कृष्णमोहन झा

एक और नया साल प्रारंभ हो चुका है। कुछ दिनों में साल का प्रथम सप्ताह भी समाप्त हो जायेगा। फिर एक पखवाड़ा और फिर एक महीना। जनवरी का महीना समाप्त होने में कोई ज्यादा वक्त नहीं लगता। हर नए साल का पहला महीना नए साल का जश्न मनाने में ही बीत जाता है और जब नए साल के दूसरे महीने की शुरुआत होती है तब तक नया साल पुराना लगने लगता है और जिंदगी फिर अपने पुराने ढर्रे पर चलने लगती है।

अधिसंख्य लोगों के जीवन में यह सिलसिला यूं ही चलता रहता है। ऐसे लोग नए साल के लिए जो संकल्प लेते हैं वे संकल्प ज्यादा दिन नहीं टिक पाते। कुछ लोगों के संकल्प तो साल के पहले दिन ही टूट जाते हैं। कुछ लोग दस पंद्रह दिन तक अपने संकल्प याद रखते हैं फिर जान बूझकर भूल जाते हैं । कुछ ऐसे लोग भी होते हैं कि नया संकल्प लेने के लिए फिर नए साल का इंतजार करने लगते हैं। ऐसे लोगों के जीवन में साल तो बदलता है लेकिन साल बदलने से और कुछ नहीं बदलता। ऐसे लोगों की बस यही शिकायत रहती है कि उनका तो समय ही खराब चल रहा है। वे न तो समय के साथ चलते हैं,न ही समय के साथ खुद को बदलना चाहते हैं।

वे एक पल के लिए भी यह सोचने के लिए तैयार नहीं होते कि जो लोग समय के साथ चलकर और खुद को बदल कर सफलता की सीढ़ियां चढ़ जाते हैं उनके लिए भी हर सप्ताह में सात दिन और हर दिन में 24 घंटे होते हैं। उनका तो एक ही तर्क होता है कि समय ने हमारा भी साथ दिया होता तो हम भी जाने कहां के पहुंच चुके होते। हां, उनके मुंह से यह गर्वोक्ति हमेशा सुनी जा सकती कि 'हमारा समय आने दो फिर देखना हम क्या करते हैं।' अर्थात् वे जिन हालातों से गुजर रहे हैं उनके लिए केवल समय जिम्मेदार है। उनकी खुद की कोई जिम्मेदारी नहीं बनती। काश, ऐसे लोग अपने हालातों के लिए समय को जिम्मेदार ठहराने के बजाय एक बार भी अपने अंदर झांक कर देखना पसंद नहीं करते। इसीलिए दिन, महीने और साल बदलने के साथ वे जहां के तहां रहते हैं। ऐसे लोग के जीवन में नया साल कभी नहीं आता । काश, वे इस कड़वी हकीकत का अहसास कर पाते कि समय न तो किसी के लिए नहीं रुकता, न ही खुद चलकर किसी के पास आता है बल्कि हमें ही समय के साथ चलना पड़ता है। जो लोग इस सच्चाई को समझ लेते हैं समय उनका साथ देता है। सीधी सी बात है कि हम समय के साथ चलेंगे तो समय भी हमारा साथ देगा।

सवाल यह उठता है कि अगर हम सचमुच में बदलना चाहते हैं तो क्या उसके लिए साल बदलने का इंतजार करना जरूरी है। दुनिया में ऐसे लोग भी ‌ हुए हैं जिनके मन में एक बार भी अगर कोई बुरी आदत छोड़ने का विचार आ गया तो वे तत्क्षण उस आदत का परित्याग कर देते हैं। फिर कोई भी दबाव, आग्रह अथवा प्रलोभन उन्हें उनके संकल्प से डिगा नहीं सकता। ऐसे लोग कोई योजना बनाते हैं तो उसे अमलीजामा पहनाने के लिए नए साल का इंतजार नहीं करते। उनके मन में कोई विचार आते ही तत्काल उस पर अमल शुरू कर देते हैं । लक्ष्य के मार्ग में आने वाली कोई भी बाधा उन्हें विचलित नहीं कर सकती। अपने लक्ष्य की ओर वे जिस क्षण अपना पहला कदम बढ़ाते हैं और उसी क्षण उनके जीवन में नया साल आ जाता है। उनके लिए साल का हर दिन नए साल के पहले दिन जैसी स्फूर्ति और उत्साह लेकर आता है ।

