विजय कुमार जैन राघौगढ़ (म.प्र.)

 

भारत में प्राचीन काल से वैदिक संस्कृति के अनुरूप गुरुकुल शिक्षा प्रणाली सुव्यवस्थित रुप से संचालित थी। भगवान श्री राम एवं श्री कृष्ण ने गुरुकुल में शिक्षा ग्रहण की थी। गुरुकुल शिक्षा प्रणाली में बालक एवं बालिकाओं के अलग-अलग गुरुकुल संचालित थे। भारत वासियों का दुर्भाग्य रहा कि देश को गुलाम बनाकर मुसलमानों एवं अंग्रेजों ने भारतीय संस्कृति पर कुठाराघात किया। यहां के प्राचीन गौरव को नष्ट किया। धर्मायतनों को नष्ट किया।

गौरवशाली इतिहास में मनमाना बदलाव किया। मुसलमानों एवं अंग्रेजों ने धनसंपदा लूटी हमारे मंदिरों को तोड़कर मस्जिद बनाई। इसी प्रकार अंग्रेज हमारी पुरातत्व की वस्तुएं एवं कोहिनूर हीरा तक इंग्लैंड ले गए।अंग्रेजों ने प्राचीन काल से संचालित भारतीय शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन किया और जो शिक्षा प्रणाली लागू की उसके दुष्परिणाम आज हम युवा पीढ़ी में देख रहे हैं अंग्रेजों द्वारा थोपी गई शिक्षा प्रणाली के माध्यम से भारत में कॉन्वेंट स्कूल खोले गए और ईसाई धर्म का प्रचार प्रसार प्रारंभ किया। देश की आजादी के 75 वर्ष पूर्ण होने पर भी अंग्रेजों द्वारा थोपी शिक्षा नीति में हम बदलाव नहीं कर पाए।

जैन आचार्य विद्यासागर जी महाराज के क्रांतिकारी शिष्य मुनि अक्षय सागर जी महाराज द्वारा लिखित पुस्तक "शिक्षक शिक्षा और संस्कार" मैं उल्लेख किया है मातृभाषा और राष्ट्रभाषा ही हमारे शरीर और मस्तिष्क के लिए योग्य है अंग्रेजी विचार की भाषा हमारे शरीर एवं मस्तिष्क के लिए योग्य नहीं है। यह बात विज्ञान ने भी साबित की है। अंग्रेज शासकों ने भारत में लंबे समय तक राज्य करने के लिए कौंनसी नीति लागू की जाए इसके अध्ययन के लिए उनके देश के दार्शनिक लॉर्ड मेकाले को भारत भ्रमण के लिए भेजा। लॉर्ड मेकाले 18 वीं शताब्दी के आरंभ में भारत आए और वर्षों तक भारत के ग्रामीण अंचलों में भी घूमे।

भारत भ्रमण के बाद वापस इंग्लैंड पहुंचकर लॉर्ड मेकाले ने 2 फरवरी 1835 को ब्रिटिश संसद के हाउस ऑफ कॉमंस में भाषण देते हुए कहा मैंने भारत की चतुर्दिक यात्रा की है और मुझे इस देश में एक भी याचक अथवा चोर नहीं दिखा, मैंने इस देश में सांस्कृतिक संपदा से युक्त उच्च नैतिक मूल्यों तथा असीम क्षमता वाले व्यक्तियों के दर्शन किए हैं, मेरी दृष्टि में आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक विरासत जो कि इस देश का मेरुदंड रीढ़ है उसको खंडित किए बिना हम इस देश पर विजय प्राप्त नहीं कर सकते हैं। लार्ड मैकाले ने प्रस्ताव किया कि इस देश की प्राचीन शिक्षा पद्धति, उनकी संस्कृति को इस प्रकार परिवर्तित कर दें कि परिणाम स्वरूप भारतीय यह सोचने लगें कि जो कुछ भी हैं विदेशी एवं अंग्रेज हैं वही श्रेष्ठ एवं महान हैं। इस तरह से वे अपना आत्मसम्मान, आत्म गौरव तथा उनकी अपनी मूल संस्कृति को खो देंगे और वह वही बन जाएंगे जो कि हम चाहते हैं, पूर्ण रूप से हमारे नेतृत्व के अधीन एक देश।

ब्रिटिश संसद में लॉर्ड मेकाले से जब दूसरा प्रश्न पूछा गया कि भारत की संपत्ति किसमें है? मैकाले ने उत्तर दिया कि भारत की संपत्ति उनकी शिक्षा में है हम उनकी शिक्षा पद्धति को जब बिगाड़ देंगे तब भारत हमारे अधीन हो जाएगा। ब्रिटिश संसद में मेकाले से फिर पूछा गया कि भारत का धन वैभव संपत्ति खत्म करने के लिए तुम्हारे पास क्या योजना है? मेकाले ने उत्तर दिया कि भारत की शिक्षा व्यवस्था खत्म कर दो तो भारत में जितना भी धन वैभव संपत्ति है वह उसकी शिक्षा व्यवस्था के कारण हैं और यह बिगाड़ने के लिए पहला कार्य शुरू किया जाए कि भारत में कांवेंट स्कूलों का अधिक से अधिक संख्या निर्माण में किया जाए। मैकाले ने संसद में यह भी कहा था कि कोलकाता में पहला कान्वेंट स्कूल खोलने वाला हूं। ब्रिटिश संसद ने फिर पूछा कि क्या भारत में भी कान्वेंट की जरूरत है? तब लॉर्ड मैकाले ने कहा था मैं भारत में कान्वेंट स्कूल खोल कर बच्चों को अनाथ बनाऊंगा। साथ ही उन्हें ना घर के ना घाट के ऐसी स्थिति करके छोड़ूंगा।

