विजय कुमार जैन राघौगढ म.प्र.

अहिंसा के अवतार युगदृष्टा भगवान महावीर का 2549 वाँ निर्वाणोत्सव कार्तिक कृष्णा अमावस्या 25 अक्टूबर 22 मंगलवार को मना रहे हैं। भगवान महावीर का 2621वाँ जन्मोत्सव हमने चैत्र शुक्ल 13 दिनांक 14 अप्रैल 22 दिन रविवार को मनाया
है। भगवान महावीर एक युग पुरुष, युग दृष्टा, एक महामानव थे। वे जैन धर्म के 24 वें तीर्थंकर थे। क्षत्रिय राज कुमार होने के बावजूद भी उन्होंने कभी विश्व विजय का सपना नहीं देखा। जिस समय भगवान महावीर का अवतरण हुआ, दुनिया में हिंसा और अत्याचार का बोल बाला था। महाबीर ने विषम परिस्थिति में सच्चा मार्ग दुनिया को दिखलाया। आपने प्राणीमात्र के सुख के लिये "जिओ और जीने दो" का अमूल्य मंत्र दिया। वर्तमान में भगवान महावीर के निर्वाणोत्सव के अवसर हम पीछे मुड़कर देखें तो पिछले दो वर्ष से सारी दुनिया कोरोना से पीड़ित रही है। कहते हैं चीन में आम आदमी ने जहरीले जीव जन्तुओं को अपनी जिव्हा का स्वाद बढ़ाने उनका वेरहमी से भक्षण किया, यह भी आरोप है कि कोरोना महामारी का शुभारंभ सन 2019 में चीन से हुआ, और यह महामारी सारी दुनिया में आग की तरह फैल गई। सभी ओर से आबाज आ रही है हिंसा और मांसाहार को त्याग कर ही कोरोना जैसी जानलेवा महामारी से बचा जा सकता हैं। इस महामारी से लड़ने भगवान महाबीर का अहिंसा शाकाहार सिद्धांत प्रासंगिक है। शाकाहारी समाज के लिये यह सुखद संदेश है कोरोना महामारी से पीड़ित दुनिया के लगभग सभी देशों में स्वस्थ्य रहने मांसाहार त्याग कर शाकाहार को स्वीकार किया जा रहा है
विश्व प्रेम ही भगवान महावीर का दिव्य संदेश है। भगवान महावीर के इसी सिद्धांत को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अपने जीवन का मूलमंत्र माना था। हमारे भारत की यह नीति है किसी दूसरे देश की भूमि मत हड़पो। सन 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान युद्ध में पश्चिमी पाकिस्तान जीतकर उस पर कव्जा न कर स्वतंत्र बंगलादेश बनाया।
भगवान महावीर का मंगल उपदेश था पाप से घ्रणा करो, न कि पापी से। उन्होंने ने विरोधी को कभी विरोध से नहीं वरन सद्भावना एवं शांति से जीता। भगवान महावीर ने दुनिया को अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह का पावन संदेश दिया, इस मार्ग पर चलकर उन्होंने सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त किया। उन्होंने अपना कल्याण किया एवं मोक्ष मार्ग बताया।
भगवान महावीर ने कहा-आत्मा के चार बड़े शत्रु हैं काम, क्रोध,लोभ और मोह। इनके चक्कर में पड़ा हुआ व्यक्ति जीवन में कभी अच्छे कार्य नहीं कर पाता। स्व कल्याण के लिये इन पर विजय प्राप्त करना बहुत आवश्यक है।
विश्ववंदनीय भगवान महावीर के जीवन एवं दर्शन का गहराई से अध्ययन करते हैं तो हम पाते हैं, वे किसी एक जाति या सम्प्रदाय के न होकर सम्पूर्ण मानव समाज की अमूल्य धरोहर हैं। वह सबके थे और सब उनके थे वह स्वयं क्षत्रिय कुल में उत्पन्न हुए थे, उनके मुख्य गणधर इन्द्रभूति गौतम ब्राह्मण थे तथा उनकी धर्मसभा ( समवशरण) में सभी धर्मों और जातियों के लोग उनकी दिव्य देशना, मंगल उपदेश सुनने के लिये आते थे। उन्हें केवल जैनों या जैन मंदिरों तक सीमित रखना उनके उद्दात एवं विराट व्यक्तित्व के प्रति अन्याय है वह जैन नहीं जिन थे। इन्द्रियजन्य वासनाओं और मनोजन्य कषायों को जीत लेते हैं,वे कहलाते हैं जिन। किसी का भी कल्याण जैन बनकर नहीं, जिन बनकर ही हो सकता है। भगवान महावीर ने कहा है त्याग व तपस्या से जीवन महान बनता है। श्रावकों को अपने आचरण में अहिंसा तथा जीवन में अपरिग्रह रखना चाहिए।
युग दृष्टा, अहिंसा, करुणा, परोपकार की पावन प्रेरणा देने वाले भगवान महावीर के 2549 वे निर्वाणोत्सव के पुनीत अवसर पर हमे चिंतन करने की आवश्यकता है। वर्तमान में चल रहे रूस-यूक्रेन युद्ध,विश्व में बढ़ रहे अलगाववाद, आतंकवाद, सम्प्रदायवाद, हिंसा की निरंतर बढ़ती प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने भगवान महावीर के सिद्धांत प्रासंगिक हैं। महावीर के सिद्धांत प्राणीमात्र के लिए हितकारी हैं।आज हम त्याग, सेवा, परोपकार के मार्ग पर चलने के बजाय अपने-अपने स्वार्थों को पूरा करने में लिप्त हो गये हैं। वर्तमान में नई पीढ़ी को अच्छे संस्कार देने के स्थान पर उन्हें गुमराह किया जा रहा है, नई पीढ़ी भारतीय संस्कृति एवं संस्कारों से विमुख होकर पाश्चात्य संस्कृति का अनुकरण कर रही है। समाज का नेतृत्व करने बाले ही पतन के मार्ग चलने लगे तो नई पीढ़ी को कैसा आदर्श मिलेगा।
दुनिया में सुख शांति की स्थापना करने के लिये हमें हर कीमत पर भगवान महावीर के बताये मार्ग पर चलना होगा। तभी भारत की प्राचीन संस्कृति और विरासत की रक्षा होगी। भारत ने कभी हिंसा में विश्वास नहीं किया। हमारा विश्वास भगवान महावीर के सिद्धांतों पर चलकर दूसरों की जान लेकर जीने में नहीं वरन अपनी जान की बाजी लगाकर दूसरों की रक्षा करने में है। अलगाव वाद,साम्राज्यवाद, तानाशाही से विश्व मुक्त हो इस हेतु भगवान महावीर द्वारा बताये मार्ग का अनुशरण करने में ही हम सबका कल्याण होगा।
भगवान महावीर के उपदेश को निम्न पंक्तियां सार्थक करती हैं:-
"मैत्री भाव जगत में मेरा सब जीवों से नित्य रहे,"
"दीन दुखी जीवों पर मेरे उर से करुणा स्त्रोत वहें।

 

 

नोट:- लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं भारतीय जैन मिलन के राष्ट्रीय वरिष्ठ उपाध्यक्ष है।


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