विजय कुमार जैन राघौगढ़ (म.प्र.)

 

अवसाद एक ऐसी गंभीर बीमारी है जिसका उपचार दवाओं की अपेक्षा मनोचिकत्सा से संभव है। हमे अगर शुगर उच्च रक्त चाप या पथरी की बीमारी हो जाती है तो इन गंभीर बीमारियों का इलाज दवाओं अथवा शल्य क्रिया से संभव है। अवसाद को अंग्रेज़ी में डिप्रेशन नाम से जाना जाता है। अवसाद का प्रकोप पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं को अधिक होता है। एक सर्वेक्षण के अनुसार दस में से पांच महिलाएं अवसाद ग्रस्त हो सकती है जबकि दस पुरुषों में एक ही पीड़ित होता है महिलाओं के अवसाद ग्रस्त होने के पीछे मुख्य रूप से स्त्री जन्य कारण बताये जाते है।वर्तमान में हम देख रहे है पुरुषों एवं महिलाओं की अपेक्षा किशोर व युवा ज्यादा तर अवसाद ग्रस्त हो रहे है।

अवसाद किस कारण से होता है यह स्पष्ट रूप से नही बताया जा सकता। मगर माना जाता है इसमें अनेक कारणों की मुख्य भूमिका रहती है हमने उन कारणों को भी जानने का प्रयास किया है। नींद नही आती है या ज्यादा आती है अकेलापन, वेरोजगारी, वित्तीय समस्या, वैवाहिक या अन्य रिश्तों में खटास, शराब या अन्य नशीली वस्तुओं का सेवन करना, कार्य का अधिक बोझ, भोजन की अनियमितता अवसाद से पीड़ित व्यक्ति किसी भी काम में अपना ध्यान केन्द्रित नही कर पाता है जो काम वह आसानी से कर लेता था उस काम को करने में उसे अब कठिनाई है।

मोबाइल का रात दिन उपयोग करना भी इसका प्रमुख कारण है। आधुनिक संचार साधन हमारे लिये जितने उपयोगी है उससे अधिक इनका दुरुपयोग आज की युवा पीढ़ी कर रही है। अचानक लोगों से गुडवाय करने लोगों को फोन करना भी व्यक्ति के असामान्य लक्षण माने जाते है। पढ़ाई का अधिक बोझ भी इसका कारण है। आप अपने को निराश और उदास महसूस कर रहे है या तो आपको भूख नही लग रही है या आप ज्यादा भोजन कर रहे है आपको ऐसा लगता है आप जीवन से निराश है और आत्महत्या का मन बना रहे है। बहुत ज्यादा अवसाद की वजह से व्यक्ति आत्महत्या करने तक की सोचता है। अवसाद के दौरान व्यक्ति खुद को बिल्कुल असहाय महसूस कर सकता है। और उसे सभी समस्याओं का हल जीवन समाप्त करने में दिखने लगता है। और कोई आत्महत्या करने की बात करता है तो आप मान लें वह डिप्रेशन या अवसाद से ग्रसित है।

वर्तमान में पुरुषों, महिलाओं से ज्यादा किशोर जिनकी आयु 12 से 18 वर्ष के बीच होती है ऐसे किशोर अवसाद ग्रस्त ज्यादा मिल रहे है। किशोरावस्था में अत्यधिक चिड़चिड़ापन अवसाद का सबसे बड़ा लक्षण होता है। इस आयु में इस बीमारी से ग्रसित युवक आसानी से क्रोधित हो सकता है । दूसरों से अशोभनीय व्यवहार कर सकता है। वच्चों पर माता पिता द्वारा पढ़ाई के लिये डाला गया अत्यधिक दवाव और दूसरों से स्वंय का आकलन कम करने से भी किशोरों में डिप्रेशन का प्रमुख कारण हो सकता है। राजस्थान के सुप्रसिद्ध नगर को कोटा देश के प्रमुख शिक्षण नगर के रूप में आज जाना जाता है। यहाँ इतने बड़े कोचिंग संस्थान संचालित हैं जिनमें एक लाख तक छात्र छात्राओं को प्रवेश देकर विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं का विभिन्न विषयों का कोचिंग दिया जाता है।

