र का कार्य देखा करता था उस समय वह टिकरवारा ग्रामपंचायत की सरपंच थी। हम विकास कार्यों पर स्पेशल स्टोरी तैयार कर रहे थे। सरपंच रहते हुए सम्पत्तिया उइके ने स्व सहायता समूह के माध्यम से बड़ी संख्या में महिलाओं का समूह तैयार किया था और वह बड़ा अच्छा कार्य कर रही थी तत्कालीन सीईओ जिला पंचायत पल्लवी जैन गोविल ने भी उक्त कार्य की प्रशंसा की थी।

बाद में संपतिया उइके का मण्डला जनपद आना होता रहता था वहां उनसे हमेशा मुलाकात हो जाया करती थी। उस समय मेरे मित्र प्रफुल्ल मिश्रा जनपद सदस्य थे और शिवराज शाह जनपद अध्यक्ष,जनपद कार्यालय घर से आने जाने के रास्ते में ही पड़ता था उइके में हमेशा क्षेत्र के लिए कुछ करने का जज्बा दिखाई देता था। 2003 में विधानसभा नैनपुर से भाजपा ने उन्हें डमी कैंडिडेट के रूप में पर्चा भरवाया था उस समय उन्हें विधानसभा टिकट ना मिल पाने का काफी अफसोस था तब मैंने उनसे कहा था कि जल्दी आपको लाल बत्ती मिलेगी उन्होंने मुस्कुरा दिया था लेकिन 2004 में जब वह जिला पंचायत सदस्य निर्वाचित होकर के आई और गोंडवाना के सपोर्ट से वे जिला पंचायत अध्यक्ष पद पर निर्वाचित हुई तो मेरी कही हुई बात सच साबित हुई मुझे अच्छे से याद है कि अध्यक्ष निर्वाचित होने के बाद सबसे पहले मिठाई उन्होंने मुझे खिलाई थी और कहा था कि भैया आज आपकी बात सच साबित हो गई सन 2000 में हमने स्थानीय केबल में मंडला समाचार शुरू कर दिया था जिसमें हम शहर के आसपास की समस्याओं को भी दिखाया करते थे कम समय में ही हमारा कार्यक्रम अत्यंत लोकप्रिय हो चुका था उस दौर में कैमरे के सामने बोलने पर लोगों को भारी हिचक होती थी। लेकिन संपतिया उइके हमेशा खुलकर अपनी बात रखती थी सन 2004, 2009 और 2014 में लगातार तीन बार वह जिला पंचायत अध्यक्ष पद पर निर्वाचित हुई। वह अपेक्स बैंक की डायरेक्टर भी रही।

सन 2006 में मैं भोपाल आ गया था लेकिन जब भी कभी संपतियां उइके भोपाल आई तो मुझसे मुलाकात जरूर की और मंडला में उनके द्वारा किए गए कार्यों की चर्चा करती थी। सन 2012 में उनके पति संजय उइके जी का अचानक निधन हो गया था लेकिन इस विराट दुख से उबरकर समाज सेवा के क्षेत्र में वे कार्य करती रही। सन 2013 में भाजपा ने उन्हें मण्डला विधानसभा से अपना प्रत्याशी बनाया था इस चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। सम्पत्तिया उइके के संघर्षों का ही परिणाम था कि भारतीय जनता पार्टी ने 2017 में उन्हें राज्यसभा भेजा था। 2023 में भाजपा ने एक बार फिर मंडला विधानसभा से उन्हें अपना प्रत्याशी घोषित किया और इस चुनाव में उन्हें 16000 से अधिक वोटो से विजय मिली थी।

संपत्ति उइके से जुड़े अनेकों संस्मरण है जिन पर किताब लिखी जा सकती है। मंडला से राज्यसभा जाने वाली वह पहली सदस्य थी इसी तरह विधानसभा चुनाव जीत कर मध्यप्रदेश सरकार में मण्डला से केबिनेट में शामिल होने वाली भी वह प्रथम सदस्य है इसके पहले मण्डला से बसन्त राव उइके, देवेन्द्र टेकाम,दयाल सिंह तुमराची,देवसिंह सैयाम गंगा बाई उरैती राज्य मंत्री के तौर पर मध्यप्रदेश के मंत्रिमंडल में शामिल हुये है लेकिन आजादी के बाद पहली बार संपतिया उइके के तौर पर मण्डला को कैबिनेट मंत्री का पद मिला। मंत्री बनने के बाद जब मेरी पहली बार संपात्तिया उइके से मुलाकात हुई तो उन्होंने पुराने ढंग से ही आत्मीयता से मुलाकात कर अपनी इस विराट उपलब्धि का श्रेय हम सबको दिया। वे राजनीति के क्षेत्र में उन्नति करें और मण्डला के विकास को नई दिशा दे पाये यहीं हमारी माँ नर्मदा से प्रार्थना है।

नोट - लेखक सहारा मीडिया समूह के स्टेट ब्यूरो हेड है।


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