विजय कुमार जैन राघौगढ़ 

भारत वर्ष में सरकार द्वारा "बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ" नारा देकर बेटी बचाओ अभियान चलाया जा रहा है। बालिका की जन्म दर में निरंतर आ रही कमी के कारण यह अभियान चलाया जा रहा है। बेटी को इस दुनिया में आने से पहले ही माँ की कोख में ही भ्रूण हत्या कर दी जाती है। इस निर्दयतापूर्ण एवं अमानवीय कृत्य की सभी ओर कटु आलोचना हो रही है। देश में प्रायवेट नर्सिंग होम्स एवं अस्पतालों में यह धन्धा जोर से जारी है। गर्भपात कानूनी रूप से अपराध है मगर गैर कानूनी रूप से यह कारोबार जारी है।
ज्वलंत प्रश्न यह है कि बेटियाँ कैसे बचेंगी जब तक उनकी माँ के बचने की गारंटी न हो। हमारा मानना है बेटी बचाओ अभियान से पहले माँ बचाओ अभियान चलाने की तत्काल आवश्यकता है। संयुक्त राष्ट्र संघ की रिपोर्ट हम देखें तो भारत में सबसे ज्यादा माताओं की मृत्यु प्रसव के दौरान होती है। रिपोर्ट में यह उल्लेख किया है दुनिया में जितनी महिलाओं की मृत्यु प्रसव के दौरान होती है उनमें 17 प्रतिशत भारतीय हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ की रिपोर्ट का हम गहन अध्ययन करते है तो हम पाते हैं प्रतिदिन भारत में 137 महिलाओं की मृत्यु होती है। माताओं की असमय मृत्यु के अलग अलग कारण है। असामयिक मृत्यु का कारण चिकित्सा सुविधाओं का अभाव तो है ही कुपोषण भी मृत्यु का प्रमुख कारण है। रिपोर्ट में यह भी उल्लेख है भारत में 15 से 35 वर्ष की महिलायें बड़ी संख्या में खून की कमी का शिकार हैं। हमारे देश में सदियों से बाल विवाह प्रथा जारी है। कम उम्र में विवाह कर दिया जाता है और वह युवती कम उम्र में ही अनेक बच्चों कि माँ बन जाती है। जीवन के सबसे बड़े निर्णय विवाह के बारे में एवं माँ बनने के बारे में उससे सहमति तक नहीं ली जाती है। इसका कारण समाज में हमेशा महिला को उपेक्षा की दृष्टि से देखा जाना है। समाज में आज भी यह धारणा है कि पत्नी का अर्थ उसके वंश एवं परिवार को बढ़ाना है। नारी शक्ति के संबंध में समाज की इस घटिया एवं अपमान जनक सोच को बदलने जन अभियान चलाने आवश्यकता है। समाज में महिलाओं का आदर्श पूर्ण स्थान रहा है वह हमे यथावत बनाये रखना चाहिए।
सन 1994 में संयुक्त राष्ट्र संघ के सम्मेलन में यह माना है कि महिला के स्वास्थ्य के बारे में एकमात्र उस समय न सोचा जाये, जब वह गर्भवती हो, बल्कि महिला के स्वास्थ्य पर हमेशा ध्यान रखने की आवश्यकता है। महिलाओं के स्वास्थ्य के प्रति केन्द्र और राज्य सरकारें भले ही सजगता से योजनायें बना रही हैं मगर उन योजनाओं का क्रियान्वयन ईमानदारी से नहीं हो रहा है। जननी सुरक्षा की योजना में प्रायः सभी दूर भारी भृष्टाचार की शिकायतें आ रही हैं। प्रसूता महिला को जो 1400/ की सहायता चेक से दी जाती है उस चेक को देने में स्वास्थ्य विभाग द्वारा प्रसूता के परिजनों से सौदेबाजी की जाती है। प्रायः महिला चिकित्सक रात्री में प्रसूति कराने नहीं आती अगर आ जाती है तो प्रसूति के समय शिशु रोग विशेषज्ञ का होना आवश्यक है। एक दूसरे के नहीं आने से प्रसूति में विलंब होने पर जच्चा बच्चा दोनों ही मृत्यु की गोद में चले जाते हैं।