कभी आपने सोचा है कि एवरेस्ट फतह करने वाले लोगों ने अपना अभियान प्रारंभ करने के लिए क्या एक जनवरी की प्रतीक्षा की थी अथवा महात्मा गांधी ने 'दांडी मार्च' और 'अंग्रेजो भारत छोड़ो आंदोलन' जैसे ऐतिहासिक अभियान क्या एक जनवरी को प्रारंभ किए थे। इतिहास के पन्ने पलट कर देख लीजिए किसी महान अभियान की शुरुआत करने वालों ने ने अपना अभियान शुरू करने के लिए नए साल की प्रतीक्षा नहीं की। सफल लोगों की सबसे बड़ी विशेषता यह होती है कि वे साल भर हमेशा प्रसन्नचित रहते हैं। वे न तो दूसरे की निंदा करते हैं और न ही उन्हें किसी के काम में छिद्रान्वेषण करने की आदत होती है। गासिप में अपना कीमती समय बर्बाद करने से उन्हें सख्त नफरत होती है। उनके लिए समय बेशकीमती होता है। वे वक्त की एक एक बूंद को निचोड़ डालते हैं इसलिए कोई नया काम शुरू करने के लिए नए साल के‌ शुभारंभ की प्रतीक्षा करना उन्हें पसंद नहीं आता। वे वर्षांत की प्रतीक्षा भी नहीं करते क्योंकि धन जनवरी से लेकर दिसंबर तक साल के हर दिन और हर वक्त वे नए साल के पहले दिन जैसी ताजगी, उमंग और उल्लास से लवरेज रहते हैं।

वे कभी यह नहीं कहते कि मेरे काम सप्ताह के अमुक दिन ही बनते हैं या अमुक दिन किया गया मेरा हर काम बिगड़ जाता है। उन्हें अपनी लगन और परिश्रम पर भरोसा होता है। वे पूरे आत्मविश्वास के काम शुरू करते हैं कि जब तक काम पूरा नहीं हो जाता तब तक उनका उनका ध्यान उसी काम पर केंद्रित होता है। स्वामी विवेकानंद ने कहा था - 'कोई एक विचार लो और अपना सब कुछ, अपनी आत्मा उसमें डाल दो और लक्ष्य पूरा होने तक मत रुको। ' अक्सर यह होता है कि बहुत से लोग कोई काम की शुरुआत तो बहुत जोश और उत्साह के साथ करते हैं परंतु मार्ग में मुश्किलों से सामना होता ही उसे बीच में अधूरा छोड़ कर नए काम की योजना बनाने लगते हैं। ऐसे लोग जीवन में कभी शुरुआती चरण से आगे नहीं बढ़ पाते । और अपनी असफलता के लिए समय को जिम्मेदार ठहरा देते हैं।

दुनिया में ऐसे लोग भी होते हैं जो किसी साल या तारीख को अंक ज्योतिष के हिसाब से शुभ या अशुभ मानकर यह तय कर लेते हैं कि उन्हें अपने काम में अमुक तारीख को अथवा अमुक साल में सफलता मिलेगी अथवा नहीं। कई बार जीवन में ऐसे अवसर भी आते हैं जब कोई काम को तत्काल करने के अलावा हमारे सामने और कोई विकल्प नहीं होता अपरिहार्य हो जाता है ऐसे समय क्या अंक ज्योतिष के हिसाब से शुभ वर्ष अथवा शुभ तारीख का विचार मन में लाकर उस काम को टाला जा सकता है। इसीलिए एक महान लेखक ने कहा है कि जो काम आप परसों कर सकते हैं उसे कल पर भी मत टालिए। यही संत कबीर भी कहते हैं - 'काल करै सो आज कर। आज करै सो अब। पर में परलय होएगा, बहुरि करेगा कब। '


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