लॉर्ड मेकाले की योजना के अनुसार 1835 से 1947 तक 30 से 35 हजार कान्वेंट स्कूल शुरू हो गए थे। ब्रिटिश संसद ने "इंडियन एजुकेशन एक्ट" सन 1858 मैं बनाया, इसकी ड्राफ्टिंग लॉर्ड मेकाले ने की थी। हम इंडियन शब्द के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी में एक अंग्रेजी शब्दकोश है इस कोश के प्रश्न क्रमांक 789 पर बताया गया है कि इंडियन शब्द का अर्थ होता है poor अर्थात गरीब, दूसरा अर्थ होता है old-fashioned अर्थात पुराने तत्व आचरण में लाने वाले और एक अर्थ और होता है criminal poor गुन्हेगार। यह एक्ट बनाने के बाद उन्होंने गुरुकुल में पढ़ाई जाने वाली भारतीय भाषाएं जैसे मराठी संस्कृत तेलुगू गुजराती आदि भाषाओं को पढ़ाना गैरकानूनी बना दिया। इसे बंद करना चाहिए ऐसा ऐलान किया और इस देश के गुरुकुलों को घूम घूम कर खत्म कर दिया। उनमें आग लगा दी। तब भारतीय छात्र छात्राएं शिक्षकों ने विरोध किया कुछ लोग जेल भी गए। उनको बहुत मारा पीटा गया। विरोध करने वाले अध्यापकों के हाथ तोड़े गए । बड़े-बड़े पुस्तकालयों को जलाया गया। इस प्रकार के अत्याचार लगभग 100 वर्षों तक अंग्रेज करते रहे। लगभग 1840 से 1940 तक इस प्रकार अन्याय अत्याचार करती हुई यहां की शिक्षा पद्धति बिगाड़ दिया,भारतीय लोगों के विचारों में परिवर्तन लाया गया।

सुप्रसिद्ध इतिहासकार प्रोफेसर धर्मपाल ने कहा है कि भारत में 7 लाख 32 हजार गांव हैं, कोई भी गांव ऐसा नहीं है कि जहाँ स्कूल तथा गुरुकुल नहीं है। सभी विषयों का ज्ञान दिया जाता था। छात्रों की संख्या एक गुरुकुल में लगभग 200 से 2000 तक रहा करती थी ऐसे गुरुकुलों में विद्या तथा शिक्षा दोनों प्रदान किए जाते थे जिसमें नैतिकता, आध्यात्मिकता, धर्म अधर्म न्याय अन्याय आदि की जानकारी हो वह विद्या कहलायी जाती थी। गुरुकुल में कुल 18 विषय पढ़ाये जाते थे जैसे गणित, खगोल शास्त्र, वास्तु शास्त्र, स्थापत्य शास्त्र, रसायन शास्त्र, चिकित्सा शास्त्र आदि सन 18 85 में ब्रिटेन के शिक्षा मंत्री ने कहा था कि भारत में लगभग 100% साक्षरता है किंतु ब्रिटेन में मात्र 17% साक्षरता है उस समय सबसे अधिक साक्षरता भारत वर्ष में थी।

भारत में 7 लाख 32 हजार गुरुकुल थे तब ब्रिटेन में मात्र 240 स्कूल थे। इससे स्पष्ट होता है कि उन दिनों भी हमारे देश में शिक्षा के क्षेत्र में कितनी बड़ी प्रगति की थी।प्राचीन भारतीय शिक्षा पद्धति के संबंध में डाँ अनंत सदाशिव अलपेकर ने 1955 में "प्राचीन भारतीय शिक्षा पद्धति" में लिखा था कि जैन साहित्य से प्रमाणित है कि प्राचीन भारत में शिक्षा अंतर्ज्योति और शांति का स्रोत मानी जाती थी, जो शारीरिक मानसिक, बौद्धिक तथा आर्थिक शक्तियों के संतुलित विकास के लिए हमारे स्वभाव में परिवर्तन करती थी। एक निष्पक्ष अंग्रेज लेखक ने लिखा है कि जब तक भारत के स्कूल एवं घरों में सामंजस्य नहीं होगा तब तक दिनों दिन भ्रष्ट होता जाएगा। वे आगे लिखते हैं कि जब तक हम निज वैभव, निज ज्ञान नहीं प्राप्त करेंगे तब तक हम "पर" वस्तु का आकर्षण मन से नहीं हटा सकते।

वर्तमान में हम पाश्चात्य शिक्षा और संस्कृति की ओर आकर्षित होकर उसका अंधानुकरण कर रहे हैं जैन आचार्य विद्यासागर जी महाराज की शिष्या आर्यिका विरत मति माताजी ने राघौगढ़ में विशाल प्रवचन सभा में भारत की शिक्षा नीति पर प्रवचन करते हुए कहा लार्ड मैकाले की शिक्षा नीति का ही दुष्परिणाम है कि हमने गुरुकुल की शिक्षा छोड़कर विश्वविद्यालय एवं कान्वेंट स्कूल की शिक्षा को स्वीकार किया। लड़के और लड़की एक ही कॉलेज या स्कूल में पढ़ रहे हैं। यह पाश्चात्य संस्कृति की ही देन है इस शिक्षा प्रणाली से भारतीय संस्कृति और संस्कारों का हनन हो रहा है और चरित्र हीनता बढ़ रही है।

 

नोट:- लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं भारतीय जैन मिलन के वरिष्ठ राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं।


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