गर्भावस्था में सोनोग्राफी से अवैध रूप से पता चल जाता है कि गर्भ में बेटे के स्थान पर बेटी है। बालिका भ्रूणहत्या में माँ की सहमति की बात अधिकांश लोग कहते है। वे कहते हैं माँ अपनी बच्ची को मारना न चाहे तो कोई उसे कैसे मार सकता है। गर्भ में पल रही बच्ची का गर्भपात महिला पर पति और परिवार का इतना दवाव रहता है कि वह महिला इंकार करने की स्थिति में नहीं रहती है।यह हम भूल जाते है, हर पल दिन रात अपना सुख चैन भूलकर परिवार में काम और कर्तव्य का सारा बोझ ढ़ोने बाली माँ का स्थान परिवार में सबसे निचले पायदान पर होता है।उसकी आवाज वहुत कम सुनी जाती है। परिवार के दवाव एवं परिवार की पुत्र प्राप्ति की चाहत समाज के हर वर्ग में इतनी है कि एक के बाद एक होती हत्यायें तथाकथित सहिष्णु एवं संवेदनशील समाज को बुरी नहीं लगती है।। हर वर्ष गर्भधारण एवं गर्भपात माँ को गंभीर बीमारियों से पीड़ित बना देता है।
माँ की हो रही दुर्दशा में समाज द्वारा बनाई रूढ़िवादी प्रथा ही दोषी है। माँ को हम कितने रूप में देखते हैं एवं माँ का कौंन-कौंन सा रूप आदर्श प्रस्तुत करता है? माँ परिवार में सबसे पहले उठती है, सबसे बाद में सोती है। जो सबके खाने के बाद खाती है। परिवार में चार बच्चे है और चार रोटी है तो माँ कह देती है आज मुझे भूख नहीं है। तुम चारों मिलकर खा लो। कभी बीमार हो तो बीमारी का पता नहीं चलने देती है। चाहे वह थकी क्यों न हो, वह किसी काम को करने के लिये उफ नहीं करती है, यह नहीं सबके स्वास्थ्य, दीर्घायु, घर के वैभव, जमीन जायदाद के लिये वृत-उपवास भी उसी के हिस्से में आते हैं। पत्नी अपने सुहाग की रक्षा के लिये अरवा चौथ पर वृत रखती है।
महिला का स्वास्थ्य ठीक रहे तो देश की आर्थिक स्थिति में भी सुधार हो सकता है। आखिर किसी देश की आर्थिक क्षमता सुधारने के लिये मानव संसाधन सबसे बड़ी ताकत है। इसलिए जब हम बेटी बचाओ अभियान को जोर शोर से देश में चलाने की बात करते हैं, तो पहले उनके बारे ध्यान देने और सही नीतियाँ बनाने की जरूरत है, जो दुनिया में बेटियाँ लाती है अर्थात माँ।
अपनी बात माँ को समर्पित निम्न पंक्तियों से समापन की ओर ले जा रहा हूँ :-
स्त्री यदि बहन है तो प्यार का दर्पण है।
स्त्री यदि पत्नी है तो खुद का समर्पण है।
स्त्री यदि भाभी है तो भावना का भंडार है।
मामी,मौसी, बुआ है तो स्नेह का सत्कार है।
स्त्री यदि काकी है तो कर्तव्य की साधना है।
स्त्री अगर साथी है तो सुख की शतत संभावना है।
और अंतिम पंक्ति-
स्त्री यदि माँ है तो साक्षात् परमात्मा है।

नोट:-लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं भारतीय जैन मिलन के राष्ट्रीय वरिष्ठ उपाध्यक्ष है।


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