विगत वर्ष लगभग 6 माह में कोटा में कोचिंग कर रहे लगभग 35 से 40 छात्र छात्राओं द्वारा आत्महत्या करने से अनायास ही हमारा ध्यान इस ओर आकृष्ट हुआ है। लगातार एक ही नगर में छात्र छात्राओं द्वारा पढाई करते हुए जीवन से निराश होकर आत्महत्या करने की घटनाओं से पूरे देश ही स्तब्ध हुआ। जीवन से निराश होकर अवसाद की स्थिति में पहुचे छात्र छात्राएं किशोर अवस्था में थे उन्होंने आत्महत्या करने का निर्णय ले लिया विगत दिनों जैनाचार्य श्री विद्या सागर जी महाराज के प्रिय शिष्य मुनि पुंगव सुधा सागर जी महाराज ने जिनवाणी चैनल पर प्रसारित होने बाले जिज्ञासा समाधान कार्यक्रम में मेरे प्रश्न "अवसाद की स्थिति में छात्र छात्राओं द्वारा आत्महत्या किये जाने को कैसे रोके। " कहा माता पिता का शिक्षा के लिये दबाव ,सह शिक्षा, पाश्चात्य संस्कृति का अंधानुकरण भौतिक चकाचौध आदि अनेक कारणों के युवक युवती जीवन से निराश होकर अवसाद की स्थिति में पहुंच कर आत्महत्या कर रहे है। भारतीय संस्कृति एवं संस्कारों की ओर युवा पीढ़ी को आकर्षित कर अवसाद या आत्महत्या करने से रोका जा सकता है।

छात्र छात्राओं द्वारा जीवन से निराश होकर अवसाद ग्रस्त होने की घटनाएँ रोकने उनमें जागरूकता पैदा करने के उद्देश्य से मेरे गृह नगर राघौगढ़ में गत दिवस शासकीय स्नातक महाविद्यालय में " मन चंगा तो कठौती में गंगा अवसाद के विरुद्ध शंखनाद" विषय पर ज्ञान वर्धक व्याख्यान माला का आयोजन किया। प्राचार्य डॉ जवाहरलाल द्विवेदी प्रो पी के झा प्रो एच सी पाटनी प्रो बृजेश कुमार को इस प्रयास के लिये साधुवाद देता हूँ कि इन्होंने किशोर छात्र छात्राओं को अवसाद से बचने यह सफल आयोजन किया। मुझे भी इस आयोजन में मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया था।

व्याख्यानमाला में वक्ताओं में कहा नकारात्मक सोच बदलना होगा। जिनका सोच अगर नकारात्मक है तो हम उनसे दूरी बनाये। इस बात को भी समझें कि जीवन में जब तक असफलता नही होगी तब तक सफलता का मूल्य भी नही समझ आयेगा। इसलिये असफलता से हर चीज का अंत नही समझना चाहिये। यदि आप किसी व्यक्ति को जानते है जो कि अवसाद या डिप्रेशन की वजह से कोई गलत कदम या आत्महत्या करने का मन बना रहा है अथवा सोच रहा है तो तत्काल उसके सगे संबंधियों को सूचित करें। परिवार की ओर से मिली थोड़ी सहानुभूति किसी का जीवन बचा सकती है। कार्यक्रम में समाजसेवी माली कृष्ण गोपाल कश्यप ने छात्र छात्राओं को कभी भी जीवन में आत्महत्या नही करने की शपथ दिलायी। अवसाद की स्थिति से हर किसी को बचाने के लिये समाज के हर व्यक्ति को अवश्य ही रचनात्मक प्रयास आवश्यक है।

 

 

नोट:- लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं भारतीय जैन मिलन के राष्ट्रीय वरिष्ठ उपाध्यक्ष है।


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