कृष्णमोहन झा
केंद्र सरकार ने विगत दिनों जब शासकीय कर्मचारियों पर 58 साल पहले लगाया गया वह प्रतिबंध हटाने का फैसला किया था जिसके तहत् उन्हें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की गतिविधियों में भाग लेने लेने से वंचित कर दिया गया थ तब अनेक विपक्षी दलों ने सरकार के इस फ़ैसले पर सवाल उठाए थे परन्तु अब मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने अपने एक ऐतिहासिक फैसले से केंद्र सरकार के उस निर्णय की न केवल पुष्टि कर दी है बल्कि इस बात को भी रेखांकित किया है कि केंद्र सरकार को अपनी ग़लती का अहसास होने और उस गलती को सुधारने में पांच दशक लग गये। मप्र हाइकोर्ट के इस फैसले के बाद विपक्षी दलों को भी यह स्वीकार करने का साहस दिखाना चाहिए कि संघ न तो कोई राजनीतिक संगठन है,न ही कभी समाज में सांप्रदायिक विद्वेष अथवा नफरत फ़ैलाने जैसी गतिविधियों का हिस्सा बनता है जैसा कि वे आरोप लगाते रहे हैं। मप्र हाईकोर्ट का यह फ़ैसला संघ के प्रति पूर्वाग्रह से ग्रस्त विपक्षी दलों को अपनी धारणा बदलने के लिए प्रेरित कर सकता है।
मप्र हाईकोर्ट में केंद्र सरकार के एक सेवानिवृत्त अधिकारी पुरषोत्तम गुप्ता ने 2023 में एक दायर याचिका दायर की थी जिसमें उन्होंने कहा था कि सेवा निवृत्ति के बाद अब वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा संचालित सामाजिक सांस्कृतिक और धार्मिक गतिविधियों का हिस्सा बनने के उद्देश्य से संघ में शामिल होना चाहते हैं परन्तु इस मामले में 58 साल पहले शासकीय कर्मचारियों पर लगाया प्रतिबंध उन्हें सेवा निवृत्ति के बाद भी संघ में शामिल होने की अनुमति नहीं देता। पुरषोत्तम गुप्ता ने अपनी याचिका में कहा था कि संघ देश सेवा के कार्य में जुटा हुआ एक गैर राजनीतिक संगठन है और हर भारतवासी को इसकी गतिविधियों में भाग लेने का अधिकार मिलना चाहिए। इसके बाद मप्र हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर पूछा कि संघ को किस सर्वेक्षण अथवा अध्ययन के आधार पर सांप्रदायिक और धर्म निरपेक्षता विरोधी संगठन घोषित किया गया था और सरकार का कोई कर्मचारी सेवा निवृत्ति के बाद अगर संघ की गतिविधियों में भाग लेता है तो उससे किस तरह सांप्रदायिकता का संदेश जाएगा। मप्र हाईकोर्ट ने इस बात को भी रेखांकित किया है कि कोर्ट द्वारा पांच अलग-अलग तारीखों पर पांच बार सरकार से पूछा कि पांच दशकों तक सरकार के लाखों कर्मचारियों को उनकी स्वतंत्रता से वंचित रखने के पीछे क्या आधार था लेकिन सरकार की ओर से कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया गया और संघ को प्रतिबंधित संगठनों की सूची से बाहर करने का फैसला सरकार ने तब किया जब यह बात याचिका के माध्यम से कोर्ट के संज्ञान में लाई गई। मप्र हाईकोर्ट ने सरकार को यह निर्देश भी दिया कि भविष्य में ऐसे किसी भी संगठन को प्रतिबंधित संगठनों की सूची में शामिल करने से पूर्व गहन जांच की जानी चाहिए।
यहां यह भी विशेष उल्लेखनीय है कि किसी न्यायालय द्वारा संघ को गैर राजनीतिक संगठन मानने का यह पहला मौका नहीं है। अतीत में भी मैसूर हाईकोर्ट और पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट द्वारा भी इसी तरह के फैसले दिए जा चुके हैं।1967 में संघ की गतिविधियों में भाग लेने के कारण सेवा मुक्त कर दिए गए एक शासकीय कर्मचारी की याचिका पर फैसला देते हुए कहा था हाईकोर्ट ने कहा था कि संघ एक राजनीतिक संगठन नहीं अतः उसकी गतिविधियों में भाग लेने के कारण किसी सरकारी कर्मचारी को सेवा मुक्त नहीं किया जा सकता।इसी तरह 1966 में मैसूर हाईकोर्ट ने एक सरकारी कर्मचारी की याचिका पर अपने फैसले में कहा था कि प्रथम दृष्टया संघ एक गैर राजनीतिक सांस्कृतिक संगठन है जो किसी भी गैर हिन्दू के प्रति घृणा एवं द्वेष की भावना से मुक्त है। संघ ने भारत में लोकतांत्रिक पद्धति को स्वीकार किया है अतः उसकी गतिविधियों में भाग लेने के कारण किसी सरकारी कर्मचारी को सेवा मुक्त नहीं किया जा सकता। इसके साथ ही मैसूर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार याचिका कर्ता कर्मचारी की सेवाएं बहाल करने का आदेश दिया था।
अबकि केंद्र सरकार शासकीय कर्मचारियों को संघ की गतिविधियों में भाग लेने से रोकने वाला 58 साल पुराना प्रतिबंध हटा दिया है, संघ के विचारों से सहमति रखने वाले शासकीय कर्मचारियों में हर्ष व्याप्त है वहीं दूसरी ओर कुछ विपक्षी दल सरकार के इस फैसले की आलोचना करते हुए यह भी कह रहे हैं कि यह फैसला संघ और सरकार के बीच कुछ समय से जारी विवाद को शांत करने के इरादे से किया गया है। इसमें दो राय नहीं हो सकती कि सरकार ने यह फैसला पहले ही ले लिया होता तो शायद विपक्षी दलों को ऐसी टीका करने का मौका हाथ नहीं लगता लेकिन फिर भी इसे देर से लिया गया सही फैसला कहना ग़लत नहीं होगा। जो विपक्षी दल संघ कीप विचारधारा से असहमत होकर इस फैसले की आलोचना कर रहे हैं उन्हें सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के लिए समर्पित संघ के 99 वर्षों के सफर में व्यक्ति निर्माण से लेकर राष्ट्र निर्माण से जुड़े क्षेत्रों में उसके उत्कृष्ट योगदान पर गंभीरता से चिंतन करना चाहिए। युद्ध काल हो अथवा अभूतपूर्व विश्व व्यापी कोरोना संकट हो, संघ के कार्य कर्ताओं ने हमेशा सेवा कार्यों में तत्परता पूर्वक आगे आकर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। इस समय संघ के द्वारा देश भर में लगभग दो लाख सेवा प्रकल्प संचालित किए जा रहे हैं। संघ अपने पचास से अधिक आनुषंगिक संगठनों के माध्यम से समाज के हर वर्ग की सेवा में जुटा हुआ है। राष्ट्र का परम वैभव उसका परम लक्ष्य है। यही कारण है कि संघ ने दुनिया के सबसे बड़े स्वयंसेवी संगठन होने का गौरव अर्जित किया है। ऐसे सेवा भावी संगठन की गतिविधियों में भाग लेने से सरकारी कर्मचारियों को रोकने वाला प्रतिबंध हटाने का सरकार ने जो फैसला किया है उसे देर आयद दुरुस्त आयद कहना ही उचित होगा।
नोट - लेखक राजनैतिक विश्लेषक है।
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