विपिन कोरी

मध्य प्रदेश की सत्ता पक्ष और विपक्ष की राजनीति में मची उथल-पुथल ने देश के दो बड़े राजनैतिक दलों को जातीय समीकरण बनाकर राजनीति करने के लिए विवश कर जागरूकता का आभास करा दिया। हाल ही में संपन्न हुये चार राज्यों के विधानसभा चुनाव में आये परिणामों से जहां कांग्रेस को सत्ता की मायूसी हात लगी, वहीं भाजपा ने साम-दाम-दंड-भेद की रणनीति कर जनतंत्र पर अपना अभेद, अचूक तीर चलाकर निशाना लगाया और भले ही बिना मन के ही क्यों न हो लेकिन सीधे विधानसभा की कुर्सी पर अपना झंडा गाड़ने में सफल हो गये। कांग्रेस तो ठीक, अन्य पार्टियों सहित चक्रव्यूह में फसी भाजपा और उसका नेतृत्व भी इन परिणामों से दंग रह गया। खेर जो होना था सो हो गया। जहां भाजपा ने उज्जैन के तीसरी बार के विधायक डॉ. मोहन यादव को मुख्यमंत्री बनाकर ओबीसी वर्ग को साधने की जुगत लगायी तो अब कांग्रेस ने भी अपने पत्ते खोलते हुये उज्जैन से ही चंद किलोमीटर की दूरी नापने वाले ओबीसी वर्ग के कद्दावर नेता, कमलनाथ सरकार में उच्च शिक्षा, खेल और युवा मामले में कैबिनेट मंत्री रहे जितेन्द्र उर्फ जीतू पटवारी को मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी का प्रदेश अध्यक्ष बनाकर कांग्रेस की जमीन नापने की जिम्मेदारी सौंप दी। हालांकि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता, पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ और दिग्विजय सिंह ने प्रदेश में कांग्रेस की जमी को बहुत सींचा, 2018 में सरकार बनाई जो पंद्रह महिने चली, 2023 के विधानसभा चुनाव में बाजी पलटती देख भाजपा सहित दूसरे दलों के लोगों ने भी धड़ाधड़ विकेट पर विकेट गिराते हुए अपनी बगलें झांकी और अपनी पार्टी से दामन झाड़ते हुए कांग्रेस का दामन थामा, जिससे कांग्रेस संगठन को मजबूती मिली और उसी मजबूती को गति देंगे पटवारी।

इंदौर के एक छोटे से शहर बिजलपुर में जन्मे एल.एल.बी डिग्रीधारी पटवारी के दादा कोदरलाल पटवारी स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान स्वतंत्रता सेनानी रहे, जबकि उनके पिता रमेश चंद्र पटवारी भी कांग्रेस के सक्रिय नेता रहे। प्रदेश में युवा कांग्रेस से अपनी राजनीतिक पारी की शुरूआत करते हुये पटवारी 2013 में राऊ विधानसभा से पहली बार विधायक बने और 2018 में दूसरी बार विधानसभा का चुनाव जीतकर कमलनाथ सरकार में मंत्री बने। इसके पूर्व पटवारी ने कांग्रेस के मीडिया विभाग में रहकर विपक्ष की आवाज बनकर किसानों के मान, महिलाओं के सम्मान, युवाओं के रोजगार, बच्चों की शिक्षा और कानून व्यवस्था के मुद्दों को सदन से सड़क तक पूरी दमदारी से उठाया।

कहते हैं जिसके जो भाग्य में है उसे मिलकर ही रहता है। कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व मल्लिकार्जुन खड़के, सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी ने पटवारी पर विश्वास जताया और मध्यप्रदेश में कांग्रेस की जमीन और मजबूत करने के लिए, कांग्रेस की फसल में पानी डालकर उसे सींचने और उसे उगाने का जो जिम्मा सौंपा, उससे युवाओं में नयी ऊर्जा के संचार का प्रवाह अभी से लहलहाते हुये दिख रहा है। पटवारी युवा जरूर हैं, लेकिन वरिष्ठों की रायशुमारी लेने में वे कभी पीछे नहीं रहते। जनता के हकों और अधिकारों के लिए चाहे विधानसभा में हो या सड़क पर पूरी ताकत और जोर -शोर से मैदान में लड़ते और उनकी यही अदा प्रदेश के युवाओं को तो ठीक वरिष्ठजनों को भी भा जाती है। पटवारी लोकसभा चुनाव के पहले मिली कांग्रेस की जमीन नापने की इस बड़ी जिम्मेदारी को कितनी सजगता, संजीदगी, सक्रियता और निर्भिकता के साथ निभायेंगे यह उनके भविष्य के लिए एक बड़ी चुनौती है।


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