विजय कुमार जैन राघौगढ़


भारत में जघन्य अपराध करने वालों को फांसी की सजा देकर मृत्युदंड देने का प्रावधान है ऐसे क्रूर अपराधियों को भारत में गले में फंदा डालकर फांसी की सजा देने का प्रावधान कब से है इसका कोई सुनिश्चित इतिहास नहीं है। वर्तमान में भारत में फांसी के अलावा मृत्युदंड के अन्य तरीकों पर विचार करने के लिए एक वकील द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर की है। इस जन हित याचिका पर विचार चल रहा है। जनहित याचिका में फांसी को दर्दनाक एवं क्रूर बताया है वरिष्ठ अभिभाषक ऋषि मल्होत्रा ने सर्वोच्च न्यायालय में जनहित याचिका दाखिल कर रखी है। जिसमें फांसी के जरिए मृत्युदंड को ज्यादा दर्दनाक और क्रूर बताते हुए अन्य विकल्पों जैसे घातक इंजेक्शन, गोली मारने आदि विकल्पों को मृत्युदंड के लिये अपनाने के आदेश जारी करने का आग्रह देश की सर्वोच्च न्यायालय से किया है। इस जनहित याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय में चल रही सुनवाई के दौरान भारत के अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमन ने कहा कि केंद्र सरकार फांसी के जरिए मृत्युदंड के अलावा अन्य विकल्पों पर विचार के लिए विशेषज्ञ समिति बनाने पर मंथन कर रही है।

प्रस्तावित समिति के लिए नामों को अंतिम रूप देने की एक प्रक्रिया है। इसमें कुछ समय लगेगा न्यायालय ने अटॉर्नी जनरल के बयान को रिकॉर्ड में लेते हुए अगली सुनवाई जुलाई तक के लिए टाल दी। सर्वोच्च न्यायालय ने इस जनहित याचिका पर 21 मार्च को विचार करते हुए केंद्र सरकार से कहा था, फांसी की सजा देने के तरीके पर हुए अध्ययनों आदि के बारे में सरकार ने क्या किया है। गत मंगलवार को मामला फिर से प्रधान न्यायाधीश पी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जे बी पाणीवाला की पीठ के समक्ष सुनवाई पर लगा था।

सुप्रीम कोर्ट ने 21 मार्च को इस बात पर विचार का मन बनाते हुए पूछा था कि क्या मौत की सजा का फांसी के अलावा कम दर्दनाक और अधिक मानवीय तरीका हो सकता है? कोर्ट ने इस पर विचार के लिए विशेषज्ञ समिति भी गठित करने के संकेत दिए थे। सर्वोच्च न्यायालय ने इस जनहित याचिका पर भारत सरकार से जानना चाहा है क्या फांसी के जरिए मौत की सजा देने से होने वाली तकलीफों के बारे में कोई अध्ययन हुआ है? क्या इस बारे में कोई वैज्ञानिक डाटा उपलब्ध है कि इसमें कितनी तकलीफ होती है और मौत होने में कितना समय लगता है? क्या ऐसा कोई वैज्ञानिक सुझाव है की आज की तिथि में सबसे बेहतर तरीका है या फिर मानवीय गरिमा को कायम रखने वाला कोई और उपाय ज्यादा उपयोगी हो सकता है? फांसी के माध्यम से मृत्युदंड देने की सजा पर इसकी अंतर्राष्ट्रीय चलन से तुलना भी होना चाहिए।

गंभीर अपराध करने वाले क्रूर अपराधी जिन को मृत्युदंड की सजा न्यायालय ने सुनाई है उन्हें फांसी के माध्यम से मृत्युदंड देने का प्रावधान है। सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन जनहित याचिका पर अवश्य विचार होगा, और मृत्युदंड देने के लिए फांसी को अधिकतम अमाननीय मानकर अपराधियों को अन्य विकल्पों पर विचार होगा, और निर्णय भी होगा।

भारत के संविधान में तीन प्रमुख व्यवस्थायें हैं व्यवस्थापिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका। न्यायपालिका को सर्वोच्च स्थान दिया है। भारत का हर नागरिक संविधान का अनुशरण करते हुए न्यायपालिका का सम्मान करता है। न्यायपालिका की कार्यप्रणाली पर उंगली उठाने पर न्यायालय की मानहानि का प्रकरण दर्ज होता है और उसमें सजा का प्रावधान है। हम न्यायालय का सम्मान करते हैं। मगर कुछ पहलू ऐसे हैं जिन पर भारत सरकार, राज्य सरकारों एवं न्यायपालिका को गंभीरता से विचार करना चाहिए।

देश की आजादी के बाद भारत में अपराध तीव्र गति से बड़े हैं। माफियाओं का साम्राज्य जेलों से भी संचालित होता है। हाल ही में ऐसे अनेक समाचार सुनने एवं देखने में मिले हैं की देश की बड़ी-बड़ी जेलों में गुंडे एवं माफिया अपना साम्राज्य चलाते हैं। जेलों में उन्हें वे सब सुविधाएं उपलब्ध हो जाती हैं जो उनके घर पर रहती हैं। गंभीर अपराधी जिनके प्रकरण न्यायालयों में विचाराधीन है, जिन्हें न्यायालय से जमानत नहीं मिलती है। वह विचाराधीन कैदी लम्बे समय तक जेल में रहते है और जेल से ही अपनी गतिविधियों को संचालित करते हैं। देश में मृत्युदंड की सजा कम जब होगी तब अपराधों में कमी आयेगी।

आज आवश्यकता है अपराध रोकना। यह सरकारों की उच्च प्राथमिकता होना चाहिए। देश के आम जन की प्रमुख चिंता यह है कि विभिन्न राजनैतिक दल अपराधियों को खुलकर संरक्षण देते हैं। खूंखार आतंकवादी जेलों में कैद रहकर चुनाव लड़ते है और सांसद, विधायक चुन जाते है। भारत के संविधान में यह संशोधन किया जाने की आवश्यकता है कि विचाराधीन कैदी जिसे सजा नहीं हुई वह जेल में बंद है उसे चुनाव लड़ने की पात्रता नहीं होगी। भारतीय न्याय प्रणाली में यह भी विचारणीय बिंदु है कि विचाराधीन कैदी वर्षों तक जेलों में बंद रहते हैं। उनके प्रकरणों में न्याय लंबित रहता है।

क्रूर तम अपराधी ने जिसके परिवार जन की अमानवीय हत्या की है वह अपराधी वर्षों तक जेल में विचाराधीन कैदी रहता है पीड़ित परिवार अपराधी को सजा मिलने के इंतजार में दुखी होता रहता है। अपराधी को जघन्य अपराध की सजा शीघ्र दी जाये। इस संबंध में भारत की सर्वोच्च न्यायालय को विचार करना चाहिए। हम सबका प्रयास होना चाहिए कि भारत में इतने जघन्य अपराध न हों जिनमें फांसी या मृत्युदंड का प्रावधान है।

 


नोट:-लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं भारतीय जैन मिलन के राष्ट्रीय वरिष्ठ उपाध्यक्ष है।


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